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फिर टली विदेश व्यापार नीति की मध्यावधि समीक्षा

वाणिज्य मंत्रालय की पांच वर्षीय विदेश व्यापार नीति की मध्यावधि समीक्षा कर उसमें आवश्यक फेरबदल करने की संभवाना है

By Surbhi JainEdited By: Published: Thu, 14 Sep 2017 10:09 AM (IST)Updated: Thu, 14 Sep 2017 10:09 AM (IST)
फिर टली विदेश व्यापार नीति की मध्यावधि समीक्षा
फिर टली विदेश व्यापार नीति की मध्यावधि समीक्षा

नई दिल्ली (जेएनएन)। पांच वर्षीय विदेश व्यापार नीति की इस साल होने वाली मध्यावधि समीक्षा एक बार फिर टलने की संभावनाएं बन गई हैं। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में नए मंत्री के कमान संभालने के बाद अब नीति पर विचार विमर्श नए सिरे से शुरू होगा। इसकी वजह से अब सितंबर के अंत तक संशोधित एफटीपी के एलान की संभावनाएं समाप्त हो गई है।

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वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक मंत्री पद संभालने के बाद सुरेश प्रभु ने कई विभागों के साथ बैठकें की हैं। किंतु विदेश व्यापार को लेकर विशेष तौर पर अभी तक कोई बैठक नहीं हो पाई है। साथ ही अभी उनका निर्यात संवर्धन परिषदों के साथ बैठकों का सिलसिला भी शुरू नहीं हुआ है। सूत्र बताते हैं कि नए मंत्री विदेश व्यापार नीति पर नए सिरे से विचार विमर्श की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। इसलिए संशोधित एफटीपी आने की संभावनाएं अभी कुछ दिन और टल गई हैं।

निर्यात संघों को उम्मीद थी कि सितंबर के अंत तक वाणिज्य मंत्रालय पांच वर्षीय विदेश व्यापार नीति की मध्यावधि समीक्षा कर उसमें आवश्यक फेरबदल कर देगा। निर्यात की धीमी होती रफ्तार में निर्यात संघों को संशोधित नीति के जरिये कुछ रियायतें मिलने की उम्मीद थी। चूंकि वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही निर्यात के ऑर्डरों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है इसलिए निर्यातक समुदाय मान रहा था कि सितंबर के अंत तक विदेश व्यापार नीति की तस्वीर स्पष्ट होने का लाभ उन्हें तीसरी तिमाही में होगा।

दूसरी तरफ निर्यातकों को जीएसटी के तहत रिफंड मिलने में होने वाली देरी ने भी दिक्कत में डाल दिया है। जीएसटी परिषद ने जीएसटी नेटवर्क में हो रही दिक्कतों के चलते जीएसटीआर-1 दाखिल करने की आखिरी तारीख को 10 अक्टूबर तक बढ़ा दिया है। इससे निर्यातकों को मिलने वाला टैक्स रिफंड भी एक महीने के लिए लटक गया है। निर्यात संघों से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि यह रिफंड निर्यातकों के लिए वर्किंग कैपिटल के तौर काम करता है। इसके मिलने में देरी होगी तो निर्यातकों का पूरा तंत्र ही डगमगा जाएगा। इससे निर्यात की रफ्तार को तेज करने के प्रयासों को भी धक्का लगेगा।


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