बिजली दरें बढ़ाने का भाजपा करेगी विरोध
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली :
बिजली की दरों में बढ़ोतरी की किसी भी कोशिश का भाजपा ने विरोध करने का फैसला किया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि जब तक राजधानी में बिजली आपूर्ति करने वाली कंपनियों का कैग ऑडिट नहीं हो जाता तब तक दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) तथा सरकार को बिजली दरों में बढ़ोतरी की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि बिजली आपूर्ति के काम को निजी हाथों में सौंपने के बाद उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली उपलब्ध कराने का जो दावा किया गया था वह पूरा नहीं हुआ है। पार्टी का मानना है कि पहले से ही बिजली की दरें बहुत ज्यादा हैं, इससे उपभोक्ता परेशान हैं। इस स्थिति में उन पर और ज्यादा बोझ डालना सरासर अन्याय है। पार्टी का कहना है कि यदि बिजली आपूर्ति करने वाली कंपनियों को नुकसान हो रहा है तो इनके करार रद करके खुले टेंडर मंगाकर विश्वस्तरीय कंपनियों को दिल्ली में बिजली आपूर्ति का काम सौंपा जाना चाहिए।
भाजपा नेताओं का कहना है कि 1 जुलाई, 2002 को जब दिल्ली में बिजली आपूर्ति का काम निजी हाथों में सौंपा गया था उस समय कहा गया था कि दाम प्रतिस्पर्धी होने तथा बिजली चोरी रुकने से उपभोक्ताओं को अबाधित सस्ती बिजली मिलेगी। बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता भी विश्वस्तरीय होगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। पहले से तीन गुना ज्यादा बिजली बिल अदा करने के बाद भी उपभोक्ताओं को अबाधित बिजली नहीं मिलती है। बिजली कंपनियां घाटेवाले खाते तैयार कराकर प्रत्येक वर्ष डीईआरसी से बिजली की दरें बढ़ाने की मांग करती है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि निजीकरण के समय बिजली चोरी लगभग 53 फीसदी थी, जो कि अब घटकर लगभग 15 फीसदी रह गई है। इसका लाभ उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है। जबकि एक फीसदी बिजली चोरी कम होने से कंपनियों को लगभग तीन सौ करोड़ रुपये का लाभ होता है। उन्होंने आरोप लगाया बिजली कंपनियों के खातों में भारी गड़बड़ी है। इसलिए वह जांच के लिए कैग को दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा रही हैं। जबकि टाटा पांच हजार करोड़ रुपये का घाटा तथा रिलायंस की दोनों कंपनियां 20 हजार करोड़ रुपये के घाटे की बात करके बिजली की दरें बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। कंपनियों की यह मांग उपभोक्ताओं पर बोझ डालने की एक साजिश है, इसलिए कैग की जांच पूरी होने तक इस तरह की मांग पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।