बस्तर से वनभैंसा लाने में नक्सली बने रोड़ा
रायपुर [ब्यूरो]। देश की सर्वशुद्ध नस्ल की मादा वनभैंसे की नस्ल बचाने के लिए वन विभाग ने उदंती-सीतानद
रायपुर [ब्यूरो]। देश की सर्वशुद्ध नस्ल की मादा वनभैंसे की नस्ल बचाने के लिए वन विभाग ने उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व की एक मात्रा मादा वनभैंसा आशा की क्लोनिंग के जरिए मादा वनभैंसा तैयार किया है, लेकिन इसके प्रजनन में काफी समय लगेगा। यही वजह है कि वन विभाग सर्वशुद्ध नस्ल को बचाने के लिए बस्तर के वनभैंसों को हेलिकॉप्टर के जरिए उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व लाने की योजना बनाई थी, लेकिन नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से अभी तक इस ऑपरेशन को अंजाम नहीं दिया गया है। फिलहाल विभाग आशा से ही आस लगाए हुए है।
बस्तर के जंगलों में वन विभाग को करीब पांच साल पहले सूचना मिली थी कि यहां पर वनभैंसों का झुंड है। इन वनभैंसों के झुंड में मादा वनभैंसा होने की भी संभावना जताई गई । छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र की सीमा पर देखे गए वनभैंसों पर वन विभाग नजर बनाए हुए है। बीट गार्ड के माध्यम से जानकारी ली जा रही है, लेकिन नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से विभाग भी इस दिशा में कार्रवाई नहीं कर रहा है।
वनभैंसों को लाने की लिए कोई ठोस योजना नहीं होने की वजह से शिफ्टिंग का मामला अटका हुआ है। विभाग को इस झुंड में 15 से 20 वनभैंसा होने की उम्मीद है । विभागीय अफसरों का कहना है कि कुटरू की तरफ वनभैंसे आ जाएं तो उन्हें बेहोश करके मैदानी इलाकों में लाया जा सकता है, लेकिन अभी तक इसमें सफलता नहीं मिली है। अप्रैल-मई के बाद एक बार फिर विभागीय प्रक्रिया अपना सकती है।
वी. रामाराव, मुख्य वन संरक्षक [वन्यप्राणी] जगदलपुर वृत ने कहा कि छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र के इंद्रावती रेंज में वनभैंसों का दो ग्रुप होने की जानकारी है। इसमें 15 से 20 वनभैंसा हो सकते हैं, लेकिन वनभैंसों को लाने के लिए रास्ता नहीं है। दो साल पहले डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने सर्वे किया था और सुझाव दिया था, लेकिन रास्ता नहीं होने और नक्सल प्रभावित होने की वजह से वनभैंसों को लाना मुश्किल है।
संदीप पुराणिक, वन्यजीव विशेषज्ञ, रायपुर ने बताया कि प्रदेश में एक मात्र मादा वनभैंसा है। और क्लोनिंग के जरिए मादा वनभैंसा जन्म लिया है। इससे एक आस ब़़ढी है, लेकिन क्लोनिंग मादा वनभैंसे को जंगल में छो़़डा नहीं जा सकता है। ऐसे में प्रजनन में भी समय लगेगा। इंद्रावती टाइगर रिजर्व में वनभैंसों का झुंड है। इसे उदंती-सीतानदी में लाने से इसके नस्ल को बचाया जा सकता है। इसमें डब्ल्यूडब्ल्यूएफ जैसी कई एनजीओ की मदद भी ली जा सकती है।