Move to Jagran APP

नोटबंदी के बाद उलझन में शेयर बाजार, सामान्य स्थिति में आने में लग सकते हैं तीन से छह महीने

भारतीय इक्विटी बाजार 2016 के दौरान काफी उथलपुथल का शिकार रहा। इस दौरान इसमें काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिली

By Surbhi JainEdited By: Published: Mon, 19 Dec 2016 11:16 AM (IST)Updated: Mon, 19 Dec 2016 11:20 AM (IST)
नोटबंदी के बाद उलझन में शेयर बाजार, सामान्य स्थिति में आने में लग सकते हैं तीन से छह महीने

नई दिल्ली (नीलेश शाह, मैनेजिंग डायरेक्टर कोटक महींद्रा असेट मैनेजमेंट कंपनी लि.)। भारतीय इक्विटी बाजार 2016 के दौरान काफी उथलपुथल का शिकार रहा। इस दौरान इसमें काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिली। इसके पीछे कई कारक हैं। मसलन अमेरिकी फेड दरों में वृद्धि, राजकोषीय अनुमान, मानसून संबंधी अनुमान, जीएसटी के क्रियान्वयन को लेकर अनिश्चतता, ब्याज दरों तथा अर्निंग को लेकर अनुमान इत्यादि।

loksabha election banner

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का घमासान और उसके बाद अप्रत्याशित परिणाम के साथ ही भारत में नोटबंदी की घोषणा ने कैलेंडर वर्ष की आखिरी तिमाही में बाजारों को करेक्ट करने का काम किया है। इस समय हम ऐसे बाजार को देख रहे हैं जहां उलझे घटनाचक्र और अर्निंग्स का प्रभाव बाजार की बढ़त के रूप में सामने आने की संभावना है। एक तरफ अच्छा मानसून, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों का क्रियान्वयन, पर्याप्त तरलता जैसे सकारात्मक पहलुओं से इस बात का भरोसा पैदा होता है कि खराब अर्निंग्स में सुधार होगा। वहीं दूसरी तरफ नोटबंदी, जीएसटी तथा तेल की कीमतों में वृद्धि के परिणामस्वरूप कुछ समय के लिए खपत में गिरावट के डर से अर्निंग्स में बढ़ोतरी एक-दो तिमाही के लिए टल भी सकती है। आने वाले समय में नोटबंदी का बाजार की ग्रोथ पर काफी असर रहेगा। भले ही इसके लिए दूसरे कारक भी जिम्मेदार हों।

आज स्थिति इतनी अनिश्चततापूर्ण है कि कॉरपोरेट अर्निंग्स पर नोटबंदी के प्रभाव का सही आकलन करना भी मुश्किल दिखाई देता है। व्यापारिक गतिविधियां बाधित होने से खपत घट गई है। बाजार को सामान्य स्थिति में आने में तीन-छह महीने का वक्त लग सकता है। यदि वास्तव में इससे ज्यादा समय लगा तो बाजारों में गिरावट आएगी। यदि भारतवासियों ने करों का बोझ साझा किया तथा कैशलेस अर्थव्यवस्था को अपनाया तो अर्निंग्स में रिकवरी की रफ्तार तेज होगी। यदि काला धन बैंकिंग सिस्टम में वापस नहीं आया तो आरबीआइ को तगड़ा फायदा होगा। यदि सरकार इस काले धन का उपयोग इंफ्रास्ट्रक्चर में करने और ग्रोथ बढ़ाने में समर्थ रही तो अर्निंग्स में तेजी से सुधार होगा। परंतु आरबीआइ ने क्रेडिट पॉलिसी में स्पष्ट किया है कि उसे ऐसा कोई फायदा होने वाला नहीं है। अर्निंग्स को लेकर आशावाद और निराशावाद की इन परस्पर विपरीत धाराओं के कारण ही कुछ समय से बाजार पेंडुलम की भांति कभी पर तो कभी नीचे जा रहा है। लेकिन इन सबसे ज्यादा अहम वे आगामी घटनाएं हैं जो बाजार को प्रभावित करने वाली हैं। मसलन, 1 फरवरी को बजट, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2017 की पहली छमाही में कंपनियों के परिणाम, अप्रैल में जीएसटी का लागू होना/न होना, कच्चे तेल के दाम आदि। इनके बीच में चीन और इटली के घटनाक्रम भी बाजार को प्रभावित करेंगे।

दुनिया भर में ब्याज दरों में बढ़ोतरी का रुख दिखाई दे रहा है। अमेरिकी टी-बिलों के यील्ड में तीव्र वृद्धि से भारत जैसे उभरते बाजारों से काफी पूंजी बाहर जा सकती है। यदि ऐसा हुआ तो एफआइआइ की सतत बिकवाली से भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जब 16 दिसंबर को यूएस फेड रेट में बढ़ोतरी हुई थी तो बाजार में 25 बेसिस प्वाइंट का असर पड़ा था। लेकिन कैलेंडर वर्ष 2017 में यह यूएस फेड से ज्यादा निर्देशित नहीं होगा। इसे देखते हुए हमें नहीं

लगता कि ग्लोबल व अमेरिकी अर्थव्यवस्था में फिलहाल इतनी क्षमता है कि वह ब्याज दरों में इस तरह की संभावित बढ़ोतरी को झेल सकती है। इसलिए आशा करनी चाहिए कि भारत के लिए एफआइआइ का आवंटन 2017 में भी अच्छा बना रहेगा। भले ही बीच-बीच में वे बिकवाली करती रहें।

- फरवरी 2016 में जैसे ही वित्तमंत्री ने राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने की बात कही थी भारतीय इक्विटी बाजार सबसे निचले स्तर पर आ गया था। वित्त मंत्री द्वारा अपनाया गया यह राजकोषीय रुख आने वाले बजट के लिए अहम होगा। यदि वित्त वर्ष 2018 में राजकोषीय घाटा तीन फीसद पर सीमित रहता है तो बाजार सकारात्मक रुख अख्तियार कर सकते हैं। लेकिन यदि ऐसा नहीं हुआ तो अनिश्चितता पैदा होगी। नोटबंदी के परिणामस्वरूप अधिक कर संग्रह से राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी।
- बाजार 2019 तक आर्थिक नीतियों में स्थायित्व की उम्मीद लेकर चल रहे हैं। उप्र विधानसभा चुनाव परिणामों से इसकी परीक्षा हो जाएगी। यदि भाजपा की जोरदार जीत होती है तो बाजार पर सकारात्मक असर पड़ेगा। हालांकि ऐसा हो यह जरूरी नहीं है क्योंकि मतदाता लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अलग सोच के साथ से वोट करता है।

- बाजार यह मानकर चल रहा है कि जीएसटी का क्रियान्वयन आसानी से हो जाएगा। एक राष्ट्र एक कर ढांचे की व्यवस्था लागू होने से वस्तुओं की आवाजाही का खर्च घटेगा। जीएसटी लागू होने से करों के मामले में असंगठित क्षेत्र के मुकाबले संगठित क्षेत्र की नुकसान की स्थिति समाप्त होगी। आज की तारीख में ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार जीएसटी लागू करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार है। अनेक देशों में जीएसटी लागू होने के बाद कुछ समय के लिए विकास दर पर बुरा असर पड़ा है। इसलिए कम से कम बाधाओं के साथ जीएसटी का समय से कार्यान्वयन होने से बाजार के सेंटीमेंट्स पर अच्छा असर पड़ेगा।

-चीन के पास धातु, पूंजीगत सामान जैसे अनेक उद्योगों में फालतू क्षमता है। ऐसे में उनके सामानों की डंपिंग से इन क्षेत्रों में कार्यरत भारतीय कंपनियों पर बुरा असर पड़ सकता है। इसलिए सरकार को तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने चाहिए और एंटी डंपिंग ड्यूटी लगानी चाहिए। चीन एमएससीआइ ईएम सूचकांकों में अपना वेटेज बढ़ाने के लिए आक्रामक लाबींग कर रहा है। उसका वेट बढ़ने से भारत का वेट कम होगा और एफआइआइ का प्रवाह चीन की ओर उन्मुख होगा।

-2015 में ग्रीस के बैंकिंग संकट ने दुनिया भर में निवेशकों के जोखिम सहने की क्षमता कम हो गई। परिणामस्वरूप उभरते बाजारों में उनके निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। आने वाले सालों में हमें इटली में भी बैंकिंग संकट देखने को मिल सकता है। जाहिर है इसका भी असर निवेश पर पड़ेगा। ब्रेक्जिट के बाद यूरोपीय संघ की एकता को लेकर आशंकाएं प्रकट की जाने लगी हैं।

इटली के बैंकिंग संकट से भले ही भारत पर कोई बड़ा असर न हो, लेकिन हमारे बाजारों में अवश्य ही हलचल हो सकती है। यदि भारतीय कंपनियां लगातार ज्यादा मुनाफा कमाती हैं तो शेयरों के भाव बढ़ते रहेंगे। कंपनियों के बेहतर मुनाफे की आधारशिला रखी जा चुकी है। सभी प्रकार के कर्जों पर ब्याज दरें गिर गई हैं। इससे कंपनियों की हालत में सुधार हुआ है। इस समय सबसे अच्छी कंपनियों को उस दर पर कर्ज मिल रहा है जिस पर भारत सरकार 2013 में कर्ज लेती थी। आर्थिक ग्रोथ के लिए आरबीआइ की ओर से नकदी का प्रवाह सामान्य स्तर पर बनाए रखने की संभावना है।

रुपये की कीमत में हल्की सी गिरावट आ रही है जिससे भारतीय निर्यातों को बल मिलेगा। राज्य सरकारें भी उद्योग-व्यापार को बढ़ावा देने वाली नीतियां अपना रही हैं। जीएसटी तथा नोटबंदी के परिणामस्वरूप समानांतर अर्थव्यवस्था मुख्यधारा में शामिल हो जाएगी। इससे सरकार को कम खर्च में ज्यादा कर प्राप्त होगा। सरकार राजकोषीय घाटे को काबू में रखते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा खर्च कर रही है। रबी की बंपर फसल से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला मजबूत है। यदि जनता कैशलेस अर्थव्यवस्था को अपनाती है तथा ज्यादा लोग टैक्स अदा करते हैं तो कंपनियों की अर्निंग में आश्चर्यजनक इजाफा हो सकता है।

इन हालात में निवेशकों को हमारी सलाह है कि वे एकबारगी एकमुश्त निवेश के बजाय लंबी अवधि तक नियमित निवेश का रास्ता अपनाएं और तात्कालिक घटनाओं पर आधारित अल्पकालिक उथलपुथल की चिंता बिल्कुल न करें। स्टॉक बाजार में सीधे निवेश तभी करें जब आपको बाजारों और निवेश के तौर-तरीकों की पूरी जानकारी हो। सामान्य निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंडों में सिस्टेमैटिक इंवेस्टमेंट का विकल्प सबसे बेहतर रहेगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.