सचिन का यूडीआरएस का समर्थन, पर तीसरे अंपायर को मिलें अधिकार
सचिन ने यूडीआरएस का समर्थन किया है, पर साथ में कहा है कि तीसरे अंपायर को हस्तक्षेप का अधिकार मिलना चाहिए।
सुबोध मयूरे, मुंबई। सचिन तेंदुलकर ने अंपायर निर्णय समीक्षा प्रणाली (यूडीआरएस) के साथ अपने करियर में सिर्फ एक सीरीज खेल थी। श्रीलंका में 2008 में हुई इस सीरीज में भारतीय टीम को 2-1 से शिकस्त मिली थी। जहां एक ओर दूसरी टीमें इस प्रणाली के इस्तेमाल से खुश थीं वहीं भारतीयों ने इसकी अनदेखी की। हालांकि, यूडीआरएस की कुछ आलोचना भी हुई। अब जब इसकी तकनीक में सुधार किया गया तो भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने भी इसके इस्तेमाल पर सहमति जता दी। इसके बाद भारत और इंग्लैंड के बीच वर्तमान सीरीज में इस रेफरल प्रणाली का पदार्पण हुआ। 1989 में पाकिस्तान के खिलाफ कराची में टेस्ट पदार्पण करने वाले महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने अपने टेस्ट पदार्पण की 27वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर मिड-डे से यूडीआरएस और अन्य मुद्दों पर बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश-
टेस्ट पदार्पण की वर्षगांठ पर
15 नवंबर मेरे लिए खास दिन है। इस दिन ऐसा कुछ (भारत के लिए खेलना) हुआ था, जिसका मैं हमेशा सपना देखता था। यह हमेशा मेरे लिए खास दिन रहेगा।
बोर्ड के यूडीआरएस के इस्तेमाल के फैसले पर
इससे मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। मैंने ऐसा कभी नहीं कहा कि तब जो कुछ भी बीसीसीआइ को लगा वह स्थायी था और वे इसमें कभी सुधार नहीं करेंगे। समय के साथ रिव्यू प्रणाली में बदलाव हुआ। मुझे नहीं लगता कि यह नकारात्मक कदम है। मैं इसका समर्थन करता हूं। यह बीसीसीआइ द्वारा लिया गया एक अच्छा फैसला है।
2008 में यूडीआरएस की कमी पर
वहां कुछ ऐसी चीजें थी जो हमें पसंद नहीं आईं। हमें तकनीक को लेकर आश्वस्त नहीं किया गया था और मैंने कहा था कि समय के साथ चीजें बदलेंगी। तकनीक में सुधार हुआ है और इस पर बहुत शोध किया गया है। हम कुछ निश्चित चीजों से सहमत नहीं थे क्योंकि दुनिया के एक हिस्से में स्निकोमीटर का इस्तेमाल हो रहा था, दूसरे हिस्से में हॉटस्पॉट का। जिंबाब्वे और बांग्लादेश के बीच टेस्ट मैच के दौरान तो किसी को पता ही नहीं था कि क्या इस्तेमाल किया गया। दुनिया के सभी हिस्सों में इसे आदर्श के रूप में बनाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आप कहां खेल रहे हो, बल्कि क्रिकेट के नियमों को आदर्शपूर्ण होना जरूरी है।
राजकोट की दूसरी पारी में पुजारा के फैसले पर
पुजारा के नॉटआउट होने के बावजूद यूडीआरएस के वहां होने पर भी हमने उन्हें आउट होते हुए देखा। क्या तीसरे अंपायर को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं होना चाहिए और फैसले को सही करना चाहिए। मुझे लगता है, हां। यूडीआरएस की पूरी अवधारणा के पीछे सही फैसला प्राप्त करना है। इसे एक सा और लगातार सही होना चाहिए। तीसरे अंपायर को हस्तक्षेप का अधिकार देना चाहिए। सभी तीनों अंपायरों को एक टीम की तरह एक साथ काम करना चाहिए और यदि तीसरा अंपायर कुछ पाता है तो उसे मैदानी अंपायरों को इसके बारे में बताने की स्थिति में होना चाहिए। 'मुझे लगता है कि यह नॉटआउट है' या इसका विपरीत भी हो सकता है। यह सब सही फैसला प्राप्त करने के लिए है। इसलिए आपको इसके लिए सही तरीके का इस्तेमाल करना चाहिए।
भारत के यूडीआरएस के इस्तेमाल के फायदे पर
यदि भारत फायदे में रहता है तो इंग्लैंड भी फायदे में रहेगा। यदि भारत नुकसान में रहता है तो इंग्लैंड को भी नुकसान होगा। यह दोनों टीमों के लिए एक जैसा है। यह एक टीम के लिए फायदेमंद और दूसरी के लिए नुकसानदायक नहीं हो सकता है।