नसबंदी कांड: केंद्र, राज्य सरकार व एमसीआई को नोटिस
रायपुर, बिलासपुर [निप्र]। पेंडारी में नसबंदी के बाद 14 महिलाओं की मौत के मामले को हाईकोर्ट ने स्वत:
रायपुर, बिलासपुर [निप्र]। पेंडारी में नसबंदी के बाद 14 महिलाओं की मौत के मामले को हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान में ले लिया है। युगलपीठ ने मामले में राज्य सरकार, केंद्र सरकार और मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया [एमसीआई] को नोटिस जारी कर 10 दिनों के भीतर जवाब मांगा है। साथ ही कोर्ट को सहयोग करने के लिए अधिवक्ता सलीम काजी और अधिवक्ता सुनीता जैन को न्याय मित्र नियुक्त किया है।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के पेंडारी स्थित नेमी चंद जैन अस्पताल में बीते 8 नवंबर को आयोजित शासकीय शिविर में नसबंदी कराने वाली महिलाओं की तबीयत ऑपरेशन के बाद से ही बिगड़ने लगी। सोमवार से बुधवार दोपहर तक नसबंदी करने वाली 14 महिलाओं की मौत हो गई। इसके अलावा 15 महिलाएं जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं। वहीं 50 से अधिक महिलाओं का शहर के विभिन्न अस्पतालों में उपचार चल रहा है। मीडिया और अखबारों में लगातार प्रकाशित हो रही खबरों कोहाईकोर्ट के जस्टिस टीपी शर्मा व जस्टिस इंदर सिंह उबोवेजा की युगलपीठ ने स्वत: संज्ञान में लेते हुए जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया है। बुधवार दोपहर 12:30 बजे कोर्ट ने प्रकरण में अतिरिक्त महाधिवक्ता अशुतोष सिंह कछवाहा और प्रफुल्ल भारत को बुलाकर मामले में राज्य सरकार, केंद्र सरकार और एमसीआई को नोटिस जारी कर 10 दिनों के अंदर जवाब मांगने के निर्देश दिए हैं। न्याय मित्र नियुक्त अधिवक्ता काजी और अधिवक्ता सुनीता जैन को रजिस्ट्रार जनरल कार्यालय से हाईकोर्ट के आदेश की प्रति उपलब्ध करा दी गई है।
रिश्तेदारों को विशेष सुविधा उपलब्ध कराने का आदेश
शिविर में नसबंदी कराने के बाद बीमार हुई ज्यादातर महिलाओं के छोटे-छोटे बच्चे हैं। परिवार के सदस्य अस्पताल में भर्ती महिलाओं के साथ बच्चों को भी संभाल रहे हैं। इसकी वजह से उन्हें काफी परेशानी हो रही है। उनके रहने-खाने का भी कोई ठिकाना नहीं है। न्यायालय ने इस बात पर भी संज्ञान में लेते हुए अस्पताल में भर्ती मरीजों के रिश्तेदारों को विशेष सुविधा उपलब्ध कराने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट को है विशेष अधिकार
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और सीनियर जस्टिस को समाचार पत्र में प्रकाशित खबरों को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार कर सुनवाई का विशेष अधिकार है। इससे पूर्व शहर में भटकते मानसिक रोगियों की स्थिति को लेकर जस्टिस फखद्दीन ने समाचार पत्र में प्रकाशित खबर को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार कर मानसिक रोगियों के लिए अलग से अस्पताल खोलने का आदेश दिया था। इसे आदेश का पालन नहीं होने पर जस्टिस सतीश कुमार अग्निहोत्री ने संज्ञान लेते हुए शासन को नोटिस जारी किया था।