फिर सही निकली दैनिक जागरण की खबर, एसजीएम टली, SC हो सकता है सख्त
बीसीसीआइ के संविधान के मुताबिक एसजीएम आयोजित करने के लिए दस दिन पहले नोटिस देना होता है। अगर इससे कम समय में इसे आयोजित करना हो तो सभी राज्य संघों की सहमति जरूरी होती है।
नई दिल्ली, अभिषेक त्रिपाठी। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) की मंगलवार को होने वाली विशेष आम सभा (एसजीएम) छह राज्य संघों के विरोध के कारण टाल दी गई। दैनिक जागरण ने पहले ही बता दिया था कि यह बैठक खटाई में पड़ सकती है। सोमवार की रात तक चार राज्य संघों तमिलनाडु, सौराष्ट्र, केरल और हरियाणा ने कार्यवाहक अध्यक्ष सीके खन्ना को इस बैठक को आयोजित नहीं करने को कहा था तो मंगलवार को कर्नाटक और गोवा क्रिकेट संघ भी इसके विरोध में कूद गए।
बीसीसीआइ के संविधान के मुताबिक एसजीएम आयोजित करने के लिए दस दिन पहले नोटिस देना होता है। अगर इससे कम समय में इसे आयोजित करना हो तो सभी राज्य संघों की सहमति जरूरी होती है। एक के भी विरोध पर एसजीएम नहीं हो सकती। जो भी हो एसजीएम के टलने के बाद 14 जुलाई को लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए होने वाली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट बीसीसीआइ के खिलाफ कड़ा रुख अपना सकता है।
नहीं हुई रिपोर्ट पर चर्चा : इस बैठक में लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए बीसीसीआइ की कमेटी की रिपोर्ट पर चर्चा होनी थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। हालांकि खन्ना और विरोध करने वाले छह राज्य संघों की अनुपस्थिति के बावजूद बाकी लोगों ने गैरआधिकारिक बैठक की जिसमें लोढ़ा की सिफारिशों पर चर्चा हुई। लेकिन बैठक आधिकारिक नहीं थी इसलिए आठ सदस्यों की रिपोर्ट को संस्तुति नहीं मिल पाई। इस कारण अब इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नहीं रखा जा सकेगा। उधर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासकों की समिति (सीओए) इस पूरे मामले पर 14 को अदाल में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करेगी जिससे बोर्ड की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
अब माह के अंत में होगी बैठक : बोर्ड के कार्यवाहक सचिव अमिताभ चौधरी का कहना था खन्ना ने बैठक बुलाई थी, लेकिन बाद में उन्होंने ही इसे टालने के लिए कहा जिस कारण इस बैठक को आगे बढ़ाया जा रहा है। इसके इस महीने 26 या 27 तारीख को होने की संभावना है। बोर्ड के एक और पदाधिकारी ने कहा कि मुंबई में हुई पिछली एसजीएम को ही स्थगित करके उसे आगे बढ़ाया जा सकता था जिससे नई एसजीएम के लिए नोटिस नहीं देना पड़ता। लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर राय देने को लेकर जो बीसीसीआइ की समिति बनाई गई थी उसने अपनी पहली बैठक एक जुलाई को, जबकि दूसरी बैठक आठ जुलाई को की। ऐसी क्या मजबूरी थी तो दो बैठकों के बीच सात दिन का गैप रखना पड़ गया। इस समिति की घोषणा तो बीसीसीआइ ने 27 जून को ही कर दी थी। इस समिति ने जरा से काम के लिए इतने दिन क्यों खपा दिए?
चाहिए थी सबकी रजामंदी : सूत्रों के मुताबिक अमिताभ ने आठ जुलाई को एसजीएम बुलाने के लिए खन्ना को ईमेल किया। खन्ना ने बैठक बुलाने की संस्तुति की, लेकिन साथ ही लिखा कि इसमें सभी सदस्यों की सहमति जरूरी होगी। चौधरी की तरफ से बोर्ड के सदस्यों को एसजीएम का जो नोटिस भेजा गया उसमें भी यह लिखा गया कि इसमें सभी सदस्यों की सहमति की जरूरत होगी। बैठक के ठीक एक दिन पहले चार सदस्यों ने और बैठक वाले दिन दो सदस्यों इसका विरोध कर दिया जिसके कारण मजबूरी में बैठक टालनी पड़ी। बोर्ड के अधिकारी ने कहा कि अनुराग ठाकुर के अध्यक्ष रहते हुए एसजीएम हुई थी, लेकिन उसमें सभी की सहमति थी। इस मामले में बीसीसीआइ पहले भी कानूनी राय ले चुका है। स्वर्गीय जगमोहन डालमिया ने दिसंबर, 2002 में केवल दो दिन के नोटिस पर एसजीएम बुलाई थी, लेकिन उस समय भी कोई राज्य संघ इसके विरोध में नहीं था। अगर मंगलवार को बैठक की जाती तो विरोध करने वाले राज्य संघ इसके खिलाफ अदालत चले जाते।