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यमुना में प्रदूषण को लेकर सरकार सुस्त

By Edited By: Published: Thu, 10 Oct 2013 07:41 PM (IST)Updated: Fri, 11 Oct 2013 09:40 AM (IST)
यमुना में प्रदूषण को लेकर सरकार सुस्त

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : मूर्ति विसर्जन से यमुना में होने वाले प्रदूषण को लेकर सरकार कभी भी सचेत नहीं रही। यहां तक कि सरकार ने उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का भी पालन नहीं किया। अदालतों के गुस्से से बचने के लिए दिखावे के तौर पर विसर्जन वाले दिन प्रशासन थोड़ा बहुत सक्रिय जरूर हो जाता है, लेकिन ठोस उपाय अब तक नहंी किए गए हैं।

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अदालतों ने दो अलग-अलग आदेश देकर सरकार को प्रतिमा विसर्जन से होने वाले प्रदूषण को रोकने को कहा था, लेकिन इसमें एक ही आदेश पर थोड़ा बहुत काम हो पाया है, लेकिन दूसरे महत्वपूर्ण आदेश पर कोई भी काम नहीं हुआ है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि यमुना के साथ-साथ ऐसे तालाब बनाए जाएं, जहां पूजा सामग्री को विसर्जित किया जा सके और साथ -साथ इस सामग्री को हटा दिया जाए और प्रदूषित पानी को शोधित करके यमुना में डाला जाए, लेकिन सरकार ने इस पर बिल्कुल भी काम नहीं किया। दिल्ली उच्च न्यायालय में जन हित याचिका दायर करने वाले स्वयंसेवी संगठन तपस के संयोजक विनोद कुमार जैन बताते हैं कि यह ऐसा आदेश था, जिसकी पालना करके सरकार यमुना में साल भर डाले जाने वाली पूजा सामग्री से हो रहे प्रदूषण से निजात पा सकती थी।

दूसरा आदेश इससे पहले आया था। इस आदेश पर थोड़ा बहुत काम हुआ, लेकिन नाकाफी रहा। वर्ष 2007 में अदालती आदेश के बाद सरकार ने लगभग एक दर्जन घाटों को चिन्हित किया और निर्देश दिए कि केवल इन्हीं घाटों पर मूर्ति विसर्जन की इजाजत दी जाए। इन घाटों के किनारे कुछ दूरी पर जाल लगाए गए, ताकि प्रतिमा व उसकी सामग्री आगे यमुना में न जाए और अगले दिन इस सामग्री को हटा दिया जाता है, परंतु शासन-प्रशासन के ये प्रयास उस समय नाकाफी साबित हो जाते हैं, जब लोग इन घाटों के अलावा भी जगह-जगह यमुना में प्रतिमा विसर्जित कर देते हैं।

जानकार बताते हैं कि इन घाटों के साथ लगभग सौ ऐसे स्थान हैं, जहां प्रतिमा प्रवाहित कर दी जाती हैं। जिन्हें निकालना प्रशासन के लिए बहुत मुश्किल होता है। वजह यह भी है कि यमुना में पानी का प्रवाह बेहद कम होने के कारण पूजा सामग्री वहीं किनारे पड़ी-पड़ी सड़ जाती है।

पर्यावरणविद् बताते हैं कि सरकार को करना तो यह चाहिए कि लोगों को प्रतिमा प्रवाहित करने की इजाजत नहीं देनी चाहिए, बल्कि लोग प्रशिक्षित कर्मचारियों को प्रतिमाएं सौंप दें, जिनकी प्राथमिक जांच के बाद ही इन्हें प्रवाहित किया जाए और पूजा सामग्री को पहले ही कर्मचारी यमुना के बाहर एकत्र कर लें।

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