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पारदर्शी व जवाबदेह बने बीसीसीआइ: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) से सोमवार को कहा कि वो निजी संस्था नहीं है और एक मशहूर खेल की ट्रस्टी होने के नाते उसे अपना काम पारदर्शी तरीके से करना चाहिए। साथ ही अन्य सार्वजनिक निकायों की तरह उत्तरदायी होना चाहिए।

By ShivamEdited By: Published: Tue, 12 Apr 2016 12:05 AM (IST)Updated: Tue, 12 Apr 2016 12:06 AM (IST)
पारदर्शी व जवाबदेह बने बीसीसीआइ: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) से सोमवार को कहा कि वो निजी संस्था नहीं है और एक मशहूर खेल की ट्रस्टी होने के नाते उसे अपना काम पारदर्शी तरीके से करना चाहिए। साथ ही अन्य सार्वजनिक निकायों की तरह उत्तरदायी होना चाहिए।

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शीर्ष अदालत के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्लाह की खंडपीठ ने बीसीसीआइ से कहा, 'आप कोई निजी संस्था नहीं हैं। आप उत्तरदायी और जवाबदेह हैं। आपसे उम्मीद की जाती है कि आप सार्वजनिक निकायों की तरह काम करें। आप खेल के ट्रस्टी हैं। आपकी सभी गतिविधियों से विश्वास पैदा होना चाहिए। आप इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं कि हम बोर्ड में किसी भी तरह का बदलाव नहीं होने देंगे।' अदालत ने पूछा, 'आप बोर्ड के काम में पारदर्शिता, जवाबदेही, निष्पक्षता लाने जैसे प्रशंसनीय लक्ष्यों का विरोध कैसे कर सकते हैं।'

अदालत ने यह बात बीसीसीआइ के संस्थापक सदस्यों में से एक क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआइ) द्वारा न्यायमूर्ति लोढ़ा कमेटी की रिपोर्ट में 'एक राज्य एक वोट' की सिफारिश का विरोध करने के कारण कही। बीसीसीआइ और उसके सहयोगी संघ लोढ़ा कमेटी की एक राज्य एक वोट, बोर्ड में सीएजी का प्रतिनिधित्व, अधिकारियों का कार्यकाल दो बार तक सीमित करने और अधिकारियों की आयु सीमा 65 साल तय करने की सिफारिशों के खिलाफ हैं। इसी पर अदालत में सुनवाई चल रही है।

अदालत ने साफ कर दिया कि बीसीसीआइ या उसके सहयोगियों की तरफ से किसी भी तरह के अवरोध लगाने वाले प्रस्ताव को वह अच्छा नहीं मानेगी। अदालत ने कहा, 'लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों का मकसद बीसीसीआइ को जवाबदेह, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना है और अगर इसके लिए संरचनात्मक परिवर्तन किए जाते हैं तो इसका विरोध क्यों?

सीसीआइ ने खेल में अपने योगदान को बताते हुए ब्रेबोर्न स्टेडियम और कई नामी खिलाडि़यों को पहचान देने की बात कही। अदालत ने इस पर सीसीआइ से पूछा कि अगर वह किसी क्षेत्र या लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है और बीसीसीआइ से पैसा नहीं ले रही है तो वह कैसे खेल में अपना योगदान दे रही है। अदालत ने कहा, 'अगर आप क्रिकेट को बढ़ावा दे रहे हैं तो आपको बीसीसीआइ से पैसा क्यों नहीं मिलता। किसी के द्वारा यह कहना कि मैं क्रिकेट को बढ़ावा दे रहा हूं, लेकिन बोर्ड से पैसा नहीं ले रहा, काफी मुश्किल है।'

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