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नहीं रहे खुशवंत सिंह

By Edited By: Published: Fri, 21 Mar 2014 06:33 AM (IST)Updated: Fri, 21 Mar 2014 01:52 AM (IST)
नहीं रहे खुशवंत सिंह

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार और राजनीतिक विश्लेषक खुशवंत सिंह का 99 वर्ष की उम्र में सुजान सिंह पार्क स्थिति उनके आवास पर गुरुवार दोपहर निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थे। उनका अंतिम संस्कार लोधी रोड विद्युत श्मशान गृह में किया गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, अनेक साहित्यकारों और पत्रकारों ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी, वरिष्ठ स्तंभकार कुलदीप नैयर सहित तमाम चर्चित हस्तियां उनके आवास पर शोक संवेदना प्रकट करने पहुंचीं।

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श्मशान गृह में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल, फारूख अब्दुल्ला, कांग्रेस सांसद एमएस गिल और अभिनेता विनोद खन्ना समेत कई लोगों ने दिवंगत पत्रकार को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी। भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में लोकप्रिय खुशवंत सिंह अपने बेबाक लेखन और खुशमिजाज व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित खुशवंत सिंह का जन्म वर्ष 1915 में हदाली हुआ था। उनके पिता सर शोभा सिंह दिल्ली के प्रसिद्ध ठेकेदार थे। नई दिल्ली स्थित लुटियन जोन का निर्माण कार्य उन्होंने ही करवाया था।

अंतिम वक्त में पुत्र राहुल और पुत्री मीना खुशवंत सिंह के साथ थे। राहुल सिंह ने बताया-'कुछ हफ्ते पहले से वह खूब सोने लगे थे। पढ़ने की आदत आखिरी दिन तक बनी रही। सांस लेने में उनको थोड़ी परेशानी हो रही थी। उन्होंने बहुत ही जिंदादिली के साथ अपना जीवन बिताया। जो दिल में आता कह देते थे। भारत पाकिस्तान के विभाजन का उनको बहुत दुख था। वह अंतिम समय तक यही चाहते थे कि अधिक से अधिक पाकिस्तान के लोग भारत आएं और भारत के लोग पाकिस्तान जाएं।'

महिलाओं को कामुक नजर से देखने का दुख

खुशवंत सिंह को इस बात का दुख रहा कि उन्होंने महिलाओं को हमेशा कामुक नजर से देखा। पिछले साल प्रकाशित अपनी जीवनी 'खुशवंतनामा- द लेसंस ऑफ माई लाइफ' में उन्होंने लिखा है-'मैंने कभी भी इन भारतीय सिद्धांतों में विश्वास नहीं किया कि मैं महिलाओं को अपनी मां, बहन या बेटी के रूप में सम्मान दूं। उनकी जो भी उम्र हो, मेरे लिए वे वासना की वस्तु थीं और हैं। मुझे इस बात का दुख है कि मैं हमेशा अय्याश व्यक्ति रहा। मैंने बेकार के रिवाजों और सामाजिक बनने में अपना बहुमूल्य समय बर्बाद किया। मुझे देश-विदेश में सरकार की सेवा करने और पेरिस स्थित यूनेस्को में काम करने पर भी अफसोस है। इन सब की बजाय मैं लेखन कार्य और पहले शुरू कर सकता था।'


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