सिर्फ जुबानी जंग आक्रामकता नहीं है
तीसरे दिन भारत ने जिस ढंग से गेंदबाजी की, वह आक्रामकता थी।
(हर्षा भोगले का कॉलम)
मैंने आक्रामक शब्द को अलग-अलग तरीकों से कई बार सुना है और भारत में इस क्रिकेट सीजन खासतौर से पिछले महीने में इसका इस्तेमाल जुबानी जंग के लिए किया गया। धर्मशाला में खेले गए टेस्ट मैच ने दिखा दिया कि यह सब बकवास है और यह हमें याद दिलाता है कि आक्रामकता का मतलब सकारात्मक सोच के साथ खेलना है न कि जुबानी जंग से।
भारतीय टीम बिना कुछ कहे भी काफी आक्रामक थी। सीरीज के निर्णायक मैच में भारतीय टीम ने पांच गेंदबाजों के साथ उतरने का फैसला किया, जबकि विराट कोहली टीम से बाहर थे और रहाणे, विजय और नायर की फॉर्म भी गड़बड़ाई हुई थी। यह दिखाता है कि भारतीय टीम को खुद पर कितना भरोसा है। निचले क्रम ने रन बनाकर अपने पांच गेंदबाजों को मैच जिताने का मौका दिया, इसे आक्रामकता कहते हैं। छह बल्लेबाजों के साथ खेलना दुनिया का सबसे आसान काम होता, लेकिन यह एक रक्षात्मक कदम होता।
तीसरे दिन भारत ने जिस ढंग से गेंदबाजी की, वह आक्रामकता थी। दूसरी पारी में अजिंक्य रहाणे ने जिस ढंग से बल्लेबाजी की, वह आक्रामकता थी और मुझे लगता है कि इस तरह के आत्मविश्वास ने टेस्ट मैच को भारत के पक्ष में मोड़ दिया। तीसरे दिन की गेंदबाजी सीरीज का सबसे अहम आकर्षण था। लंबे क्रिकेट सत्र के बावजूद उमेश यादव को पूरे दम से गेंदबाजी करते देखना, अश्विन को खुद को एक और अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित करना और जडेजा को एक अच्छे विकेट लेने वाले गेंदबाज के रूप में उभरते देखना सच में शानदार है।
106 रनों का स्कोर कभी भी बड़ा नहीं कहा जा सकता, लेकिन लोकेश राहुल की बल्लेबाजी मुझे बहुत पसंद आई। उन्हें लगता है कि कुछ शॉट न खेल पाने की वजह से उन्हें परेशानी होती है। मुझे लगता है कि उन्हें इन समस्याओं से निपटने के लिए हल अपने भीतर ही ढूंढने चाहिए और इसी तरह एक अच्छे बल्लेबाज के रूप में मजबूत होना चाहिए। आने वाले समय में उन्हें लगेगा कि चोट से उन्हें फायदा ही हुआ है। अगर वह अपना ध्यान रखते हैं और अपने राज्य के महान खिलाडि़यों द्रविड़ और कुंबले की तरह आक्रामकता को संभालना सीख जाते हैं, तो वह बड़े खिलाड़ी बन सकते हैं।
(पीएमजी)