ग्रामीण बैंकों की पूंजी बढ़ाने को खर्च नहीं हो पाई राशि
सरकार की ओर से ग्रामीण बैंकों का पूंजी आधार मजबूत बनाने के लिए दी गई धनराशि को पूरी तरह खर्च नहीं किया गया है
नई दिल्ली (जेएनएन)। दूरदराज के क्षेत्रों और गांवों में बैंकिंग सुविधाएं देने वाले क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों यानी आरआरबी का पूंजी आधार मजबूत बनाने के प्रयास पूरी तरह फलीभूत नहीं हो रहे हैं। सरकार ने इन बैंकों का पूंजी आधार मजबूत बनाने के लिए जो धनराशि दी थी, वह पूरी तरह खर्च नहीं हुई है। वहीं आरआरबी को तकनीकी सुविधाओं से लैस करने के प्रयास भी अधूरे साबित हो रहे हैं। इसका असर यह है कि इन बैंकों के ग्राहकों को वैसी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं जैसी सुविधाएं राष्ट्रीयकृत व्यावसायिक बैंकों या निजी बैंकों के ग्राहकों को मिलती हैं।
सरकार ने वित्त वर्ष 2014-15 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को 50 करोड़ रुपये आवंटित किए, लेकिन यह धनराशि खर्च नहीं हुई। वहीं वित्त वर्ष 2016-17 के आम बजट में सरकार ने आरआरबी के लिए 140 करोड़ रुपये का आवंटन किया। लेकिन संशोधित अनुमानों के समय इसे घटाकर मात्र 5.5 करोड़ रुपये कर दिया गया। वित्त वर्ष 2016-17 में दिसंबर तक इसमें से कुल 2.6 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इस तरह पिछले वित्त वर्ष में भी आरआरबी के लिए आवंटित धनराशि का इस्तेमाल नहीं हो पाया। वित्त मामलों की संसदीय समिति ने भी रिपोर्ट में इस पहलू की ओर सरकार का ध्यान खींचा है।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने आरआरबी का पूंजी आधार मजबूत बनाने के उपाय तलाशने को आरबीआइ के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर के. सी. चक्रवर्ती की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने 21 राज्यों में 40 आरआरबी को 2200 करोड़ रुपये की वित्तीय मदद देने की सिफारिश की थी। इस रकम का 50 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार, 35 प्रतिशत राशि प्रायोजक बैंक तथा 15 प्रतिशत संबंधित राज्य सरकार को देनी थी। इस तरह केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2014 तक अपने हिस्से की करीब 1100 करोड़ रुपये राशि जारी कर दी। इसके बाद सरकार ने जुलाई 2015 में आरआरबी को 700 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराने की घोषणा की। यह धनराशि उन बैंकों को दी जानी थी जिनका कैपिटल टू रिस्क वेटेड असेट रेशियो (सीआरएआर) 9 प्रतिशत से कम है। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि आरआरबी के लिए आवंटित धनराशि पूरी तरह खर्च नहीं हो सकी।
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