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पर्यावरण संरक्षण से जनप्रतिनिधियों का नहीं नाता

जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणापत्र में विभिन्

By Edited By: Published: Fri, 30 Jan 2015 08:30 PM (IST)Updated: Fri, 30 Jan 2015 08:30 PM (IST)
पर्यावरण संरक्षण से जनप्रतिनिधियों का नहीं नाता

जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली

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मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दल अपने-अपने घोषणापत्र में विभिन्न सुविधाओं को पूरा करने के दावे कर रहे हैं, लेकिन हरियाली की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। प्रचार के दौरान भी प्रत्याशी पर्यावरण को लेकर बातचीत करने से कतराते हैं। बढ़ते प्रदूषण और हानिकारक गैसों बढ़ता प्रदूषण और हानिकारक गैसों से जन-जीवन प्रभावित हो रहा। पार्क हो या खेत-खलिहान, बढ़ती आबादी के साथ इनकी हरियाली खोती जा रही है। ऐसा देखा गया है कि पर्यावरण संरक्षण जैसे अहम पहलु अक्सर अनछुए ही रह जाते हैं। जनप्रतिनिधि ऐसे मसले की सुध लेने की जरूरत महसूस नहीं करते हैं। परिणाम स्वरूप खेतों में निर्माणाधीन इमारतों के चलते हरियाली गुम होती जा रही है।

अक्सर हरियाली से चच्छादित रहने वाले गांवों की जमीन पर अनधिकृत कॉलोनियां बसने लगी, लेकिन किसी ने इस नुकसान की ¨चता नहीं की। बुराड़ी, किराड़ी, नरेला, बवाना सहित दर्जनों गांवों में खेती की जमीन पर लहराने वाले हरे पेड़-पौधों की जगह अब मकानों ने ले ली है। दूसरी तरफ निगम के सैकड़ों पार्क भी गुम होती हरियाली से अछूते नहीं हैं। आज भी पचास फीसद पार्को से हरियाली नदारद है। पार्कों में मालियों की कमी से लेकर ट्यूबवेल खराब होने की समस्या है जो हरियाली के विकास को बाधित करती है। इन पार्को के विकास के लिए बनाई गई पब्लिक पार्टनरशिप योजना भी कारगर नहीं हो सकी है। दूसरी तरफ ज्यादातर हरित पट्टी नाममात्र की रह गई हैं। जिनपर अतिक्रमण और गंदगी का कब्जा है। रोहिणी, नरेला, बवाना सहित कई इलाकों में डीडीए ने हरित पट्टी निर्माण की योजना वर्षो पूर्व तैयार की थी। इनमें पौधारोपण कर हरियाली का विकास किया जाना था। लेकिन अधिकांश हरित पट्टी में योजना चाहरदीवारी निर्माण से आगे ही नहीं बढ़ी।

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विकास के नाम पेड़ पौधे की बलि चढ़ाच अच्छी बात नहीं है। लगातार कम हो रही हरियाली से वातावरण में प्रदूषण फैल रहा है। इससे लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। जनप्रतिनिधि इस मामले में हमेशा उदासीन रहते हैं।

-रूबी कुमारी, मंगोलपुरी।

हरियाली जीवन के लिए बेहद जरूरी है। इसके विकास के लिए जनप्रतिनिधि से लेकर अधिकारियों का रवैया लापरवाही पूर्ण है। यह स्थिति भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।

-सिद्धार्थ, रोहिणी।


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