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नसों में सूजन व गांठ को न करें नजरअंदाज

By Edited By: Published: Thu, 06 Feb 2014 07:28 PM (IST)Updated: Thu, 06 Feb 2014 07:30 PM (IST)
नसों में सूजन व गांठ को न करें नजरअंदाज

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली :

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पैरों की नसों (शिरा) में सूजन और गांठें हो तो इसे सामान्य बात समझकर नजरअंदाज करना आपको भारी पड़ सकता है। अक्सर लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते और यह अल्सर बन जाता है। नसों की इस बीमारी के इलाज के लिए सफदरजंग अस्पताल में लेजर व रेडियो फ्रीक्वेंसी अबलेशन (आरएफए) तकनीक से सर्जरी शुरू की गई है। इस तकनीक से नसों की बीमारी की सर्जरी आसान हो गई है।

अस्पताल के सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. गुलशनजीत सिंह ने कहा कि शिरा शरीर के गंदे खून को हृदय में पहुंचाने का काम करती है। नसों के वॉल्व में खराबी आने पर खून पैरों से ऊपर हृदय की ओर न जाकर नीचे की ओर आने लगता है। इस वजह से पैरों की नसों में खून जमने लगता है और नसें मोटी होने लगती हैं। इससे नसों की लंबाई बढ़ जाती है और उनका रंग काला पड़ जाता है। उन्होंने बताया कि इसका कारण अधिक देर तक खड़े रहना है। उन्होंने कहा कि भारत में करीब 30 फीसद लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं। प्रसव के बाद 50 फीसद महिलाओं में यह विकार होता है। डॉ. गुलशनजीत के अनुसार अक्सर लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते और यह अल्सर बन जाता है। उन्होंने बताया कि अब तक पैरों में दो चीरे लगाकर (ओपन सर्जरी) बढ़ी हुई नसों को निकाल कर इलाज किया जाता था। इसमें चार घंटे का समय लगने के साथ मरीज को दर्द भी ज्यादा होता था। सर्जरी के दौरान मरीज को चार-पांच दिन तक बिस्तर पर रहना पड़ता था। लेजर तकनीक में लेजर फाइबर व आरएएफ तकनीक में एक तारनुमा कैथेटर की सहायता से बढ़ी हुई नसों को जला दिया जाता है। एक कैथेटर की कीमत 35 से 40 हजार रुपये आती है। एक कैथेटर को स्ट्रलाइज कर पांच मरीजों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए एक व्यक्ति की सर्जरी में करीब दस हजार रुपये तक का खर्च आता है। सफदरजंग अस्पताल में सर्जरी की इस तकनीक पर एक कार्यशाला में मरीजों की सर्जरी की गई, जिसे डॉक्टरों ने लाइव देखा। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बीडी अथानी ने कहा कि नई तकनीक से मरीजों को फायदा होगा।

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