बीसीसीआइ संविधान पारदर्शिता सुनिश्चित करने में सक्षम नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) का संविधान पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में पूरी तरह अक्षम है और इसे बदलकर ही इन लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति एफएमआइ कलीफुल्ला की पीठ ने
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि बीसीसीआइ का संविधान पारदर्शिता, निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में पूरी तरह अक्षम है और इसे बदलकर ही इन लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति एफएमआइ कलीफुल्ला की पीठ ने कहा कि बीसीसीआइ के मौजूदा ढांचे में बदलाव के बिना यह हासिल करना संभव नहीं है।'
पीठ ने न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) नियुक्त किये गए वरिष्ठ एडवोकेट गोपाल सुब्रहमण्यम के इस बयान के बाद यह टिप्पणी की कि यदि बीसीसीआइ का संविधान इन मूल्यों को हासिल नहीं कर सकता तो इसे अवैध करार दिया जा सकता है, क्योंकि क्रिकेट बोर्ड सार्वजनिक काम कर रहा है। सुब्रहमण्यम ने कहा, 'आप सार्वजनिक काम कर रहे हैं लेकिन निजी दर्जा भी बरकरार रखना चाहते हैं। यदि आपका सार्वजनिक काम है तो आपको निजी दर्जा गंवाना होगा। यह देश के लिए राष्ट्रीय टीम का चयन करता है तो निजी सोसायटी नहीं हो सकता। यह सार्वजनिक उपक्रम है।'
बड़े पैमाने पर ढांचागत बदलाव की सिफारिशों को सही ठहराते हुए सुब्रहमण्यम ने कहा कि बीसीसीआइ यदि संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात करता तो सिफारिशों की जरूरत ही नहीं पड़ती। उन्होंने कहा, 'सिफारिशें सही दिशा में हैं जिससे यह तय होगा कि संस्थागत पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात किया गया है। जस्टिस लोढ़ा समिति के सुझावों का बीसीसीआइ को ही फायदा होगा, क्योंकि इन्हें लागू करने पर संस्था की विश्वसनीयता सुनिश्चित होगी।'
पीठ ने सुब्रहमण्यम से पूछा कि वह दोनों बिंदुओं को कैसे जोड़ते हैं, क्योंकिजिन राज्यों को पहले मताधिकार नहीं था, उन्हें अब मिल जाएगा, लेकिन जिनके पास पहले से है, उनका छिन जाएगा। न्यायमित्र ने कहा कि दोनों बिंदु समानता के आधार पर जुड़ते हैं कि हर राज्य को बराबर मौका मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि आइपीएल की संचालन परिषद में और पारदर्शिता लाने के लिए टीमों के सदस्यों को जोड़ा जाना चाहिए। पीठ ने सट्टेबाजी को वैधानिक बनाने पर बीसीसीआइ का जवाब मांगा, क्योंकि सुब्रहमण्यम ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है। बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ एडवोकेट केकेवेणुगोपाल ने कहा कि इसके लिए कानून पारित करना होगा और बीसीसीआइ इस दलील से सहमत नहीं है। उन्होंने कहा कि हर राज्य का इसे लेकर अपना कानून है और यह व्यवहारिक नहीं होगा।