बस्तर आईजी पर फैसला के लिए सीएम का इंतजार
बीमारी और विवादों का सामना कर रहे बस्तर रेंज आईजी एसआरपी कल्लूरी के तबादले का फैसला मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अमेरिका प्रवास से लौटने के बाद करेंगे।
रायपुर, ब्यूरो। बीमारी और विवादों का सामना कर रहे बस्तर रेंज आईजी एसआरपी कल्लूरी के तबादले का फैसला मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अमेरिका प्रवास से लौटने के बाद करेंगे। वे पांच दिसंबर को रायपुर लौट आएंगे, तब कल्लूरी को हटाने या न हटाने पर सरकार का रख साफ होगा। फिलहाल कल्लूरी के विकल्प के रूप में आधा दर्जन अफसरों के नामों पर विचार किए जाने की चर्चा है। इनमें 1992 बैच के पवन देव और विवेकानंद के साथ 94 बैच के जीपी सिंह के नाम टॉप पर हैं। 97 बैच के दिपांशु काबरा भी संभावित सूची में हैं।
पुलिस मुख्यालय के सूत्रों के अनुसार जीपी और काबरा पीएचक्यू और सरकार दोनों की पसंद हैं। जीपी जगदलपुर एसपी भी रह चुके हैं। चर्चा है कि दोनों जाना नहीं चाहते। तीसरा नाम बिलासपुर रेंज आईजी और वर्तमान में बस्तर रेंज का अतिरिक्त प्रभार देख रहे विवेकानंद का है। सरकार की तरफ से कहा जाएगा तो विवेकानंद बस्तर चले भी जाएंगे, लेकिन उनकी कार्यशैली कल्लूरी से एकदम अलग है। ऐसे में बस्तर में दिक्कत ब़$ढ सकती है। सरकार के पास सीआईडी में बैठे पवन देव भी विकल्प हैं।
कल्लूरी के तबादले की यह हो सकती है वजह
-कल्लूरी बीमार हैं, उनके हार्ट में दिक्कत है। अभी इलाज चल रहा है।
-बतौर आईजी कल्लूरी का कार्यकाल ढाई साल हो गया है। उन्होंने 12 जून 2014 को बस्तर रेंज की कमान संभाली थी।
-कल्लूरी लंबे समय से प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के निशाने पर हैं।
-मुठभ़ेड और आत्मसमर्पणों की वजह से कल्लूरी विवादों में आ गए हैं।
-नंदनी सुंदर के खिलाफ हत्या का जुर्म दर्ज कर कल्लूरी राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा में आ गए हैं।
-कल्लूरी के विरोधी खेमे का मानना है कि कल्लूरी के साथ लगातार जु़$ड रहे विवादों के कारण सरकार भी उनसे खफा है।
-राज्य स्थापना के मौके पर रायपुर आए पीएम नरेन्द्र मोदी से कल्लूरी की अचानक मुलाकात को भी सरकार की नाराजगी की एक वजह मानी जा रही है।
कल्लूरी को नहीं हटाए जाने के पक्ष में तर्क
-कल्लूरी के ढाई साल के कार्यकाल में नक्सली जबरदस्त दबाव में हैं। केन्द्रीय खुफिया एजेंसी की रिपोर्टों में भी इस बात का जिक्र है।
-कल्लूरी की कार्यशैली और नक्सलियों के सिमटते दायरे से मुख्यमंत्री खुश हैं और कई मौकों पर सराहना भी कर चुके हैं।
-बस्तर में नक्सलियों पर दबाव बनाए रखने के लिए सरकार के पास कल्लूरी जैसा दूसरा अफसर नहीं है।
-आईजी रैंक का एक भी अफसर फिलहाल बस्तर जाने को तैयार नहीं है।
-ढाई साल के कार्यकाल में फोर्स ने नक्सलियों के ब़डे कैडर नेताओं को मार गिराया और ब़डी संख्या में सरेंडर भी कराए।
नए आईजी के लिए चुनौती
-ऐसे माना जा रहा है कि कल्लूरी के आक्रामक रूख के कारण नक्सली बैकफुट पर हैं। ऐसे में नए आईजी के लिए सबसे ब़डी चुनौती नक्सलियों पर दबाव बनाए रखने की होगी।
-सूत्रों के अनुसार नक्सल क्षेत्रों में काम करने का कल्लूरी का अलग सिस्टम है, ऐसे में नए आईजी को उस सिस्टम को सामान्य पुलिसिंग में लाना प़$डेगा।
-कल्लूरी के कार्यकाल में हुई कुछ मुठभ़ेड और आत्मसमर्पण पर सवाल उठते रहे हैं। कुछ मामले कोर्ट में भी हैं। ऐसे मामलों को निपटाना भी ब़डी चुनौती होगी।