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एच-1बी वीजा पर अमेरिका की गंभीर कार्रवाई भारत के लिए चिंता की बात: अरिवंद सुब्रमण्यम

अरविंद सुब्रमण्यम ने बताया कि अगर ट्रंप प्रशासन एच1बी वीजा के लेकर कोई कार्रवाई करता है तो भारत के लिए चिंता की बात होगी

By Praveen DwivediEdited By: Published: Tue, 25 Apr 2017 01:46 PM (IST)Updated: Tue, 25 Apr 2017 01:46 PM (IST)
एच-1बी वीजा पर अमेरिका की गंभीर कार्रवाई भारत के लिए  चिंता की बात: अरिवंद सुब्रमण्यम
एच-1बी वीजा पर अमेरिका की गंभीर कार्रवाई भारत के लिए चिंता की बात: अरिवंद सुब्रमण्यम

नई दिल्ली (जेएनएन)। एच-1 बी वीजा कार्यक्रम पर ट्रम्प प्रशासन की ओर से की गई कोई भी "गंभीर कार्रवाई" "चिंता" का एक कारण होगी क्योंकि सेवा क्षेत्र में अधिकांश भारतीय निर्यात अमेरिका के पास जाते हैं। यह बात भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कही है।

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उन्होंने कहा, “अगर कोई गंभीर कार्यवाही की जाती है तो यह हमारे लिए बहुत चिंता की बात है क्योंकि याद रखें कि हमारे कुल निर्यात का लगभग 40 से 45 फीसद हिस्सा सेवा क्षेत्र से है। हमारे सभी सेवाओं के निर्यात का 50 से 60 फीसद हिस्सा संयुक्त राज्य अमेरिका में जाता है। तो यह हमारे लिए चिंता की बात है।”

उन्होंने पीटरसन इंस्टीट्यूट (अमेरिका का एक शीर्ष थिंक टैंक) में अपनी यात्रा के दौरान एच-1बी वीजा के संबंध में पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने यह बात कही। अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा कि भारत वीजा सुधारों पर बराबर अपनी नजर बनाए हुए है। उन्होंने कहा, “निर्यात विकास से हस्तक्षेप करने वाली कोई भी चीज चिंता पैदा करती है (भारत में)। हम सभी एच1बी वीजा की स्थितियों पर गंभीरता से नजर बनाए हुए हैं।”

नैस्कॉम ने अमेरिका के दावे को नकारा
आईटी इंडस्ट्री बॉडी नैस्कॉम ने सोमवार को टीसीएस और इन्फोसिस का बचाव करते हुए कहा कि साल 2014-15 के दौरान अप्रूव हुए कुल एच1बी वीजा में इन दोनों कंपनियों की हिस्सेदारी सिर्फ 8.8 फीसद (7,504) रही है। गौरतलब है कि हाल ही में इन दोनों कंपनियों पर अमेरिकी प्रशासन ने आरोप लगाते हुए कहा था कि इन कंपनियों ने लॉटरी सिस्टम का फायदा उठाते हुए गलत तरीके से ज्यादा एच1बी वीजा प्राप्त किए हैं।

भारतीय आईटी कंपनियां एच-1बी वीजा का उपयोग अपने कर्मचारियों को अमेरिका में अपने ग्राहकों के लिए काम करने के लिए भेजने में करती हैं। कुल 110 अरब डॉलर के भारतीय आईटी उद्योग के लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है। पिछले कुछ सप्ताह से अमेरिका समेत विभिन्न बाजारों में संरक्षणवाद की धारणा मजबूत हो रही है और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार बढ़ाने तथा विदेशी कर्मचारियों के लिये नियम कड़े किये जाने की मांग जोर पकड़ रही है।

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