क्या सचिन, क्या द्रविड़....ये सच्चाई आपको हिला कर रख देगी!
सभी भारतीय क्रिकेट फैंस इस बात से वाकिफ हैं और सब ये जानते हैं कि क्रिकेट के दीवाने इस विशाल देश की राष्ट्रीय टीम में
(शिवम् अवस्थी), नई दिल्ली। सभी भारतीय क्रिकेट फैंस इस बात से वाकिफ हैं और सब ये जानते हैं कि क्रिकेट के दीवाने इस विशाल देश की राष्ट्रीय टीम में जगह पाना कितना मुश्किल है। हर एक प्रतिभाशाली क्रिकेटर एक बार टीम इंडिया की जर्सी पहनना चाहता है, या ये कहें कि ये उनके लिेए सपने जैसा है। कुछ तो फर्श से अर्श पर पहुंच जाते हैं लेकिन उससे कहीं ज्यादा ऐसे हैं जो फर्श से शुरू करके, फर्श पर ही रह जाते हैं। कुछ हुनरमंद खुद को तराशने के बाद किस्मत की सीढ़ी के जरिए उस मंजिल तक पहुंच जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो पूरी जिंदगी एढ़ियां रगड़ते रह जाते हैं लेकिन उनकी कोई सुध तक नहीं लेता। वो मैदान पर सब कुछ हासिल करते हैं लेकिन फिर भी उन्हें वो मंजिल नहीं मिलती। ऐसा ही एक नाम अमोल मजूमदार का भी है। अमोल ने गुरुवार को क्रिकेट को अलविदा कह दिया। अगले महीने वो 40 साल के होने वाले थे। काफी लोग शायद इस क्रिकेटर को पहचानते तक नहीं होंगे, लेकिन इसको पढ़ने के बाद आप शायद उन्हें कभी भूलेंगे भी नहीं।
- 21 सालों के ये आंकड़े आपको कर देंगे हैरानः
11 नवंबर 1974 में जन्म लेेने वाले अमोल अनिल मजूमदार ने मुंबई, असम और आंद्र प्रदेश के लिए घरेलू क्रिकेट खेला और 21 सालों तक वो संघर्ष करते रहे। दाएं हाथ के इस बल्लेबाज को बेशक आप न पहचानते हों लेकिन अगर आप क्रिकेट फैन हैं तो आपको ये जानना जरूरी है कि प्रथम श्रेणी क्रिकेट के पहले मैच में ही सबसे बड़ा स्कोर बनाने का विश्व रिकॉर्ड इसी खिलाड़ी के नाम है। इसके अलावा भारत की सबसे प्रतिष्ठित घरेलू ट्रॉफी रणजी ट्रॉफी में सबसे ज्यादा रन सचिन या द्रविड़ के नहीं बल्कि अमोल मजूमदार के नाम दर्ज हैं। अपने करियर में उन्होंने 171 प्रथम श्रेणी मैच खेले जिस दौरान उन्होंने 48.13 की औसत से 11,167 रन बनाए। इसमे 30 शतक और 60 अर्धशतक शामिल रहे और उनकी सर्वश्रेष्ठ पारी 260 की रही। इसके अलावा लिस्ट-ए क्रिकेट के 113 मैचों में अमोल ने 3286 रन बनाए।
- सचिन से जुड़ा वो किस्सा....:
सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली जब मुंबई के शारदा आश्रम स्कूल की तरफ से क्रिकेट खेलते हुए दुनिया भर में सुर्खियां बटोर रहे थे तब उन दोनों का एक दोस्त भी था जो उस टीम की जान था। वो क्रिकेटर अमोल ही थे। ये तीनों महारथी साथ ही बड़े हुए, एक ही कोच (रमाकांत आचरेकर, फोटो में अमोल के साथ) से ट्रेनिंग ली और जब सचिन-कांबली ने स्कूल क्रिकेट में 664 रनों की साझेदारी का रिकॉर्ड बनाया था तब बेंच पर अमोल ही वो खिलाड़ी थे जिनको अगले नंबर पर बल्लेबाजी करने आना था लेकिन ना कभी उस पारी के दौरान उन्हें खेलने का मौका मिला और ना अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में।
- वो विदाई के दर्द भरे शब्द:
अमोल एक बेहद शांत स्वभाव वाले खिलाड़ी थे जिन्होंने कभी चयनकर्ताओं के नजरअंदाज किए जाने के बावजूद अपने खेल को नहीं छोड़ा और लगातार घरेलू क्रिकेट में अपनी टीम में योगदान देते रहे। दिल में कहीं न कहीं राष्ट्रीय टीम से खेलने की आस हमेशा थी लेकिन किस्मत और भारतीय क्रिकेट की राजनीति को शायद वो कभी भाए नहीं। गुरुवार को क्रिकेट को अलविदा कहते वक्त जब उन्होंने अपनी बातें सामने रखीं उस समय कोई भी खेल प्रेमी अगर उन्हें सुनता तो भावुक हो जाता। अमोल ने कहा, 'मैं राष्ट्रीय टीम में जगह हासिल करने के सबसे करीब 1996 में आया था जब मैंने घरेलू क्रिकेट में लगातार चार शतक लगाए थे। मुझे भी लगने लगा था कि अब तो मौका मिल जाएगा। मेरे पास रन थे लेकिन इसके बावजूद मुझे इंडिया-ए टीम में भी नहीं चुना गया, तब मुझे लगा कि अब शायद कुछ नहीं हो पाएगा। मैंने 2003 में अपना क्रिकेट खत्म करने का फैसला ले लिया था। मैंने इंग्लैंड में करार भी कर लिया था। मैं खुद नहीं जाना चाहता था लेकिन मेरी पत्नी और पिता ऐसा चाहते थे लेकिन फिर मैंने दोबारा मुंबई में आकर ही खेलने का फैसला लिया। मैं हमेशा सोचता था कि शायद इस साल मौका मिलेगा, शायद इस बार मौका मिलेगा। हर साल मुझे भरोसा दिलाया जाता था। खैर, मैं भारत के लिए नहीं खेल सका और आगे बढ़ चला। यहां तक कि आइपीएल में भी खेलने का मौका नहीं मिला।'