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मोदी सरकार ने बटोरीं सुर्खियां, लेकिन नहीं आया निवेश

नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल की नाकामियों को लेकर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता शोभा ओझा ने निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने इवेंट मैनेजमेंट के दम पर देश-विदेश में सुर्खियां तो बटोर लीं, लेकिन निवेश लाने में सफल नहीं हुए।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Tue, 26 May 2015 04:23 AM (IST)Updated: Tue, 26 May 2015 10:12 AM (IST)
मोदी सरकार ने बटोरीं सुर्खियां, लेकिन नहीं आया निवेश

रायपुर [ब्यूरो]। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल की नाकामियों को लेकर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता शोभा ओझा ने निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने इवेंट मैनेजमेंट के दम पर देश-विदेश में सुर्खियां तो बटोर लीं, लेकिन निवेश लाने में सफल नहीं हुए।

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उन्होंने कहा कि अच्छे दिन, सुशासन, आसान कारोबार, जीडीपी में 10 प्रतिशत बढ़ोत्तरी, 5 साल में 10 करोड़ रोजगार पैदा करना, डिजिटल इंडिया, कालाधन वापस लाने का चुनाव के समय जनता को सपने दिखाए थे। लेकिन इसमें से एक भी काम पूरा करने में सरकार सफल नहीं हुई।

उन्होंने कहा कि देश को विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए मोदी सरकार के पास न तो आर्थिक दूरदृष्टि है, और न ही राजस्व संबंधी दिशा और वित्तीय समझदारी है। वरिष्ठ भाजपा नेता अरुण शौरी ने भी स्पष्ट रूप से कहा है कि सरकार आर्थिक तौर से दिशाहीन है।

शोभा ओझा ने कहा कि वैश्विक मंदी और भाजपा के नकारात्मक अभियान के बावजूद कांग्रेस की यूपीए सरकार के 10 सालों [2004 से 2014] के दौरान भारत में सर्वाधिक आर्थिक वृद्घि हुई। भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत के औसत से बढ़ी। प्रति व्यक्ति आय 2004 में 24,143 रुपए से तीन गुना बढ़कर 2014 में 68,747 रुपए हो गई। उद्योग में 7.7 प्रतिशत की वृद्घि हुई। सेवा क्षेत्र 9.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा और कृषि में 4.1 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की गई। विदेशी मुद्रा भंडार 2003-04 में 113 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2013-14 में 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

कॉर्पोरेट और उद्योग मोदी के जादू में विश्वास खो रहे

शोभा ओझा ने कहा कि वाकपटुता के मुकाबले मोदी सरकार की वास्तविक आपूर्ति में इंडिया इंक का विश्वास खो रहा है। इंडिया इंक चाहता है कि नरेंद्र मोदी भाषण देने की बजाए ठोस काम करना प्रारंभ करें। पिछले साल के मुकाबले 2015 में निर्यात में 11 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। 2014-15 में आठ प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों [कोयले, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी, उर्वरक, बिजली, स्टील] में वृद्घि 3.5 रही, जो 2009 के बाद सबसे कम है। मार्च 2015 की तिमाही में 315 बड़ी कंपनियों की कुल बिक्री में 2014 के मुकाबले 7 प्रतिशत की कमी आई है। यहां तक कि कच्चे माल और बिक्री का अनुपात भी मार्च 2015 में 40 प्रतिशत रहा, जो पिछले दो सालों में सबसे कम है।

नौकरियां देने का वादा फेल

2014 के आखिर में वेतन बढ़ोत्तरी गिरकर मात्र 3.8 प्रतिशत रह गई, जो जुलाई 2005 के बाद सबसे कम है। यह उपभोक्ता मुद्रास्फीति से काफी कम है। प्रमुख मजदूरी आधारित क्षेत्रों- टेक्सटाइल, लेदर, मेटल, ऑटोमोबाईल, जेम्स एवं ज्वेलरी, परिवहन, आईटी-बीपीओ, हैंडलूम और पॉवरलूम में मंदी दिखने लगी है। साल में दो करोड़ नौकरियां देने के वादे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार के पहले साल में केवल 17.5 लाख नौकरियां निर्मित हुईं।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया को एक राजनीतिक नारे के तौर पर लगातार इस्तेमाल किया है। लेकिन उद्योगों को उत्पादन में अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में बराबरी का दर्जा दिलवाने, इनवर्टेड टैक्स संरचना को बदलने, कच्चे माल की लागत पर नियंत्रण करने एवं लॉजिस्टिक्स की स्थिति सुधारने बारे एक भी कदम नहीं उठाया।


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