दैनिक जागरण से सहवाग की खास बातचीत, जानिए क्या हैं वीरू के खास फंडे
अपने ट्वीट से तहलका मचाने वाले क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग अब नए अवतार में सामने आने वाले हैं।
अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। क्रिकेट के मैदान में बल्ले से, कमेंट्री बॉक्स में माइक से और सोशल मीडिया में अपने ट्वीट से तहलका मचाने वाले क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग अब नए अवतार में सामने आने वाले हैं। वह 15 एपिसोड वाली वेबसीरीज 'वीरू के फंडे' लेकर सबके सामने आ रहे हैं। शोएब अख्तर की गेंदों पर लंबे-लंबे छक्के मारने वाले सहवाग अब ऑनलाइन लोगों को पत्नी से बचने और सास के तानों से निपटने के गुर सिखाते दिखाई देंगे। इस वीडियो सीरीज को ऑनलाइन वीयू में देखा जा सकता है। सहवाग ने इस दौरान क्रिकेट पर कम और क्रिकेट से इतर ज्यादा बातचीत की। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश..
- टेस्ट कप्तान विराट कोहली और आप दिल्ली के लिए खेलते थे। जब आपने उनको पहली बाद देखा तो क्या आपको लगा था कि वह इस मुकाम तक पहुंचेंगे?
सहवागः पहली मुलाकात में मुझे नहीं लगा कि कोहली गोली की तरह शॉट मारेगा। इसलिए मैंने बाद में उसकी तुलना गोली से की। मैं कहता हूं कि पाकिस्तान को गोली से तो डर लगता नहीं, लेकिन कोहली से लगता है। पाकिस्तान के खिलाफ उनके आंकड़े और बेहतर हुए हैं। सच कहूं तो पहली मुलाकात के समय मुझे नहीं लगा था कि वह इतने आगे तक जाएंगे।
- आप मैदान और कमेंट्री बॉक्स के बाहर क्रिकेट की बात करना पसंद नहीं करते। खास तौर पर मीडिया से?
सहवाग: मैंने क्रिकेट खेल ली और जो दिखाना था वह दिखा दिया। अब मेरे पास क्रिकेट पर बात करने को कुछ खास नहीं है। मेरा एक कमेंट बहुत सारे खिलाडि़यों को निराश कर सकता है इसलिए मैं नकारात्मक होने की जगह अधिकतर तारीफ करता हूं। अगर कोई खराब खेले और उसके लिए मेरे मुंह से कुछ खराब निकल जाए तो उसे बुरा लगेगा। मैं पूरे करियर में सकारात्मक रहा हूं इसीलिए मीडिया में ज्यादा बात नहीं करता। अब कमेंट्री बॉक्स में तो सामने मैच चलता है और क्रिकेट पर बात करनी ही होती है इसलिए कहना पड़ता है।
- क्रिकेटर से कमेंटेटर का सफर कैसा रहा? क्या अब भी वही पहली वाली फीलिंग आती है?
सहवागः बड़ा मुश्किल है इसका जवाब देना। हां इतना जरूर है कि वहां भी हम कुछ न कुछ सीखते हैं। पहली बार मुझे अहसास हुआ कि कमेंटेटर की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती। खिलाड़ी तो टेस्ट मैच खेलते हैं, लेकिन कमेंटेटर मैच शुरू होने के पहले आते हैं और खत्म होने के बाद जाते हैं। हमें ज्यादा समय बैठना पड़ता है। हालांकि इस दौरान सुनील गावस्कर, कपिल देव और विदेशी खिलाड़ियों से अच्छी-अच्छी कहानियां सुनने को मिलती हैं, जिन्हें मैं अपने फंडों में शामिल करूंगा।
- आपके पसंदीदा कमेंटेटर कौन हैं?
सहवागः सुनील गावस्कर। जो मैदान पर होता है वह उसे अच्छी तरह बयां करते हैं। वह क्रिकेट को बहुत अच्छी तरह जानते हैं और बारीकियों के बारे में बताते हैं।
- वीरू के फंडे के पीछे किसका दिमाग है?
सहवागः जब क्रिकेट खेलता था तब भी जिंदगी को इतना सीरियसली नहीं लेता था आज भी वही करता हूं। आमतौर पर वीरू के फंडे आम जिंदगी से जुड़े हुए हैं। हर किसी को जिंदगी में कुछ न कुछ चाहिए या कुछ दिक्कतें हैं। मैंने क्रिकेट करियर में जितना सीखा है उसी को मैं इन फंडों के जरिये लोगों को बताना चाहता हूं। इसमें कुछ क्रिकेट के उदाहरण है तो कुछ जिंदगी के और कुछ वन लाइनर, जो मैं कमेंट्री के दौरान बोलता हूं। मैंने देखा कि इस समय कंटेंट की बेहद कमी है और अगर क्रिकेट व कॉमेडी का मेल हो जाए तो कंटेंट बहुत उम्दा हो जाता है। लोग क्रिकेटर को देखना चाहते हैं। सुनना चाहते हैं, उसका पक्ष जानना चाहते हैं और मेरे पास वैसे भी कोई काम नहीं रह गया था। तो अपने फंडों से जनता को हंसाऊंगा।
- सोशल मीडिया में आप छाए रहते हैं?
सहवागः सोशल मीडिया पावरफुल हो गया है। जो मैं लिखता हूं, कमेंट्री करता हूं वह बहुत सारे लोगों तक पहुंचता है। मेरे ट्वीट को हजारों लोग रीट्वीट करते हैं इसलिए एक बार कमेंट्री करते हुए ऐसा आइडिया आया कि अपने प्रशंसकों के लिए कुछ करना चाहिए। मेरा दोस्त है विक्रम साठे। वह खुद क्रिकेटरों की मिमिक्री करते हैं। लेकिन पहली बार उन्होंने खुद नहीं किया और मुझसे कॉमेडी कराई। वह पर्दे के पीछे हैं और मैं पर्दे के आगे।
- आज आप सबको फंडे बता रहे हैं, लेकिन जब आप अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में या वैवाहिक जीवन में प्रवेश कर रहे थे तब क्या आपको इन फंडों की जरूरत पड़ी थी?
सहवागः ये सब चीजें अनुभव से आती हैं। जब आप शादी करते हो या पहली बार अंतरराष्ट्रीय मैच के लिए मैदान पर उतरते हो तब उसके बारे मे ज्यादा पता नहीं होता। उसके बाद ही अनुभव आता है। अगर मुझे पहले ही पता होता कि मैं तिहरा शतक लगाने वाला पहला भारतीय बनूंगा तो मैं इसकी भविष्यवाणी कर देता। मैंने अपने वैवाहिक जीवन और क्रिकेट करियर से यह सब सीखा।
- क्या नजफगढ़ की गलियों और जूनियर क्रिकेटरों की संगत से आप इतने हाजिरजवाब हो गए?
सहवाग: (हंसते हुए) मतलब आप ये कहना चाह रहे हो कि जो नजफगढ़ में नहीं रहा उसका दिमाग नहीं चलता है? नजफगढ़ की गलियों में मेरा बचपन बीता। वहां से मैंने बहुत कुछ सीखा। अंडर-19 क्रिकेट में जाने के बाद मैं नजफगढ़ में कम ही रहा और देश-विदेश में खेलता रहा। मैंने अपने दोस्तों से काफी कुछ सीखा कि एक मध्यवर्गीय और उच्च मध्यवर्गीय परिवार को क्या चाहिए? अपना काम करना, टाइम पर खाना और सो जाना। इसीलिए आप देखेंगे कि आजकल जो शो बनते हैं वह भी मध्य वर्ग को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं न कि उच्च वर्ग को ध्यान में रखकर।
- आपका फेवरिट फंडा क्या है?
सहवागः मेरे बहुत सारे फंडे हैं। अगर आपको अपनी पत्नी से बहस करना है तो खुद को नॉनस्ट्राइकर बल्लेबाज समझो। इसका मतलब यह है कि बीवी स्ट्राइक पर है और आप नॉनस्ट्राइकर हैं। जिस तरह नॉनस्ट्राइकर रन नहीं बना सकता उसी तरह आप बहस नहीं जीत सकते। पत्नी अंपायर की तरह होती है। एक बार आप अंपायर से बहस कर सकते हो, लेकिन बीवी से नहीं। क्योंकि अंपायर तो अगले मैच में भूल जाएगा, लेकिन बीवी उस बहस को जीवनभर याद रखेगी।