सुविधाओं के बीच समस्याओं की भी नहीं कमी
आबादी : करीब 10 हजार
खेल के क्षेत्र में दिल्ली देहात की धाक पूरी दुनिया में स्थापित करने वाले बापरौला गांव के लोग सुविधाओं व समस्याओं के बीच समन्वय करने की पूरी कोशिश करते हैं। ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार इसी गांव के रहने वाले हैं। इस गांव के लोग अपनी छाती गर्व से चौड़ी करते नहीं थकते। एक तरफ गांव वाले यहां उपलब्ध सुविधाओं को बयां कर गौरवान्वित महसूस करते हैं तो समस्याओं का जिक्र करने पर थोड़ी झिझक के साथ पीड़ा बयां करते हैं।
सबल पक्ष
पानी की नहीं कमी
दिल्ली देहात के अन्य गांवों के विपरीत बापरौला गांव में पेयजल की कोई समस्या नहीं है। यहां तक कि गांव में लगी टयूबवेल का पानी भी मीठा है, जो कि दिल्ली देहात के लिए एक अनूठी बात है। इसके अलावा गांव में कमरुद्दीन नगर स्थित जलाशय से भी पानी की आपूर्ति पाईप लाईन से होती है।
प्राथमिक व उच्चतर माध्यमिक दोनों स्कूल
बापरौला गांव में शिक्षा से जुड़ी पर्याप्त सुविधा है। यहां नगर निगम की ओर से प्राथमिक विद्यालय तो दिल्ली सरकार की ओर से उच्चतर माध्यमिक विद्यालय दोनों उपलब्ध हैं। इनमें न सिर्फ गांव के बच्चे बल्कि आसपास स्थित कॉलोनियों के भी बच्चे पढ़ते हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य का भी इंतजाम
गांव में दिल्ली सरकार की ओर से डिस्पेंसरी भी है। यहां लोगों को प्राथमिक इलाज की सुविधा है।
जल निकासी का इंतजाम नहीं
जलनिकासी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण बारिश के दिनों में गांव में जलभराव की समस्या हर बार होती है। गांव का गंदा पानी आसपास खाली पड़े खेतों में इकट्ठा होता है।
जोहड़ की दशा खराब
गांव के दोनों जोहड़ का बुरा हाल है। शिव मंदिर के पास के जोहड़ की दशा ऐसी है कि यहां गांव का गंदा पानी गिरता है। आलम यह है कि जोहड़ का पानी अब पशुओं को भी नहीं पिलाया जाता। दूसरे जोहड़ो का भी हाल सही नहीं है।
सीवर लाइन नहीं हुई चालू
गांव में सीवर लाइन को डाले करीब पांच वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन कई हिस्सों में इसे अब तक चालू नहीं किया गया है। सीवर का गंदा पानी घरों में बने सेप्टिक टैंक में ही इकट्ठा होता है।
बदहाल पार्क
निगम स्कूल से सटे पार्क की दशा सही नहंी है। यहां हरियाली के नाम पर सिर्फ जंगली घास के दर्शन होते हैं।
गांव का कूड़ा सड़क पर
गांव का कूड़ा निगम स्कूल के पास पार्क के सामने सड़क पर फेंक दिया जाता है। इससे गांव की छवि को नुकसान पहुंच रहा है। गांव में कूड़ा घर नहीं बनाया गया है।
नहीं बना अस्पताल
गांव में ग्रामसभा की जमीन पर जच्चा-बच्चा अस्पताल बनाने की घोषणा छह वर्ष पूर्व की गई थी, लेकिन यह योजना अब भी हकीकत से दूर है। इलाज के लिए लोगों को या तो जाफरपुर के रावतुलाराम अस्पताल या फिर हरिनगर के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल की लंबी दूरी तय करनी पड़ती है।
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समस्याएं कहां नहीं होती है, लेकिन बापरौला गांव अन्य गांवों की तुलना में बेहतर स्थिति में है। सबसे बड़ी बात है कि बिजली पानी की यहां कोई असुविधा नहीं है।
दीवान सिंह, ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार के पिता
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गांव में सुविधाएं तो हैं पर समस्याओं की भी कमी नहीं है। जोहड़ों की दशा बदतर है। इस बारे में कई बार शिकायत की जा चुकी है।
बलवंत सोलंकी
प्रधान, ग्राम सुधार समिति
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गांव में जल निकासी की सुविधा नहीं होने के कारण खुले में गंदा पानी इकट्ठा हो जाता है। इससे मच्छरों व गंदगी की समस्या होती है।
जयराम सोलंकी, बापरौला
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जरूरत को देखते हुए गांव में अस्पताल निर्माण की योजना को तैयार हुए छह वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन अब भी यह नहीं पता कि निर्माण कब शुरू होगा।
राज सिंह, बापरौला
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गांव में जो भी समस्याएं हैं उनके समाधान से जुड़े कार्य चल रहे हैं। पार्को के विकास का कार्य चरणबद्ध तरीके से शुरू किया जा चुका है। जहां तक कूड़े की समस्या का प्रश्न है तो उसे समय-समय पर उठाया जाता है।
शशिप्रभा सोलंकी, निगम पार्षद
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सीवर लाइन बंद होने के बारे में मुझे जानकारी नहंी है। यदि ऐसी कोई समस्या है तो उसका निश्चित रूप से समाधान कराया जाएगा। जहां तक अस्पताल निर्माण का प्रश्न है तो यह योजनागत मामला है। इसके लिए अभी इंतजार करने की जरूरत है।
महेंद्र यादव, क्षेत्रीय विधायक
गांव का इतिहास
बापरौला गांव के इतिहास के बारे में गांव वालों को निश्चित रूप से कुछ नहीं पता। हां, वे इतना जरूर कहते हैं कि गांव कम से कम 500 वर्ष पुराना है। गांव में करीब सात दशक पुरानी प्याऊ बनी है। प्याऊ की वास्तु आकर्षक है। इसके कोनों पर बनी मीनारें इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं।
कोट्
निगम से संबंधित जो भी समस्याएं होंगी, उनकी शिकायत आने पर समाधान किया जाएगा।
मनीष गुप्ता, दक्षिणी दिल्ली नगर निगम आयुक्त।