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दो सच्ची कहानियां जो छू गईं 'दीवार' का दिल

पूर्व क्रिकेटर राहुल द्रविड़ ने शुक्रवार को खार जिमखाना क्लब में उन शीर्ष भारतीय खिलाडिय़ों पर लिखी प्रेरणादायी किताब लांच की, जो विकलांगता और विपरीत

By Jagran News NetworkEdited By: Published: Sat, 13 Sep 2014 01:57 PM (IST)Updated: Thu, 18 Sep 2014 03:50 PM (IST)
दो सच्ची कहानियां जो छू गईं 'दीवार' का दिल

मुंबई। पूर्व क्रिकेटर राहुल द्रविड़ ने शुक्रवार को खार जिमखाना क्लब में उन शीर्ष भारतीय खिलाडिय़ों पर लिखी प्रेरणादायी किताब लांच की, जो विकलांगता और विपरीत परिस्थितियों से उबरते हुए चैंपियन बने। इस किताब के सह लेखक पूर्व अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी संजय शर्मा हैं। किताब में शर्मा और उनकी बेटी मेदिनी ने विकलांग भारतीय खिलाडिय़ों की दास्तान लिखी है जिन्होंने मैदान में बड़ी उपलब्धियां हासिल की। द्रविड़ ने इस दौरान दो ऐसी कहानियों का जिक्र किया जो उनके दिल को छू गईं और प्रेरणादायी थीं। इनमें से एक इस किताब के जरिए उनके दिल तक पहुंची तो दूसरी क्रिकेट के मैदान से।

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- मुरलीकांत पटकर की अद्भुत दास्तांः

द्रविड़ को किताब पढऩे का शौक है। उन्होंने कहा कि वह मुरलीकांत पटकर की कहानी से काफी प्रेरित हुए जो पाकिस्तान के खिलाफ 1965 युद्ध के दौरान विकलांग हो गए थे। उन्हें गोली लगने से कई जख्म हुए थे, लेकिन उन्होंने जर्मनी में 1972 पैरालंपिक खेलों की व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। 41 वर्षीय द्रविड़ ने कहा 'बतौर खिलाड़ी जब आप क्रिकेट खेलते हैं तो आप पत्रकारों द्वारा साहस और बहादुर जैसे शब्द सुनते हैं जो खेल की उपलब्धियों के लिए इनका इस्तेमाल करते हैं। जब मैंने यह किताब पढ़ी तो मैंने महसूस किया कि साहस वह नहीं है जो हम क्रिकेट के मैदान पर करते हैं। इनके साहस के आगे यह कुछ भी नहीं है।'

- इस दिग्गज की कहानी भी छू गई 'दीवार' का दिलः

'दीवार' के नाम से मशहूर द्रविड़ ने पूर्व टेस्ट कप्तान मंसूर अली खान पटौदी से पहली बार हुई मुलाकात के अनुभव को भी याद किया। उन्होंने कहा कि वह इस बात से काफी प्रभावित हुए थे कि इस दिवंगत क्रिकेटर को इंग्लैंड में हुई कार दुर्घटना का कोई मलाल नहीं था जिसमें वह एक आंख की रोशनी गंवा बैठे थे। उन्होंने कहा कि जब मैं भारतीय टीम में आया था तो जैसे कि ज्यादातर युवा होते हैं, मैं भी मंसूर अली खान पटौदी का बहुत बड़ा प्रशंसक था। मैंने उन्हें खेलते हुए नहीं देखा था, लेकिन मैंने उन्हें देखा था। मैंने विशी (गुंडप्पा विश्वनाथ) और ईरापल्ली प्रसन्ना को उनके बारे में काफी बात करते हुए सुना है। इसलिए 1997 में जब मैं टीम में आया और मैं ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक टेस्ट मैच खेलने के लिए दिल्ली में था। मैंने सोचा कि यह पटौदी साहब से मिलने और बात करने अच्छा मौका है। मेरे अंदर उनसे पूछने या फोन करने का साहस नहीं था। मैंने अपने मित्र के जरिये उनसे मुलाकात का इंतजाम करवा लिया। हमने क्रिकेट के बारे में काफी बातें की और मैंने उनसे कप्तानी और और बल्लेबाजी के बारे में काफी सवालात किए।

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