डीडीयू अस्पताल में शोपीस बने सुरक्षा द्वार
जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : हरिनगर के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल की सुरक्षा चाक-चौबंद रखने के उद्देश्य से दो वर्ष पूर्व जगह-जगह सुरक्षा द्वार (मेटल डिटेक्टर गेट) बनाए गए थे। इन गेटों का उपयोग सुरक्षा से जुड़े कार्यो के लिए कभी भी नहीं होता दिखा। कई जगह लगे ये द्वार अब शोपीस बनकर रह गए हैं।
अति आधुनिक किस्म के इन द्वारों को अस्पताल के ऐसे जगहों पर लगाया गया, जहां की सुरक्षा काफी जरूरी है। इनमें इमरजेंसी बिल्डिंग, ओपीडी बिल्डिंग व एमएस कार्यालय जैसे स्थान शामिल हैं। इनमें सीसीटीवी कैमरे भी लगे हैं, जिनसे गुजरने वाले हर शख्स की वीडियो रिकार्डिग होती रहती है। इनका उपयोग कभी नहीं हुआ। जिन स्थानों पर ये द्वार लगे हैं वहां आसपास कोई गार्ड नहीं रहता, जो लोगों को यह हिदायत दे कि आप इस द्वार से ही गुजरें। जागरूकता या जानकारी के अभाव में लोग द्वार से निकलने के बजाय इनके किनारे से निकलते हैं। हां, कुछ बच्चे खेल-खेल में इस गेट से जरूर निकलते हैं या फिर प्रवेश करते हैं।
अस्पताल के चिकित्सकों व कर्मचारियों का इस बारे में कहना है कि सरकारी तंत्र द्वारा जितनी तेजी उपकरणों की खरीद में दिखाई जाती है यदि उतनी ही तेजी या दिलचस्पी इनके रखरखाव के प्रति भी दिखाई जाती तो बात ही कुछ और होती है।
ज्ञातव्य हो कि एक वर्ष के दौरान डीडीयू में मारपीट, बच्चे की चोरी, व नर्स के साथ अभद्र व्यवहार जैसी घटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं को देखते हुए डीडीयू में मेटल डिटेक्टर गेट की उपयोगिता को समझा जा सकता है। अस्पताल प्रशासन शायद इस समस्या की ओर देखना ही नहीं चाहता।
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सुरक्षा से जुड़े इंतजाम में कुछ दिक्कतें हैं, लेकिन अब इसे दुरुस्त किया जा रहा है। हर मेटल डिटेक्टर गेट के पास गार्ड की तैनाती हो, इसके इंतजाम किए जा रहे हैं।
डॉ. परवीना गोयल, अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक, डीडीयू।