शीला के इस्तीफे ने बढ़ाई सियासी हलचल
अजय पांडेय, नई दिल्ली
केरल के राज्यपाल पद से शीला दीक्षित के इस्तीफे के साथ ही सूबे की सियासी हलचल बढ़ गई है। दिल्ली की राजनीति में उनकी वापसी को लेकर कयासों का सिलसिला तेज हो गया है। उनके समर्थकों ने इसके लिए बाकायदा लामबंदी भी शुरू कर दी है। दूसरी ओर उनकी मुखालफत करने वालों ने भी अपनी तरकश में तीर सजा लिए हैं। दिल्ली में कभी कांग्रेस के लिए तुरुप का पत्ता मानी जाने वालीं दीक्षित को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा यह भी है कि प्रदेश कांग्रेस में उनकी सक्रियता से पार्टी में नए समीकरण बनेंगे जिससे कमजोर पड़ी कांग्रेस में आपसी कलह बढ़ सकती है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि कांग्रेस हाईकमान उनके अनुभव का इस्तेमाल दिल्ली के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर कर सकता है।
सनद रहे कि पूर्व मुख्यमंत्री दीक्षित की वापसी ऐसे वक्त में हुई है जब दिल्ली चुनाव की चौखट पर खड़ी नजर आ रही है। तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा की अगुवाई में कोई सरकार नहीं बन पाई और अब ऐसी संभावना जताई जा रही है कि जनवरी-फरवरी में दिल्ली विधानसभा के चुनाव कराए जा सकते हैं। जाहिर तौर पर दिल्ली के कांग्रेसियों में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या पार्टी अगला चुनाव फिर से दीक्षित की अगुवाई में लड़ेगी। महत्वपूर्ण यह भी है कि पार्टी के विधायकों का एक बड़ा वर्ग बगावती तेवर अपनाए हुए है। इन विधायकों का मानना है कि बेहद मुश्किल स्थितियों में चुनाव जीतने के बावजूद पार्टी संगठन में उन्हें वह तवज्जो नहीं मिली जिसके वे हकदार थे। कुछ दिनों पूर्व तक कांग्रेस विधायक दल में टूट की चर्चा भी बेहद गर्म रही। खैर, बड़े नेताओं के हस्तक्षेप से कोई टूट-फूट तो नहीं हुई लेकिन कहीं न कहीं असंतोष अब भी पल रहा है। पार्टी के दो विधायकों मतीन अहमद व आसिफ मोहम्मद ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर उनसे आग्रह भी किया था कि दीक्षित को एक बार फिर से दिल्ली की बागडोर सौंप दी जाए। ऐसा चाहने वालों की संख्या और ज्यादा भी हो सकती है। लेकिन पिछले साल हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद से प्रदेश के कांग्रेसी समीकरण में बहुत बदलाव आए हैं।
सूबे के अधिकतर कांग्रेसी यह मानते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली विपरीत परिस्थितियों में बेहतर नेतृत्व दे रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में उनकी अगुवाई में पार्टी ने भाजपा व आम आदमी पार्टी दोनों से दो-दो हाथ किए हैं। हार से हताश जो कार्यकर्ता घर बैठ गए थे, वे पार्टी की गतिविधियों में शामिल हो रहे हैं। पार्टी हाईकमान भी लवली के साथ है। ऐसे में उनकी जगह दीक्षित को दिए जाने की संभावना नहीं दिख रही।
..तो बढ़ सकती है दीक्षित की मुसीबत
सियासी जानकारों का यह भी मानना है कि दिल्ली जल बोर्ड की कुछ योजनाओं को लेकर पिछले दिनों दर्ज कराए गए मुकदमे आने वाले दिनों में दीक्षित की मुसीबत बढ़ा सकते हैं। हालांकि अभी तक उनके खिलाफ कहीं कोई मुकदमा दर्ज नहीं है। बहरहाल, उनके इस्तीफे को लेकर प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता मुकेश शर्मा ने कहा कि भाजपा के दमनकारी राज में कोई भी स्वाभिमानी नेता वही करता, जो दीक्षित ने किया है। पूर्व मुख्यमंत्री की दिल्ली कांग्रेस में वापसी को लेकर शर्मा ने कहा कि यह फैसला खुद दीक्षित को लेना है।