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बैंकों की बैलेंस शीट में सुधार पहली प्राथमिकता: आचार्य

विरल आचार्य ने कहा है कि बैंकों की बैलेंस शीट दुरुस्त करना आरबीआइ के लिए प्राथमिकता है

By Praveen DwivediEdited By: Published: Sun, 23 Jul 2017 11:37 AM (IST)Updated: Sun, 23 Jul 2017 11:37 AM (IST)
बैंकों की बैलेंस शीट में सुधार पहली प्राथमिकता: आचार्य
बैंकों की बैलेंस शीट में सुधार पहली प्राथमिकता: आचार्य

नई दिल्ली (पीटीआई)। भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा है कि बैंकों की बैलेंस शीट दुरुस्त करना आरबीआइ के लिए नंबर एक प्राथमिकता है। वह यहां दिल्ली इकोनॉमिक्स कांक्लेव में बोल रहे थे। बैंकों का सात लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज एनपीए यानी फंसे कर्ज में तब्दील हो चुका है। सरकार के अनुसार बैंकों का एनपीए अस्वीकार्य स्तर पर पहुंच चुका है। इसके समाधान के लिए तत्काल कदम उठाये जाने की जरूरत है। इस साल मार्च के अंत तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए बढ़कर 6.41 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया। जबकि समूचे बैंकिंग क्षेत्र का एनपीए 7.28 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। हाल में रिजर्व बैंक ने बैंकों पर एनपीए का बोझ घटाने के लिए कई कदम उठाये हैं।

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आरबीआइ के लिए ब्याज दर में कटौती के बजाय बैंकों की बैलेंस शीट दुरुस्त करना ज्यादा अहम है, इस सवाल पर आचार्य ने कहा कि निश्चित ही यह नंबर एक प्राथमिकता है। पिछले महीने उन्होंने कहा था कि होम लोन के लिए स्टैंडर्ड असेट प्रोवीजन में कटौती जैसे लक्षित हस्तक्षेप से ब्याज दर में कटौती नहीं होगी बल्कि कर्ज वितरण की वृद्धि दर सुधरेगी। बैंकों द्वारा दिये जाने वाले होम लोन व अन्य तरह के कर्जो के लिए निश्चित अनुपात में राशि का प्रावधान करना होता है। इसमें कमी होने से उनकी तरलता सुधरेगी और लागत घटने से वे खुद ब्याज दर घटा सकेंगे जिससे कर्ज सस्ता होगा और कर्ज वितरण में सुधार होगा।

सिस्टम में तरलता के प्रबंधन के लिए ओपन मार्केट ऑपरेशन पर उन्होंने कहा कि यह नियमित रूप से इस पर काम कर रहे हैं। ओपन मार्केट ऑपरेशन के तहत नकदी का लेनदेन साप्ताहिक आधार होता है। हम अगले एक साल के दौरान नकदी की जरूरत को ध्यान रखते हुए तरलता समुचित स्तर पर रखने के लिए नकदी का लेनदेन करते हैं।

नोटबंदी के बाद म्यूचुअल फंड और बीमा में निवेश बढ़ा

विरल आचार्य ने कहा है कि नोटबंदी के बाद काले धन को लेकर समाज में नजरिया बदला है। लोग वित्तीय उत्पादों को ज्यादा प्राथमिकता देने लगे हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि भारतीय आम घरों में बचत का 80 फीसद से ज्यादा हिस्सा नियोजित वित्तीय बचत के बजाय प्रॉपर्टी की शक्ल में है। उन्होंने कहा कि लोगों की जेब में पहला वेतन आते ही काला धन एकत्रित होने लगता है। लोग सोना और रियल एस्टेट में पैसा लगाना ज्यादा पसंद करते हैं। नकदी से ये सभी लेनदेन आसानी से होते रहते हैं।

लेकिन नोटबंदी ने ये सब रोक दिया है। नोटबंदी के बाद एक रोचक तथ्य सामने आया है कि अब बचत का वित्तीयकरण होने लगा है। दिसंबर से यह बदलाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रह है। म्यूचुअल फंड, बचत जैसे नियोजित निवेश कार्यक्रम, बीमा प्रीमियम में लोग ज्यादा पैसा लगा रहे हैं। मौजूदा हालात में लोगों के लिए बिना दिखाये प्रॉपर्टी में पैसा लगाने बहुत कठिन हो गया है।


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