म्यूचुअल फंडों को सरल बनाने के लिए अहम बदलाव्
बाजार नियामक सेबी किसी भी म्यूचुअल फंड कंपनी के फंडों की संख्या सीमिति करने की योजना बना रहा है।
इस तरह की चर्चाएं हैं कि बाजार नियामक सेबी किसी भी म्यूचुअल फंड कंपनी के फंडों की संख्या सीमिति करने की योजना बना रहा है। यह बात अगर सही है तो यह एक शानदार विचार है जिसे शीघ्र लागू करना चाहिए। इस अकेले बदलाव से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि म्यूचुअल फंड निवेशक उस फंड का चुनाव करेंगे जो उनके लिए सबसे उपयुक्त होगा और वे उसमें निवेश जारी रखेंगे। यह ऐसा सुधार है जो पूरी तरह सकारात्मक होगा।
इसमें कोई कमी नहीं होगी।
प्रत्येक कंपनी को एक तरह के सिर्फ एक ही फंड की जरूरत होगी। इसके पीछे विचार निवेशक के पास उपलब्ध
विकल्पों की जटिलता को कम करना है। फिलहाल 2500 विशिष्ट फंड हैं और उनमें से ज्यादातर के कई प्रकार के प्लान भी हैं। अगर कोई व्यक्ति इक्विटी, डेट या हाइब्रिड की व्यापक श्रेणियां देखता है तो भी सैकड़ों फंडों की भरमार है। किसी भी निवेशक के पास इतनी बड़ी संख्या में फंडों को समझना मुमकिन नहीं है। इसके बाद उन फंडों को समझकर किसी एक का चुनाव करना और भी जटिल है। बताया जाता है कि सेबी प्रत्येक एएमसी के स्तर पर इस जटिलता को दूर करेगी। उस स्तर पर प्रत्येक के पास एक या दो श्रेणी के फंड होने चाहिए। मुझे लगता है कि सरलता इस बात पर निर्भर करेगी कि श्रेणी को परिभाषित कैसे किया जाए। खबरों के मुताबिक डेट फंडों की आठ और इक्विटी फंडों की छह श्रेणियां होंगी।
फिक्स्ड आय फंडों में अधिकतर कॉरपोरेट और पेशेवर निवेशकों की रुचि होती है क्योंकि वे जटिलता समझने में सक्षम होते हैं, वहीं रिटेल निवेशकों के लिए फंड सरल होंगे ताकि वे आसानी से समझ सकें। सेबी जो इक्विटी श्रेणी की योजना बना रहा है, उसमें लार्ज कैप, मिड कैप, माइक्रो कैप, ईएलएसएस, बैलेंस्ड फंड, आर्बिट्रेज फंड और कंसेंट्रेटेड फंड शामिल होंगे।
सबसे बड़ा सकारात्मक असर निवेशकों के लिए आसानी से समझे जा सकने वाली श्रेणियों से आएगा। जोखिम बनाम संभावित रिटर्न के मामले में इनमें से प्रत्येक को किसी व्यक्ति की जरूरत के हिसाब से आसानी से मैप किया जा सकता है। एक संभावित निवेशक आसानी से यह चुनाव कर सकता है कि इसमें से कौन सा सबसे उपयुक्त है।
सिर्फ आसानी से किसी श्रेणी का चुनाव करने के अलावा यह सुविधा भी होगी कि विभिन्न फंडों के बीच तुलना की जा सके। आज दो फंड कंपनियां अपने फंडों को समान तरीके से परिभाषित नहीं करतीं। इसके परिणामस्वरूप सेल्समेन किसी अन्य कंपनी के फंड्स से तुलना करने से बचना चाहते हैं जबकि हो सकता है कि दूसरी कंपनी का फंड बेहतर प्रदर्शन कर रहा हो। ऐसे मामलोंं में सेल्समेन आसानी से यह बता देते हैं कि किस तरह दूसरी कंपनी के फंड्स के क्या उद्देश्य हैं या उसमें कुछ कमियां निहित हैं।
अगर प्रत्येक फंड को वैध परिभाषित श्रेणी में रखा जाएगा तो इस तरह की समस्या नहीं आएगी। अगर आप लार्ज कैप फंड चलाते हैं तब इसकी तुलना प्रत्येक लार्ज कैप फंड से संभव होनी चाहिए। स्वाभाविक है कि फंड की मार्केटिंग करने वालों को यह पसंद नहीं आएगा। भारत में बड़ी संख्या में फंड्स हैं। इसकी वजह यह है कि यहां फंड्स की खूबियां दिखाकर बेचा गया है। जैसे साबुन से लेकर फोन और कार तक जिस तरह उत्पाद बेचने वाले ग्राहकों को उसकी खूबियों के बारे में बताते हैं जबकि उसमें निहित गुणवत्ता को परखने से बचते हैं। निवेश उत्पादों में यही शैली निवेशकों के लिए बुरी होती है।
इस तरह फंड्स की आपस में तुलना होने पर निवेशक बेहतर विकल्प चुन सकेंगे। वास्तव में वैल्यू रिसर्च बीते वर्षों में जो काम कर रही है उसमें से यह एक है। सेबी के इस कदम से फंड्स की श्रेणी का ब्योरा नियामक संस्था के पास चला जाएगा इससे इनके बीच तुलना बिल्कुल स्पष्ट हो जाएगी। मुझे पूरा यकीन है कि इस प्रस्ताव से फंड इंडस्ट्री पूरी तरह एतराज जताएगी और कहेगी कि इससे उपभोक्ताओं के पास विकल्प कम होंगे और उसका नकारात्मक असर पड़ेगा लेकिन एक पल के लिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। भारत में 40 फंड कंपनियां हैं और अगर हर श्रेणी में बड़ी संख्या में फंड्स होंगे तो निवेशकों के पास हर तरह के विकल्प उपलब्ध होंगे। इससे भी बढ़कर बात यह है कि सभी फंड्स की आपस में तुलना हो।
धीरेंद्र कुमार