नौकरी छोड़ने पर आपको मिलेगी कितनी ग्रेच्युटी, ऐसे होता है तय
जानिए किस तरह ग्रेच्युटी और रिटायरमेंट पर मिलने वाले पैसे की गणना की जाती है
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को बड़ा तोहफा दिया है। केंद्र सरकार के कर्मचारियों की तरह अब निजी और पीएसयू के कर्मचारियों के लिए भी 20 लाख रुपए तक की ग्रेच्युटी राशि कर मुक्त कर दी है। अभी तक यह सीमा 10 लाख रुपए थी। इसके लिए सरकार जल्द संसद में विधेयक पेश करेगी।
सरकार के इस फैसले से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले करीब पांच करोड़ लोगों को फायदा होगा। केंद्रीय कर्मचारियों के गठित सातवें वेतन आयोग ने ग्रेच्युटी की सीमा बढ़ाकर 20 लाख रुपये करने की सिफारिश की थी। इसके आधार पर केंद्र और कई राज्य सरकार कर्मचारियों के लिए इसे लागू कर चुकी है।
इन संस्थानों पर लागू होता है नियम -
सरकार की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि ग्रेच्युटी भुगतान कानून (1972) उन संस्थानों पर लागू होता है, जहां 10 या उससे अधिक कर्मचारी काम करते हैं। इसका मुख्य मकसद कर्मचारियों को सेवानिवृति के बाद आर्थिक सुरक्षा देना है। कई बार कर्मचारी सेवानिवृति की निर्धारित उम्र सीमा के पहले भी विकलांगता या अन्य किसी वजह से सेवानिवृत्त हो जाते हैं। ऐसे में ग्रेच्युटी आय की मुख्य जरिया बन सकती है।
ऐसे होती है ग्रेच्युटी की कैल्कुलेशन -
कानून के अनुसार, यदि कोई कर्मचारी किसी संगठन में कम से कम पांच सालों तक लगातार काम करता है, तो कंपनी को उसे ग्रेच्युटी देनी होती है। हर साल की सेवा के लिए संगठन को अंतिम वेतन के 15 दिनों के बराबर राशि का भुगतान करना होता है।
वेतन का मतलब वेसिक सैलरी, महंगाई भत्ता और कमीशन इसमें शामिल होता है। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति 6 महीने से अधिक समय तक काम करता है, तो इसे ग्रेच्युटी गणना के लिए एक पूर्ण वर्ष गिना जाता है। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति 7 साल और 6 महीने की निरंतर सेवा पूर्ण करता है, तो ग्रेच्युटी का भुगतान 8 वर्षों के लिए किया जाएगा।
ग्रेच्युटी गणनाओं के लिए एक महीने का काम 26 दिनों के रूप में गिना जाता है। 15 दिन के वेतन की गणना के लिए मासिक वेतन में 15 का गुणा करके 26 से भाग दिया जाता है। इस संख्या को सेवा में वर्षों की संख्या से गुणा किया जाता है और जो राशि आती है, वह भत्ते के रूप में देय होती है।
यदि कर्मचारी की मृत्यु हो जाए -
यदि कोई कर्मचारी पांच साल की सेवा करने से पहले ही मर जाता है, तो न्यूनतम 5 वर्ष का क्लॉज उस पर लागू नहीं होता है। अर्जित राशि को कर्मचारी के कानूनी उत्तराधिकारी को कंपनी को भुगतान करना होता है। ये सभी भुगतान कर्मचारी के अंतिम कार्य दिवस के 30 दिनों के भीतर करने होते हैं। यदि भुगतान में 30 दिनों से अधिक की देरी हो, तो कानून कहता है कि नियोक्ता को उस राशि पर ब्याज का भुगतान करना होगा।