महंगे होते पेट्रोल-डीजल से चिंता में सरकार, पर फिलहाल राहत की उम्मीद नहीं
पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान संकेत दिए हैं कि आने वाले कुछ समय तक पेट्रोल व डीजल के मूल्य वृद्धि के बोझ को बर्दाश्त करने के लिए तैयार रहें।
नई दुनिया। कच्चे तेल की कीमत आधी रह जाने के बावजूद पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में हो रही बढ़ोतरी से सरकार चिंतित है। ऐसे में आम जनता को भावी मूल्य वृद्धि से बचाने के लिए कुछ उपायों पर विचार किया जा रहा है। वैसे तो सरकार की तरफ से फिलहाल केंद्रीय शुल्कों में कमी की संभावना से इन्कार किया गया है लेकिन राज्य सरकारों पर पेट्रोल व डीजल पर लागू बिक्री कर या वैट की दरों में कमी करने का दबाव बनाया जा सकता है।
इसी तरह से अगर आने वाले दिनों में भी खुदरा कीमतें बढ़ती हैं तो तेल कंपनियों को भी कुछ हद तक मूल्य वृद्धि का बोझ वहन करने को कहा जा सकता है। इससे आम जनता को कुछ हद तक संभावित मूल्य बढ़ोतरी से राहत मिल सकती है।
पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से जब यह पूछा गया कि क्या सरकार रोजाना कीमत तय करने के फॉर्मूले में कोई बदलाव करेगी तो उनका जवाब था कि सरकार के पास ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने कहा, "सरकार ने सोच-समझ कर यह सुधारवादी कदम उठाया है और इसे वापस नहीं लिया जाएगा।" रोजाना कीमत मूल्य वृद्धि का फॉर्मूला जुलाई, 2017 से लागू है और उसके बाद से पेट्रोल की खुदरा कीमत में 7.3 फीसद का इजाफा हो चुका है।
जब उनसे यह पूछा गया कि क्या सरकार शुल्कों में कोई कटौती कर आम जनता को राहत देगी तो उन्होंने इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया और कहा कि जो कर वसूला जा रहा है वह सरकार विकास कार्यों में लगा रही है।उन्होंने कहा कि यह थोड़े दिनों की समस्या है। अमेरिका में तूफान आने से समस्या बढ़ गई है। जल्द ही स्थिति सामान्य होगी और कच्चा तेल सस्ता होगा तो इसका फायदा आम जनता को जल्दी से मिलेगा। प्रधान ने यह भी तर्क दिया कि शुल्क कटौती का फैसला वित्त मंत्रालय के स्तर पर होता है।
आज प्रधान ने पेट्रोलियम क्षेत्र की सरकारी कंपनियों के साथ पूरे हालात पर एक बैठक भी की। सूत्रों के मुताबिक सरकारी तेल कंपनियों की माली हालत पिछली तीन-चार तिमाहियों में काफी सुधरी है। ऐसे में उन्हें यह संकेत दे दिया गया है कि आने वाले कुछ समय तक वे मूल्य वृद्धि के बोझ को बर्दाश्त करने के लिए तैयार रहें।
राज्यों के कर में कटौती का विकल्प
उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए दूसरा रास्ता राज्य स्तरीय कर की दरों में कटौती का है। राज्य अभी भी पेट्रोल व डीजल पर खूब सेल्स टैक्स या वैट वसूल रहे हैं। महाराष्ट्र (मुंबई) में सबसे ज्यादा 47.64 फीसद कर पेट्रोल पर लगाया जाता है। आंध्र प्रदेश 38.82 फीसद, उत्तर प्रदेश में 32.45 फीसद, उत्तराखंड में 32.51 फीसद, बिहार में 26 फीसद, छत्तीसगढ़ में 28.88 फीसद, गुजरात में 28.96 फीसद, दिल्ली में 27 फीसद, मध्य प्रदेश में 38.79 फीसद, पंजाब में 36.04 फीसद, हरियाणा में 26.25 फीसद का स्थानीय कर राज्य सरकारें लगा रही हैं।