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रेपो रेट, रिवर्स रेपो और सीआरआर होता क्या है, जानिए

मौद्रिक नीति समिति की हर बैठक के दौरान जिन शब्दों का इस्तेमाल होता है क्या आप उनका मतलब जानते हैं

By Praveen DwivediEdited By: Published: Wed, 07 Jun 2017 04:00 PM (IST)Updated: Wed, 07 Jun 2017 04:00 PM (IST)
रेपो रेट, रिवर्स रेपो और सीआरआर होता क्या है, जानिए
रेपो रेट, रिवर्स रेपो और सीआरआर होता क्या है, जानिए

नई दिल्ली (जेएनएन)। मौद्रिक नीति समिति की बैठक में नीतिगत ब्याज दरों को 6.25 फीसद पर बरकरार रखा गया है। ब्याज दरों में बदलाव न किए जाने को लेकर एमपीसी के पांच सदस्यों ने सहमति जताई है। एमपीसी की अगली बैठक 1 और 2 अगस्त को होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर मौद्रिक नीति समिति की बैठक के दौरान सुनाई पड़ने वाले भारी भरकम शब्द रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर का मतलब क्या होता है। हम अपनी खबर के माध्यम से आपको इन्हीं शब्दों का मतलब बताने की कोशिश करेंगे।

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क्या होती है रेपो रेट
रेपो रेट वह दर होती है जिसपर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन मुहैया कराते हैं। रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंक से मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे। मसलन, गृह ऋण, वाहन ऋण आदि।

रिवर्स रेपो रेट
यह वह दर होती है जिसपर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है।

एमएसएफ क्या है?
आरबीआई ने पहली बार वित्त वर्ष 2011-12 में सालाना मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू में एमएसएफ का जिक्र किया था। यह कॉन्सेप्ट 9 मई 2011 को लागू हुआ। इसमें सभी शेड्यूल कमर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसदी तक लोन ले सकते हैं। बैंकों को यह सुविधा शनिवार को छोड़कर सभी वर्किंग डे में मिलती है।

नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर):
देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत प्रत्येक बैंक को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) कहा जाता है।

क्या होता है एसएलआर (स्टैच्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो):
वाणिज्यिक बैंकों के लिए अपने प्रतिदिन के कारोबार के आखिर में नकद, सोना और सरकारी सिक्यॉरिटीज में निवेश के रूप में एक निश्चित रकम रिजर्व बैंक के पास रखनी जरूरी होता है। इस रकम का इस्तेमाल किसी भी आपात देनदारी को पूरा करने में इस्तेमाल किया जा सकता है। अब वह रेट जिस पर बैंक यह पैसा सरकार के पास रखते हैं, उसे ही एसएलआर कहते हैं। इसके तहत अपनी कुल देनदारी के अनुपात में सोना आरबीआई के पास रखना होता है।


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