अमेरिकी वीजा के नियमों में सख्ती आइटी कंपनियों के लिए बन सकता है वरदान
मोहनदास पई ने कहा अमेरिका में एच1-बी वीजा नियमों पर सख्ती भारतीय आइटी कंपनियों के लिए फायदेमंद हो सकता है
नई दिल्ली (जेएनएन)। अमेरिका में एच1-बी वीजा नियमों को कड़ा किया जाना भारतीय आइटी कंपनियों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है। सूचना तकनीकी यानी आइटी उद्योग की जानीमानी हस्ती टीवी मोहनदास पई ने इसे एक छुपा हुआ वरदान बताया है। उन्होंने कहा कि इससे भारतीय फर्मे अपने काम का और ज्यादा हिस्सा स्वदेश भेज सकेंगी। इसके एवज में वे ग्राहकों से बेहतर शुल्क वसूलने की भी स्थिति में होंगी। पई देश की दूसरी सबसे बड़ी आइटी कंपनी इंफोसिस के सीएफओ रह चुके हैं। अमेरिका एच1-बी वीजा विशेषज्ञता वाले पेशेवरों के लिए जारी करता है।
मोहनदास ने कहा कि फिलहाल भारतीय आइटी कंपनियों का कारोबारी मॉडल ऐसा है, जिसमें 30 फीसद काम विदेश में साइट पर और 70 प्रतिशत भारत में किया जाता है। आगे यह अनुपात 10 और 90 का हो जाएगा। यानी भारतीय फर्मे 90 फीसद काम देश में करेंगी, जबकि 10 प्रतिशत विदेश में। ये कंपनियां अपना ज्यादा काम देश में अंजाम देकर अपनी प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ा पाएंगी। कारोबार के 70-80 फीसद हिस्से के लिए ऐसा बड़े आसानी से किया जा सकता है।
मणिपाल ग्लोबल एजूकेशन सर्विसेज के चेयरमैन पई के मुताबिक एच1-बी के नए नियम भारतीय आइटी फर्मो के लिए बहुत अच्छे हैं, लेकिन उन कंपनियों के लिए बुरे हैं जो सस्ते श्रम का इस्तेमाल करने की कोशिश करती हैं। सबसे पहली बात, भारतीय आइटी कंपनियां सस्ता काम नहीं करती हैं, क्योंकि वे अपने ग्राहकों से एक ऑनसाइट कर्मचारी के हिसाब से प्रति वर्ष 1,25,000 डॉलर (करीब 80.85 लाख रुपये) से 1,50,000 डॉलर (लगभग 97.20 लाख रुपये) तक का भुगतान लेती हैं। इसके एवज में उनका वार्षिक औसत वेतन भुगतान 85,000 डॉलर (करीब 55 लाख रुपये) प्रति वर्ष तक होता है। उन्हें बेकार में बदनाम किया जा रहा है। रातोंरात उड़नछू हो जाने वाले कुछ ऑपरेटरों ने उनका नाम खराब किया है। इसलिए नए वीजा नियम भारतीय कंपनियों की मजबूती में भूमिका निभाएंगे, क्योंकि वे 2014 से ही एच1-बी वीजा की संख्या घटा रही हैं।