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हकीकत से रूबरू: रियल एस्टेट पर दिखा नोटबंदी का असर

रियल एस्टेट की कीमतों को बढ़ाने वाला सबसे संभावित कारक यही है कि काला धन जमा कराने वाले लोग अपने पैसे का निवेश इस क्षेत्र के अलावा कहीं और आसानी से नहीं कर पाते।

By Praveen DwivediEdited By: Published: Mon, 26 Dec 2016 10:34 AM (IST)Updated: Mon, 26 Dec 2016 10:36 AM (IST)
हकीकत से रूबरू: रियल एस्टेट पर दिखा नोटबंदी का असर

धीरेंद्र कुमार

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आठ नवंबर को प्रधानमंत्री जब विमुद्रीकरण के मुद्दे पर राष्ट्र के नाम संबोधन दे रहे थे तो उस समय ज्यादातर लोगों को यह बात समझ आ गई थी कि एक बार जब इस घटनाक्रम पर विराम लगेगा तब सबसे बड़ा असर रियल एस्टेट सेक्टर पर पड़ेगा। सबको पता था कि अर्थव्यवस्था का यह क्षेत्र ऐसा है जिसमें अधिकतर लेनदेन काले धन और नकदी में होता है। इतना ही नहीं हम सब लोगों को यह भी मालूम है कि रियल एस्टेट का व्यापक तौर पर इस्तेमाल काले धन के निवेश के लिए होता रहा है।

रियल एस्टेट की कीमतों को बढ़ाने वाला सबसे संभावित कारक यही है कि काला धन जमा कराने वाले लोग अपने पैसे का निवेश इस क्षेत्र के अलावा कहीं और आसानी से नहीं कर पाते। इसका तर्क सीधा है जो भी चीज कैश इकोनॉमी की राह में बाधा डालती है वह रियल एस्टेट की गतिविधियों और उसकी कीमतों पर असर डालेगी। यह प्रभाव तत्काल ही नजर आने लगा था। देशभर में रियल एस्टेट का काम तत्काल रुक गया। इसके बाद कुछ गतिविधियां शुरू हुईं लेकिन इनकी रफ्तार बेहद कम थी। वास्तव में यह एक अपारदर्शी बाजार है और वास्तव में यह अपारदर्शिता पर ही फलता-फूलता है। इसलिए वास्तविक सूचना लंबी अवधि में मिलेगी। रियल एस्टेट में जो विक्रेता कीमतें मांग रहे हैं, वे तेजी से नीचे आने लगी हैं।

सामान्य स्थिति में अर्थव्यवस्था के संबंध में विकास केंद्रित चर्चा करने पर रियल एस्टेट में कीमतों में गिरावट को विमुद्रीकरण का नकारात्मक असर माना जाएगा। हालांकि करोड़ों भारतीय जो खुद का मकान खरीदने में सक्षम नहीं हैं, उनके लिए यह अच्छा अवसर है। प्रधानमंत्री ने भी अपने उस भाषण में आम लोगों की मकान खरीदने में अक्षमता की वजह काला धन करार दिया था। नोटबंदी के बाद रियल एस्टेट उद्योग ने ऐसी खबरें दी हैं जिससे लगता है कि विमुद्रीकरण किस तरह रियल एस्टेट के लिए अच्छा साबित होगा। कई रियल एस्टेट डेवलपर्स वाट्सऐप मैसेज के माध्यम से लोगों को मैसेज भेज भेजकर फोन के इनबॉक्स को भर रहे हैं। उनके मैसेज का मूलमंत्र यह होता है कि ब्याज दरें नीचे आएंगी जिससे लोग अधिक उधार ले सकेंगे। यह भी कहा जाता है कि सवा अरब की आबादी वाले देश में 90 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें मकान की आवश्यकता है। यह भी कहा जाता है कि निवेशकों को बैंक जमा पर 5 से 6 प्रतिशत ब्याज के बजाय निवेशकों को प्रॉपर्टी पर रिटर्न प्राप्त करना फायदेमंद होता है। एक तरह से यह सब सत्य है। कई करोड़ लोग ऐसे हैं जो मकान मालिक बन सकते हैं। हालांकि तात्कालिक चुनौतियां पूरी तरह भिन्न हैं।

भारत में रियल एस्टेट क्षेत्र में विश्वास का अभाव है। देशभर में हजारों डेवलपर्स हैं जिन्होंने ग्राहकों से पैसा उधार लिया है और जो उन्होंने जमीन खरीदने में लगा दिया है। अब वे कह रहे हैं कि उनके पास उस मकान को डिलीवर करने के लिए पैसा नहीं है जिसके लिए वे पहले ही भुगतान ले चुके हैं। भविष्य में इन डेवलपर्स पर गहरा संकट आने की संभावना है। रियल एस्टेट कानून जो राज्यों में लागू होने वाला है, उससे डेवलपर्स ग्राहकों के पैसे से नई परियोजनाएं शुरू नहीं कर पाएंगे। इससे अंधाधुंध ढंग से परियोजनाएं शुरू करने की प्रवृत्ति रुकेगी। इसके साथ ही जीएसटी भी लागू हो जाएगा जो कैश के जरिये कारोबार के वित्तीय मॉडल को बदल देगा। इस तरह विमुद्रीकरण, रियल एस्टेट कानून और जीएसटी का मिलाजुला असर यह होगा कि इससे रियल एस्टेट उद्योग को जबरन बदलाव के लिए तैयार होना पड़ेगा।

मकानों की वास्तविक कीमतें रहने के लिए मकान खरीदने वाले लोगों की मांग के आधार पर तय होती हैं। इसका एक सीधा नियम यह है कि मकानों की कीमतें सालाना किराये से 20 से 30 गुना होनी चाहिए। इसका मतलब है कि देश के किसी भी भाग में कीमतें इस फॉर्मूले के मुकाबले अधिक होंगी। हालांकि बदलावों को देखते हुए ऐसा होना स्वाभाविक है। यह समाचार उन लोगों के लिए बुरा हो सकता है जो इस तिमाही की उस तिमाही से विकास दर को माप रहे हैं लेकिन अंत में यह अच्छा समाचार साबित होगा। आखिरकार जो लोग मकान चाहते हैं उनकी मांग वास्तविक है। जो बात काल्पनिक है वह यह है कि भारत का रियल एस्टेट उद्योग कीमतें वास्तविक ग्राहकों को ऑफर कर रहा है।


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