भारत के दबदबे ने जीता दिल
जश्न और खुशी के बीच बेहद आसानी से कहा जा सकता है कि यह सीरीज जीत भारतीय क्रिकेट की सर्वश्रेष्ठ सफलताओं में से एक है।
(हर्षा भोगले का कॉलम)
जश्न और खुशी के बीच बेहद आसानी से कहा जा सकता है कि यह सीरीज जीत भारतीय क्रिकेट की सर्वश्रेष्ठ सफलताओं में से एक है। टेस्ट क्रिकेट में तो निश्चित तौर पर। मुझे लगता है कि अगर कोई पिछली सफलताओं से इसकी तुलना करेगा तो उसे भी इस जीत के बराबर की सफलता तलाश करने में मेहनत करनी पड़ेगी। ईमानदारी से कहूं तो घरेलू परिस्थितियों में भारत की जीत की पूरी संभावना थी, लेकिन जिस दबदबे के साथ उन्होंने मैच जीते वह दिल जीतने वाला है।
विराट कोहली और रविचंद्रन अश्विन ने सीरीज में गजब का प्रदर्शन किया। इन दोनों को अपनी क्षमता के अनुसार सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते देखना अपने आप में काफी उत्साहजनक है। मगर चेन्नई में इनके अलावा भी कई अन्य खिलाडि़यों ने अपने प्रदर्शन से प्रभावित किया। टेस्ट टीम में अपना स्थान बनाने की कोशिश में जुटे दो युवा बल्लेबाजों ने सीनियर खिलाडि़यों के जल्दी आउट होने के बाद शानदार पारियां खेलीं। मैं लोकेश राहुल से काफी ज्यादा प्रभावित हुआ हूं, लेकिन 11 साल की उम्र से उनके दोस्त ने आखिरी मौके का भरपूर फायदा उठाया। उन्होंने ठीक वैसा ही व्यवहार किया जैसा एक बच्चा नया खिलौना मिलने पर करता है।
रणजी ट्रॉफी फाइनल में तिहरे शतक के बाद हम सभी करुण नायर के बारे में जानने को बेताब थे। एक और तिहरे शतक ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि हमें उनके बारे में काफी कुछ जानकारी मिलती रहेगी। युवा भारतीय खिलाड़ी कम से कम मौजूदा स्थितियों में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। इससे भारतीय खेल की अच्छी सेहत का अंदाजा लगता है। करुण नायर ने बहुत शानदार बल्लेबाजी की। उनका तिहरा शतक वीरेंद्र सहवाग की मुल्तान की पारी से बस थोड़ा ही धीमा था।
ऐसा कम ही होता है जब अश्विन के लिए कोई मैच खराब जाए, लेकिन जब ऐसा हुआ तो रवींद्र जडेजा ने अपने ही अंदाज में मोर्चा संभाला। उनके बारे में माना जाता है कि वह सिर्फ स्पिन की मदद वाली पिचों पर ही सफल होते हैं, लेकिन चेन्नई की पिच ऐसी बिल्कुल नहीं थी। यह भारतीय पिच थी, इसलिए यह कहा जा सकता है कि स्पिनरों के लिए थोड़ी मदद थी, लेकिन दो फिंगर स्पिनर इसी पिच पर दो विकेट लेने के लिए 397 रन लुटा चुके थे। जिस ढंग से उन्होंने (जडेजा) बेयरस्टॉ का कैच लिया, उससे यह साफ हो गया कि वह हमेशा मैच में बने रहना चाहते हैं। आप एक खिलाड़ी में ऐसी ही चीजें देखते हैं।
2016 में यह विराट कोहली का आखिरी मैच था। उनके लिए यह साल जैसा बीता है, वैसा बहुत ही कम खिलाडि़यों के लिए होता है। एक खिलाड़ी के तौर पर उनका कद काफी ऊंचा हो गया है, अब उन पर इन उम्मीदों पर हमेशा खरे उतरने की चुनौती रहेगी। यह आसान नहीं होगा। मगर इस साल का अंत तो उन्होंने शानदार तरीके से किया है।