इटली में जनमत संग्रह से पहले निवेशक सतर्क, जानिए दुनियाभर के बाजारों पर क्या हो सकता है असर
इटली के जनमत संग्रह के नतीजों का इंतजार यूरोप समेत दुनियाभर के निवेशक उत्सुकता से कर रहे हैं।
नई दिल्ली: 68 वर्ष पुराने पार्लियामेंट्री सिस्टम में बदलाव करने के लिए इटली की सरकार संविधान में बड़े बदलाव करना चाहती है, जिसके लिए रविवार को 5 करोड़ से ज्यादा इटली की जनता के बीच जनमत संग्रह कराया गया। जनमत संग्रह के नतीजों का इंतजार यूरोप समेत दुनियाभर के निवेशक उत्सुकता से कर रहे हैं। एक्सपर्ट का मानना है कि इटली में होने वाले जनमत संग्रह के नतीजे यूरोप समेत दुनियाभर के शेयर बाजारों की चाल तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे। इटली के इस जनमत संग्रह को ब्रेक्जिट जैसी घटना के तौर पर देखा जा रहा है।
जनमत संग्रह में 'ना' के मायने:
यदि इटली की जनता इस जनमत संग्रह को नकार देती है यानी ज्यादा वोट 'ना' में पड़ते हैं तो प्रधानमंत्री मैटियो रेंजी के लिए यह चिंता का सबब बन सकता है। यहां तक की उनकी कुर्सी भी जा सकती है। बाजार के विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अगर जनता ने जनमत संग्रह को नकार दिया तो इटली में नए सिरे से चुनाव की बात शुरू हो सकती है जो इटली समेत यूरोपियन यूनियन में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता को बढ़ा देगा। साथ ही इटली के बैंकों में पुन: पूंजीकरण की प्रक्रिया और पेचीदा हो जाएगी। इसी के चलते जनमत संग्रह से ठीक पहले शुक्रवार के कारोबारी सत्र में इटली का इंडेक्स इटेलियन एमआईबी कमजोरी के साथ बंद हुआ और बैंकिंग शेयरों में मिलाजुला कारोबार देखने को मिला।
सरकार के पक्ष में रहा जनमत संग्रह तब?
जनमत संग्रह में यदि इटली की जनता हां में वोट करती है तो यह माना जाएगा कि प्रधानमंत्री मैटियो रेंजी को जनता की ओर से दिया गया नया जनादेश है जो रिफॉर्म की गति को तेज करेगा। जनमत संग्रह से पहले अपने कैपेन को समाप्त करने हुए रेंजी ने कहा कि यदि हम इस मौके से चूक गए तो अगले 20 वर्षों तक यह मौका दोबारा नहीं आएगा। एक्सपर्ट मानते हैं कि जनमत संग्रह में सरकार की जीत के बाद यूरोपीय बाजारों में तेजी देखने को मिलेगी जिसका असर सकारात्मक असर भारत समेत दुनियाभर के बाजारों पर होगा।
भारत समेत दुनियाभर के बाजारों पर क्या होगा असर?
जनमत संग्रह के यदि सरकार जीतती है यानी अगर इटली की जनता हां में वोट करती है तो यूरोप समेत दुनियाभर के बाजारों के लिए यह सकारात्मक होगा। लेकिन यदि इसके विपरीत जनमत संग्रह को जनता नकार देती है तो राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी जो यूरोपीय करंसी और शेयर बाजार के लिए नकारात्मक होगा। जिसका नकारात्मक असर भारत समेत तमाम इमर्जिंग मार्केट्स पर देखने को मिलेगा।