आरटीओ का पासवर्ड इस्तेमाल हुआ करोड़ों के घोटाले में
रायपुर [निप्र]। करोड़ों के रोड टैक्स घोटाले में क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी [आरटीओ] के पासवर्ड का इस्तेमाल हुआ है। विभागीय सूत्रों से पता चला है कि पासवर्ड केवल आरटीओ को ही आधिकारिक तौर पर जारी किया जाता है। इस कारण वेबसाइट में अपलोड करने की जिम्मेदारी भी उसकी होती है। इस वजह से विभाग में इस बात को लेकर चर्चा है कि घोटाले में आरटीओ की मिलीभगत हो सकती है। अगर ऑनलाइन डाटा से छेड़छाड़ नहीं होती तो यह घोटाला शुरुआत में ही पकड़ में आ जाता।
विभागीय सूत्रों के अनुसार एजेंट्स ने रसीद में छेड़छाड़ कर टैक्स की राशि को बढ़ाया है, वहीं बढ़ी हुई राशि ऑनलाइन रिकॉर्ड में भी अपडेट कर दी गई है। पड़ताल में मालूम हुआ है कि ऑनलाइन अपडेट आरटीओ को ही करना होता है। एजेंट या वाहन मालिक ई-चालान में जो राशि जमा करते हैं, वह एसबीआई में विभाग के खाते में जमा हो जाती है।
सूत्रों के मुताबिक 12 से 18 घंटे में बैंक से आरटीओ को ट्रैंजैक्शन डिटेल मिल जाता है। एजेंटों को दी गई रसीद और बैंक के डिटेल का मिलान होता है। यह काम विभाग के दूसरे कर्मचारी कर सकते हैं। इसके बाद रिपोर्ट आरटीओ को पहुंचती है। आरटीओ को उस रिपोर्ट को देखकर पासवर्ड से रिकॉर्ड को ऑनलाइन करना होता है। इसके पहले ही टैक्स कम जमा होने की गड़बड़ी पकड़ में आ सकती है। लेकिन यहां जब से ऑनलाइन सुविधा शुरू हुई, तब से कम टैक्स जमा होने वाले वाहनों के रिकॉर्ड अपडेट होते रहे। इस कारण घोटाला तब फूटा, जब राज्य सरकार और परिवहन विभाग को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हो चुका था।
ऑनलाइन के पहले से घोटाला
परिवहन ने ऑनलाइन सुविधा 2013 से शुरू की है। इसके पहले टैक्स की राशि बैंक नहीं, बल्कि ट्रेजरी में जमा होती थी। ट्रेजरी से आरटीओ को जमा होने वाली राशि का ब्योरा भेजा जाता था। तब ट्रेजरी के ब्योरे से मिलान कर रजिस्टर में एंट्री की जाती थी। उस वक्त भी आरटीओ ट्रेजरी के ब्योरे, एजेंट्स को दी गई रसीद और रजिस्टर में एंट्री का मिलान करने के लिए हस्ताक्षर करते थे।
घोटाले के दौरान कई आरटीओ बदले
रोड टैक्स का घोटाला अभी एक-दो साल से नहीं चल रहा था, आशंका है कि दस-बीस साल से घोटाले को लगातार अंजाम दिया जा रहा था। इसी कारण परिवहन मुख्यालय स्तर पर पिछले पांच-सात सालों के रोड टैक्स की जानकारी निकालकर उसका परीक्षण किया जा रहा है। पिछले सात सालों में रायपुर क्षेत्रीय कार्यालय की कुर्सी पर कई अधिकारी बैठे। इसमें जीडी पांडे, प्रभारी के तौर पर अब्दुल गनी खान, डोमन सिंह, एसके पवार और अब एचएल नायक शामिल हैं।
आरटीओ पर उठ रहे कई सवाल
-पासवर्ड आरटीओ के पास रहता है तो रिकॉर्ड अपडेट किसने किए?
-क्या कर्मचारियों और एजेंट्स की गड़बड़ी में आरटीओ की मिलीभगत है?
-क्या कर्मचारियों की गड़बड़ी पर आरटीओ का ध्यान ही नहीं गया?
-क्या आरटीओ ने अपना पासवर्ड दूसरे कर्मचारियों को दे दिया और उन कर्मचारी ने घोटाले के आंक़़डों को अपलोड किया?
-अगर ऐसा है तो आरटीओ ने अपना पासवर्ड कर्मचारियों को दिया ही क्यों?
-क्या पासवर्ड लीक हो गया और आरटीओ को होश ही नहीं था?