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विश्व कप फाइनल में दिखा भारत की 'बाबुल' का दम, लॉर्ड्स पर बंगाल का रुतबा कायम

बाबुल ने क्रिकेट के सबसे प्रतिष्ठित मैदान पर अपनी लाजवाब झलक दिखा ही दी।

By Shivam AwasthiEdited By: Published: Sun, 23 Jul 2017 06:58 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jul 2017 10:46 PM (IST)
विश्व कप फाइनल में दिखा भारत की 'बाबुल' का दम, लॉर्ड्स पर बंगाल का रुतबा कायम
विश्व कप फाइनल में दिखा भारत की 'बाबुल' का दम, लॉर्ड्स पर बंगाल का रुतबा कायम

शिवम् अवस्थी, नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। भारतीय महिला क्रिकेट टीम रविवार को महिला विश्व कप फाइनल मैच में जब खेलने उतरी तो टीम की सबसे अनुभवी खिलाड़ियों से काफी उम्मीदें थीं। सबसे अनुभवी नामों में एक नाम 34 वर्षीय झूलन गोस्वामी का भी है जिन्हें उनके करीबी प्यार से 'बाबुल' बुलाते हैं। बेशक विरोधी टीम ने 228 रनों का सम्मानजनक स्कोर खड़ा किया और बाद में रोमांचक अंदाज में मैच व खिताब भी जीता..लेकिन बाबुल ने क्रिकेट के सबसे प्रतिष्ठित मैदान पर अपनी लाजवाब झलक अंतिम बार दिखा ही दी।

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- जब मिताली ने किया बाबुल पर भरोसा 

फाइनल में शुरुआती तीन विकेट तो भारत की स्पिनर्स ने निकाले। इंग्लैंड ने 63 रन पर अपने तीन विकेट गंवा दिए थे लेकिन टेलर और स्किवर की जोड़ी ने चौथे विकेट के लिए 83 रनों की साझेदारी को अंजाम दे दिया था। दोनों ही बल्लेबाज मजबूती से इंग्लैंड को आगे ले जा रही थीं। उस समय जरूरत थी इस जोड़ी और साझेदारी को तोड़ने की। ऐसे में कप्तान मिताली राज ने अपनी सबसे अनुभवी व महिला वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट हासिल करने वाली झूलन को गेंद थमा दी।

- कप्तान के विश्वास पर खरी उतरीं

झूलन ने भी अपने अनुभव और प्रतिभा का शानदार नमूना पेश किया। पारी के 33वें ओवर में झूलन ने टेलर को विकेट के पीछे कैच आउट कराया और इस साझेदारी को तोड़कर टीम इंडिया में वापस जोश भर दिया। वो यहीं नहीं रुकीं, अगली ही गेंद पर झूलन ने फ्रेन विल्सन को अपनी शानदार यॉर्कर लेंथ गेंद पर एलबीडब्ल्यू आउट कर दिया। अब झूलन हैट्रिक पर थीं। उन्हें हैट्रिक तो नहीं मिली लेकिन 38वें ओवर की पहली ही गेंद पर झूलन ने अर्धशतक जड़कर खेल रही नेटली स्किवर को भी एलबीडब्ल्यू आउट करके पवेलियन का रास्ता दिखा दिया। झूलन ने इंग्लैंड के मजबूत मिडिल ऑर्डर को ध्वस्त करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अपने 10 ओवरों में कुल 23 रन लुटाते हुए तीन विकेट झटके। इसमें तीन मेडन ओवर भी शामिल थे।  

- लॉर्ड्स पर बंगाल का रुतबा कायम

क्रिकेट का मक्का कहा जाने वाला लॉर्ड्स का मैदान भारतीय क्रिकेट इतिहास में खास जगह रखता है। यहीं पर भारत ने अपना पहला विश्व कप खिताब 1983 में जीता था और 2002 में भारत ने नेटवेस्ट सीरीज फाइनल की यादगार वनडे जीत भी यहीं हासिल की थी। इसके साथ ही इस मैदान से एक और सुनहरी याद जुड़ी है। वो यादगार लम्हा था जून 1996 का, जब बंगाल के एक बल्लेबाज ने पहली बार भारतीय टेस्ट टीम में कदम रखा था। पहले ही मुकाबले में इस बल्लेबाज को मेजबान इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स के मैदान पर उतरना था। वो न सिर्फ मैदान पर उतरे बल्कि अपने पहले ही टेस्ट में शतक जड़कर कमाल कर दिया। जी हां, हम बात कर रहे हैं सौरव गांगुली की। वो बंगाल के एक लाजवाब क्रिकेटर व आगे बनने वाले कप्तान का उदय था। जबकि रविवार को बंगाल के एक और चेहरे (झूलन) ने इस मैदान पर बड़े मैच में कमाल किया, वो भी अपने अंतिम विश्व कप करियर मैच में। बस फर्क इतना रहा कि गांगुली ने पुरुष क्रिकेट खेलते हुए टेस्ट में कमाल किया था जबकि झूलन ने महिला क्रिकेट टीम की तरफ से खेलते हुए वनडे क्रिकेट में कमाल किया है।

- रोज 80 किलोमीटर का संघर्ष

ऑलराउंडर झूलन गोस्वामी का जन्म पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के छोटे से गांव चकदाह में हुए था। एक मध्यम वर्गीय भारतीय परिवार की झूलन के परिजन चाहते थे कि वो क्रिकेट से ध्यान हटाकर पढ़ाईं पर ध्यान केंद्रित करें लेकिन झूलन ने किसी की नहीं सुनी। 1992 विश्व कप और बाद में 1997 महिला विश्व कप टीवी पर देखने के बाद क्रिकेट झूलन के दिल-दिमाग में घर कर गया था। वो 15 की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू कर चुकी थीं। उनके गांव में दूर-दूर तक क्रिकेट का नामोनिशान नहीं था और इससे जुड़े साधन भी नहीं थे। साधन के आभाव को नजरअंदाज किया और साधना को मजबूत करते हुए उन्होंने सालों तक हर दिन अपने गांव से 80 किलोमीटर का सफर तय करके कोलकाता में क्रिकेट ट्रेनिंग ली। जनवरी 2002 में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ वनडे और टेस्ट क्रिकेट में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का आगाज किया और देखते-देखते 5 फीट 11 इच की ये ऑलराउंडर विश्व क्रिकेट में छा गई। साल 2007 में आइसीसी महिला क्रिकेटर ऑफ द इयर का खिताब जीता, करियर के दौरान कुछ समय के लिए भारतीय टीम की कप्तान भी बनीं और आज विश्व महिला वनडे क्रिकेट में सर्वाधिक विकेट लेने वाली खिलाड़ी भी हैं। महिला क्रिकेट एक्सपर्ट व लेखक सुनील कालरा कहते हैं, 'एक समय ऐसा था जब ट्रेनिंग ग्राउंड पर युवा झूलन की गेंदों से कैंप के पुरुष क्रिकेटर भी घबराने लगते थे। झूलन न सिर्फ अपनी गेंदों से उन लड़कों को परेशान करती थीं बल्कि बल्लेबाजी में भी दम दिखाया करती थीं। ये एक शानदार क्रिकेटर की शुरुआत थी।'

- जिससे ली प्रेरणी, उसी के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ा

झूलन से पहले भारतीय महिला वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट नीतू डेविड के नाम थे। नीतू डेविड ने वनडे क्रिकेट में 141 विकेट लिए थे और झूलन भी उनके जैसा बनना चाहती थीं और उन्हीं को अपनी प्रेरणा मानती थीं। झूलन ने नीतू डेविड के रास्ते पर चलते हुए भारत का सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज बनने का सपना देखा था, उन्होंने न सिर्फ नीतू के रिकॉर्ड को तोड़ा बल्कि भारत ही नहीं, विश्व की सर्वश्रेष्ठ महिला वनडे गेंदबाज भी बनीं। 


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