पांच साल बाद भी तय नहीं दोषी कौन
स्लग- आयुर्वेद दवा घोटाला
सब हेड- वर्ष 2009 में कई अस्पतालों में छापे के दौरान करोड़ रुपये की दवाएं की गई थीं सील
-मामले में चार्जशीट तक तैयार नहीं कर सकी है भ्रष्टाचार निरोधक शाखा
-एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं भाजपा और कांग्रेस
वी.के.शुक्ला, नई दिल्ली
दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा की हाल ही में आई रिपोर्ट से पांच साल पहले एकीकृत नगर निगम में उजागर हुए दवा घोटाले का मामला एक बार फिर गर्मा गया है। नगर निगम में सत्तासीन भाजपा व कांग्रेस इसे लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। मगर बड़ा सवाल यह है कि मामले में पांच साल बाद भी यह तय नहीं हो सका है कि दोषी कौन है। क्योंकि घोटाले को उजागर करने वाली भ्रष्टाचार निरोधक शाखा अभी तक मामले में चार्जशीट तैयार नहीं कर सकी है। हालांकि, उसने अब निगम को सौंपी रिपोर्ट में कहा है कि वह इस मामले में शीघ्र ही चार्जशीट को अंतिम रूप देगी। घोटाले में दवाइयों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री में मिलावट और फर्जी बिल बनाए जाने का आरोप लगाया गया था।
यह था मामला
ज्ञात हो कि जनवरी, 2009 में इस मामले में दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने बल्लीमारान आयुर्वेदिक अस्पताल, टाउन हाल डिस्पेंसरी, हैदरपुर अस्पताल व शाहदरा आयुर्वेदिक अस्पताल में छापा मारा था। उस समय कई करोड़ रुपये की दवाएं सील की गई थीं। इसमें अधिकतर गोल्डन मेडिसिन थीं। यानी महंगी भस्म व रस थे। गोदांती भस्म, कस्तूरी वैभव रस, प्रवाल वटी, जहर मोहर पिस्ती, मुक्ता पिस्ती, महायोग राज गुग्गल, वसंत कुसुमाकर, ब्रह्मी रसायन, योगराज गुग्गल आदि शामिल थीं। घोटाले में स्वर्ण भस्म का नाम भी प्रमुख रूप से सामने आया था। भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने उस समय जो एफआइआर की थी। उसका नंबर 02/2009/27/1/2009 है। शाखा ने धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश सहित दस धाराएं इस मामले में लगाई थीं। 22 अगस्त, 2014 को शाखा के इंस्पेक्टर मनोज अग्रवाल की ओर से नगर निगम को एक पत्र भेजा गया है। जिसका क्रमांक 11876/आरसी/02/एमए है। पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अभी इस मामले में चार्जशीट नहीं की गई है। इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
इस घोटाले में बल्लीमारान अस्पताल भी शामिल रहा है। अस्पताल में वर्ष 2007-2008 में 21 मई को दवाइयों की खरीद का प्रस्ताव दिया गया था। 1 जून को दवा खरीदने के लिए सप्लाई आर्डर दिया गया था। दूसरी बार दवा खरीदने के लिए 16 अगस्त, 2007 को प्रस्ताव दिया गया था और 30 अगस्त को सप्लाई आर्डर दिया गया था। तीसरी बाद 29 मार्च, 2008 को दवा खरीद का प्रस्ताव दिया गया था और निगम अधिकारियों ने अत्यधिक तत्परता दिखाते हुए उसी दिन सप्लाई आर्डर भी दे दिया गया था। अकेले बल्लीमारान अस्पताल में ही इस दौरान 2,50,38,450 रुपये की दवाएं खरीदी गई थीं। माना जा रहा है कि कई करोड़ की दवाएं उस समय सील कर दी गई थीं। जो अब तक एक्सपायर हो चुकी हैं। इतना ही नहीं घोटाले से संबंधित नगर निगम की एक सौ के करीब डिस्पेंसरियों में भी ये दवाएं जमा हैं। जिस समय छापा मारा गया था उस समय नगर निगम में महापौर आरती मेहरा थीं और स्थायी समिति के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता थे। वहीं निगम में विपक्ष के नेता कांग्रेस के रामबाबू शर्मा थे। इस पूरे मामले पर निगम में सत्तासीन भाजपा का कहना है कि जो छापा मारा गया था उसमें वे दवाएं मिली थीं जो अप्रैल, 2007 से पहले कांग्रेस के शासनकाल में खरीदी गई थीं। भाजपा का कहना है छापेमारी के बाद भी दवाएं खरीदी गई हैं। दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि इस घोटाले के लिए भाजपा जिम्मेदार है।