लोढ़ा समिति से बचने के लिए बीसीसीआइ अब इस चीज के लिए भी तैयार
बीसीसीआइ अब तक खेल बिल का विरोध कर रहा था उसे अब कुछ संशोधन के साथ इसे अपनाने में कोई बुराई नजर नहीं आती।
अभिषेक त्रिपाठी, ग्रेटर नोएडा। जो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) अब तक खेल बिल का विरोध कर रहा था उसे अब कुछ संशोधन के साथ इसे अपनाने में कोई बुराई नजर नहीं आती। बीसीसीआइ किसी भी कीमत पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू नहीं करना चाहता है और इससे बचने के लिए वह उसी खेल बिल को हथियार बनाना चाहता है।
सोमवार को हुई बीसीसीआइ की कार्यकारी समिति की बैठक में भी यह तय किया गया था कि वह लोढ़ा समिति के दबाव में आए बिना अपने संविधान के अनुरूप ही 21 सितंबर को वार्षिक आम बैठक (एजीएम) आयोजित करेगा। यही नहीं बोर्ड ने अपने घरेलू क्रिकेट कार्यक्रम को भी बैठक में मंजूरी दे दी थी। इसमें किसी नई टीम को नहीं जोड़ा गया है, जबकि लोढ़ा समिति का कहना है कि घरेलू क्रिकेट का कार्यक्रम तय करने से पहले बिहार और पूर्वोत्तर के राज्यों सहित उन सभी राज्यों को बीसीसीआइ का सदस्य बनाया जाना चाहिए, जिनको अभी तक जोड़ा नहीं गया है। साथ ही साथ इन सभी राज्यों की रणजी टीमों को भी घरेलू कार्यक्रम में शामिल किया जाए।
तोप से बचने के लिए बंदूक मंजूर
बीसीसीआइ के एक अधिकारी ने कहा कि तोप से बेहतर है बंदूक का वार सह लो। लोढ़ा समिति की सिफारिशों से बेहतर है कि हम खेल बिल मान लें। बीसीसीआइ सचिव अजय शिर्के ने भी समिति के साथ पिछली बैठक में कुछ सुधारों को लागू करने में व्यवहारिक दिक्कतों का जिक्र किया था। जिसमें एक राज्य-एक मतदान, पदाधिकारियों की उम्र 70 साल तक सीमित करना, कुल मिलाकर नौ साल का कार्यकाल और बीच में तीन साल का ब्रेक का समय शामिल है।
इसके अलावा अधिकारियों को राज्य या बीसीसीआइ में से एक पद चुनने में भी दिक्कत है। बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा कि अगर केंद्र सरकार खेल बिल लाती है और हमारी कुछ बातों को मानती है तो हमें उससे कोई ऐतराज नहीं होगा। उन्होंने कहा कि हमें अधिकतम उम्र की बंदिश पर कोई ऐतराज नहीं है। कार्यकाल की कुल सीमा पर खेल बिल में संशोधन करके हम इसे मानने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि ये राजनीतिक मामला है और इस पर सभी पार्टियों में सहमति बनानी होगी। जब उनसे पूछा गया कि खेल बिल से तो बोर्ड आरटीआइ के दायरे में आ जाएगा तो उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को इसके लिए अपने आरटीआइ बिल में संशोधन करना होगा, क्योंकि क्रिकेट बोर्ड सरकार से कोई पैसा नहीं लेता है।
बीसीसीआइ के अधिकारियों को उम्मीद है कि अगले साल बजट सत्र तक खेल बिल सदन में पेश हो सकता है। मालूम हो कि पहले बीसीसीआइ में शामिल राजनेताओं ने ही संसद में खेल बिल की राह रोकी थी। लोढ़ा समिति ने बीसीसीआइ को संवैधानिक सुधारों से जुड़े 15 बिंदुओं को लागू करने के लिए 15 अक्टूबर तक का समय और पूरे सुधार लागू करने के लिए 18 जनवरी तक का समय दिया है। इनमें प्रसारण अधिकारों समेत विभिन्न तरह के अनुबंध देने की नीति से जुड़े सुधार भी शामिल हैं।
बीसीसीआइ की टकराव की रणनीति
बोर्ड अब लोढ़ा समिति से पूरी तरह टकराने के मूड में है। अधिकारियों ने कहा कि 21 सितंबर को होने वाली एजीएम में हम नई चयन समिति का चुनाव करने के साथ आइपीएल सहित सभी समितियां बनाएंगे। यही नहीं इसमें बीसीसीआइ सचिव पद पर फिर से शिर्के को चुना जाएगा। मालूम हो कि अनुराग ठाकुर के सचिव से अध्यक्ष बनने के बाद बोर्ड अध्यक्ष ने संविधान के अनुसार शिर्के को सचिव चुना था, लेकिन बोर्ड के संविधान के अनुसार अगली एजीएम में फिर से सचिव का चुनाव कराना पड़ता है और इसीलिए इस एजीएम में शिर्के को फिर से निर्विरोध सचिव चुना जाएगा। जब उनसे पूछा गया कि आपको नहीं लगता कि लोढ़ा समिति बोर्ड की इस सारी प्रक्रिया को शून्य घोषित कर देगी तो उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है। इस पर लोढ़ा समिति कुछ नहीं कर सकती। वह सुप्रीम कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट देगी और अगर कोर्ट हमसे कुछ कहती है तो हम उसका पालन करेंगे। हालांकि सूत्रों का कहना है कि बोर्ड चाहता है कि अब क्रिकेट की लड़ाई खुलकर सबके सामने आ जाए और इसके बाद वह कह सकेगा कि इससे क्रिकेट बर्बाद हो जाएगा। इसके लिए बोर्ड क्रिकेटरों को भी आगे कर सकता है और इसके बाद केंद्र सरकार खेल बिल लाने पर मजबूर हो जाएगी। सरकार और विपक्ष दोनों में ही बीसीसीआइ से जुड़े नेता हैं। बोर्ड के अधिकारी ने अभी हमारा सिर्फ एक स्टेटस है कि हम समीक्षा याचिका का इंतजार करेंगे।
अभी तक नहीं भेजी अनुपालन रिपोर्ट
बीसीसीआइ को 25 अगस्त तक 15 सूत्रीय सुझावों के पहले चरण को लेकर लोढ़ा समिति को अनुपालन रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन खबर लिखे जाने तक बीसीसीआइ की तरफ से ये रिपोर्ट नहीं भेजी गई थी। अधिकारी ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस अनुपालन रिपोर्ट से कोई फर्क पड़ने वाला है।