फिर से चढ़ सकता है सियासी पारा
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : राजधानी में राजनीतिक अनिश्चितता तो अभी बनी हुई है, लेकिन एक बार फिर से भाजपा में सरकार बनाने को लेकर सुगबुगाहट तेज होने लगी है। प्रदेश के नेताओं को भी शीघ्र ही इस बारे में पार्टी हाईकमान की ओर से सकारात्मक संकेत मिलने की उम्मीद है। इससे आने वाले दिनों में दिल्ली की सियासत में एक बार फिर से गरमाहट आना तय है।
भाजपा विधायकों द्वारा डेढ़ माह पहले सरकार बनाने की जो मुहिम शुरू की गई थी, वह अभी भी जारी है। अंतर सिर्फ इतना है कि पहले की तरह इस बार सियासी शोर नहीं हो रहा है। प्रत्येक कदम सावधानी के साथ उठाया जा रहा है। इसे लेकर किसी तरह की कोई बयानबाजी नहीं हो रही है। दरअसल, पिछले दिनों दिल्ली में सरकार बनाने को लेकर भाजपा को फजीहत झेलनी पड़ी थी। सरकार बनी नहीं और बदनामी अलग से हुई। विपक्ष को हमला करने का भी मौका मिल गया था। आम आदमी पार्टी (आप) ने भाजपा पर अनैतिक ढंग से सरकार बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए अपने विधायकों को लेकर उपराज्यपाल के पास पहुंच गए थे। उन्होंने दिल्ली विधानसभा भंग कर चुनाव कराने की मांग की थी। उनकी इस मांग पर उपराज्यपाल ने भाजपा व कांग्रेस से चर्चा करने की बात कही थी।
इसके बाद भाजपा नेताओं ने सरकार बनाने के मुद्दे पर चुप्पी साधनी शुरू कर दी तो वहीं कुछ भाजपा नेता चुनाव की भी बात करने लगे हैं, लेकिन अंदरखाने में सरकार बनाने की कवायद चल रही है।
बैठक में हो सकता है फैसला
बताया जा रहा है कि पार्टी हाईकमान ने प्रदेश के नेताओं को ताकीद की है कि इस मुद्दे को लेकर किसी तरह की कोई बयानबाजी नहीं करें। फिलहाल वरिष्ठ नेता सरकार बनाने की संभावित विकल्पों का आकलन करने के साथ ही इससे होने वाले लाभ व हानि का विश्लेषण कर रहे हैं। उम्मीद है कि आठ व नौ अगस्त को दिल्ली में होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक तक इस बारे में कोई फैसला ले लिया जाए।
खाली सीटों के लिए कराना होगा उपचुनाव
पार्टी सूत्रों का कहना है कि उत्तराखंड उपचुनाव परिणाम ने नेताओं को सरकार बनाने के विकल्प पर नए सिरे से विचार करने को विवश कर दिया है, क्योंकि दिल्ली में विधानसभा भंग नहीं किए जाने की स्थिति में खाली पड़े तीनों सीटों के लिए उपचुनाव कराना होगा। इसका परिणाम यदि भाजपा के पक्ष में नहीं रहा तो उसके लिए आगे की राह मुश्किल हो जाएगी। क्योंकि इस स्थिति में आप सरकार बनाने की कोशिश करेगी या फिर वह विधानसभा भंग कर फिर से चुनाव कराने के लिए अपना दबाव बढ़ा देगी। इसलिए पार्टी को शीघ्र इस मामले में फैसला लेना होगा।