जहरीली होती जा रही है दिल्ली की हवा
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को कार्बन सेंटर बनाने से रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत है। हालांकि, पिछले 16 वर्षो में दिल्ली का हरित क्षेत्र 1.75 से बढ़कर 20.2 फीसद हो गया है। लेकिन वाहनों की बढ़ती संख्या खासकर पुराने वाहनों से होने वाले प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए तो इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे।
दिल्ली में सार्वजनिक वाहनों में कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) के प्रयोग के बाद वर्ष 1996 की तुलना में वर्ष 2003-04 में राजधानी में वायु प्रदूषण के स्तर में 24 फीसद तक की कमी आई थी। लेकिन, साल 2007 के बाद प्रदूषण के स्तर में फिर वृद्धि होने लगी है। केंद्रीय विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार बीते एक दशक में राजधानी के वायु प्रदूषण के स्तर में 21 फीसद की बढ़ोतरी हुई है।
सरकार का मानना है कि राजधानी में 70 फीसद वायु प्रदूषण वाहनों की वजह से हो रहा है। इसलिए सार्वजनिक परिवहन को सुदृढ़ बनाने की कोशिश करनी होगी।
बढ़ते प्रदूषण के कारण दिल्ली की गिनती एशिया के सबसे प्रदूषित शहर के तौर पर होने लगी है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के अध्ययन के अनुसार दिल्ली की हवा में पिछले 12 वर्षो में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 47 फीसद तक बढ़ गया है, जो कि सेहत के लिए काफी खतरनाक है।
दिल्ली में पीएम 10 खतरनाक स्तर पर
दिल्ली में वर्ष 2000 से 2011 के बीच पार्टिकुलर मैटर (पीएम)के स्तर में 47 फीसद की वृद्धि हुई है। चीन की राजधानी बीजिंग की तुलना में दिल्ली में पीएम 10 का स्तर लगभग दोगुना है। पार्टिकुलेट मैटर हवा में ठोस या तरल रूप में मौजूद अति सूक्ष्म कण हैं। जिन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है उन्हें पीएम 2.5 तथा जिनका व्यास 10 माइक्रोमीटर से कम होता है उन्हें पीएम 10 कहा जाता है। इन कणों में हवा में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड, कॉर्बन डाई ऑक्साइड, लेड आदि घुले होते हैं। जो कि उसे जहरीला बनाते हैं। यह मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है।
अमेरिकी अध्ययन का परिणाम भी चिंताजनक
हाल ही में अमेरिका के येले विश्वविद्यालय के अध्ययन में यह पाया गया है कि आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे अन्य देशों की तुलना में भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति बेहद खराब है। एनवायरमेंट परफार्मेस इंडेक्स (ईपीआइ) 2014 में शामिल 178 देशों में भारत 155 वें स्थान पर है। जबकि चीन 118 वें, ब्राजील 77 वें व दक्षिण अफ्रीका 72 वें स्थान पर है। विशेषज्ञों का कहना है कि यात्रियों की तुलना में बसों की संख्या काफी कम है। इससे निजी वाहन बढ़ रहे हैं। यदि सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को मजबूत नहीं बनाया गया तो आने वाले दिनों में हालात बेकाबू हो जाएंगे। निजी वाहनों की बढ़ती संख्या से वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है। सरकारी एजेंसियों को सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बस, ऑटो-रिक्शा व टैक्सी की संख्या में बढ़ोतरी करने या फिर अलग कॉरिडोर आदि मसलों पर गौर करना चाहिए।
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वाहनों की लगातार बढ़ती संख्या पर लगे अंकुश
दिल्ली में प्रदूषण के मानकों की लगातार अनदेखी होती रही है। यहां 70 लाख से ज्यादा वाहन हैं। वाहनों की लगातार बढ़ती संख्या पर अंकुश लगाने की जरूरत है। दूसरे राज्यों से आने वाले वायु प्रदूषण पर रोकथाम के कोई उपाय नहीं किए जा रहे हैं। इन वजहों से दिल्ली की हवा दिन प्रतिदिन प्रदूषित हो रही है।
- सुनीता नारायण (सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट निदेशक)