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जीएसटी की पाठशालाः एसएमई के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट की बारीकियां

जानिए जीएसटी के तहत एसएमई के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट से जुड़ी बारीकियों के बारे में

By Praveen DwivediEdited By: Published: Mon, 12 Jun 2017 03:27 PM (IST)Updated: Mon, 12 Jun 2017 03:27 PM (IST)
जीएसटी की पाठशालाः एसएमई के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट की बारीकियां
जीएसटी की पाठशालाः एसएमई के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट की बारीकियां

नई दिल्ली (अर्चित गुप्ता)। सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों (एमएसएमई) के लिए जीएसटी लागू करना बड़ा गेम चेंजर साबित होगा। इस क्षेत्र की लगभग 50 फीसद यूनिट्स ही जीएसटी के नियमों का अनुपालन करने में तकनीकी तौर पर सक्षम हैं। कई व्यापारियों के साथ विक्रेताओं और आपूर्तिकर्ताओं से फॉलोअप लेने और समय से भुगतान या इनवॉइसिंग पक्की करने के लिए समर्पित कर्मचारी नहीं हैं। आज हम इस मामले की कुछ बारीकियों पर चर्चा करेंगे।

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आईटीसी की गणना ऐसे करें, जैसे जिंदगी इसी पर निर्भर हो जीएसटी व्यवस्था में इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) की उपलब्धता व्यापार की प्रतिद्वंद्विता और अनुपालन लागत निर्धारित कर सकती है। यह कानून मार्केटिंग पर खर्च, परिवहन खर्च आदि जैसे व्यापार बढ़ाने के लिए गए खर्चों पर आईटीसी का दावा करने की अनुमति देता है। उद्योग इस कानून से संबंधित तरह-तरह के खर्चों पर आईटीसी का दावा कर सकते हैं। इससे संचालन खर्च घटता है और लाभ बढ़ता है। आईटीसी कार्यशील पूंजी को प्रभावित कर सकता है।

इनवॉइस, लेनदेन की सारी जानकारियां सुरक्षित रखें
आईटीसी पर तब ही दावा किया जा सकता है जब विक्रेता और खरीदार के इनवॉइस समान हों। आपूर्तिकर्ता ने समायोजित रिटर्न फाइल किया हो और टैक्स का भुगतान किया हो।  लिहाजा पूरी सप्लाई चेन को इनवॉइस और रिकॉर्ड मेंटेनेंस को लेकर अनुशासित होना होगा। समय से टैक्स फाइल करने के साथ इसका भुगतान करना सभी एसएमई और जिनके साथ वे काम करते हैं, उन सभी की दूसरी प्राथमिकता बननी चाहिए।

एक बार जीएसटी के प्रभावी होने पर व्यापारियों को लेनदेन की सभी जानकारियां पूरी करनी होगी। जैसे कि, ग्राहकों के लिए बनाए गए सभी इनवॉइस को अब आपूर्तिकर्ता से प्राप्त इनवॉइस के साथ मिलाया जाएगा। इनके मिलने पर ही आईटीसी दावे को वैध माना जाएगा। इससे प्राधिकरणों को अवैध आईटीसी के दावों का पता लगाने में मदद मिलेगी। ऐसे में एसएमई को आईटीसी दावों के तकनीकी पहलू समझने होंगे। यह भी पक्का करना होगा कि वे जिन आपूर्तिकर्ताओं के साथ व्यापार कर रहे हैं वे विश्वसनीय और संगत हैं।

नकदी की दिक्कत का पहले से अनुमान लगाएं
चूंकि आईटीसी का मुक्त प्रवाह कई कारकों पर निर्भर करता है, लिहाजा सप्लाई चेन को नई व्यवस्था में समायोजित और नई स्थिति को सेट करते हुए उद्योग नकदी की कुछ दिक्कतों का सामना कर सकते हैं। ऐसे में बेहतर यही होगा कि एसएमई पहले से इसके लिए तैयार होकर इस स्थानांतरण चरण के दौरान अपने व्यापार को संगत रखने के उपाय अपनाएं। वे ऐसे इंतजाम रखें कि नकदी की समस्या न आए।

ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर समझदारी से चुनें
आप जीएसटीएन पोर्टल पर सीधे टैक्स रिटर्न फाइल कर सकते हैं। लेकिन आप उन फॉर्म्स से, जिन्हें आपको भरने की जरूरत है और इसके तकनीकी पहलुओं से परिचित नहीं हैं तो एक ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर खरीदना बेहतर होगा। यह आसानी से रिटर्न फाइल करने में मदद करेगा। ऑपरेटिंग सॉफ्टवेयर रिटर्न फाइल करते समय और महत्वपूर्ण डेटा अपलोड करते समय गलतियां होने से बचा सकता है।

मैनुअल बुक कीपिंग से दूर रहें
जीएसटी का लक्ष्य भारतीय अर्थव्यवस्था को डिजिटाइज करना है। जीएसटीएन पोर्टल इनवॉइस अपलोड करने और जीएसटी संबंधित अन्य मुद्दों के लिए एकमात्र ऑनलाइन स्रोत होगा। हम यह देख चुके हैं कि आईटीसी के दावों के लिए इनवॉइस मैच करना कितना अहम है। जब आप ऑनलाइन पोर्टल में मैनुअल डेटा भेजते हैं तो आसानी से गलतियां हो सकती हैं। इसकी जगह वर्चुअल रिकॉर्ड्स और खातों का प्रयोग बेहतर होगा, ताकि किसी बड़ी गलती से बचा जा सके। कुछ एसएमई को अपने उस स्टाफ को प्रशिक्षण देने में निवेश करना पड़ सकता है जो अब तक मैनुअल बुक कीपिंग व लेखांकन करते आए हैं।

इस लेख के लेखक अर्चित गुप्ता क्लिअरटैक्स.कॉम के संस्थापक व सीईओ है


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