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रोजगार के आंकड़े जुटाने को सरकार ने टास्क फोर्स का गठन किया

सरकार ने रोजगार के आंकड़े जुटाने के लिए एक टास्कफोर्स का गठन कर दिया है

By Surbhi JainEdited By: Published: Fri, 23 Jun 2017 11:37 AM (IST)Updated: Fri, 23 Jun 2017 11:37 AM (IST)
रोजगार के आंकड़े जुटाने को सरकार ने टास्क फोर्स का गठन किया
रोजगार के आंकड़े जुटाने को सरकार ने टास्क फोर्स का गठन किया

नई दिल्ली (हरिकिशन शर्मा)। हाल में जब खबर आयी कि देश की विकास दर सात फीसद है, लेकिन रोजगार में वृद्धि सिर्फ एक फीसद है तो राजनीतिक बहस छिड़ गई। रोजगार-बेरोजगार लंबे अरसे से चुनावी मुद्दे रहे हैं। इसलिए विपक्ष फौरन इन आंकड़ों को हथियार बनाकर सरकार पर हमलावर हो गया। सत्तापक्ष सफाई देते-देते अंतत: इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने लगा। मामला तूल पकड़ते देख सरकार हरकत में आई और आनन-फानन रोजगार के समयबद्ध और भरोसेमंद आंकड़े जुटाने का नया तरीका इजाद करने को एक टास्कफोर्स का गठन कर दिया।

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विपक्ष का यह सवाल लाजिमी है कि नौजवानों को कितनी नौकरियां मिलीं क्योंकि मौजूदा सरकार ने सत्ता में आने से पहले ‘अबकी बार, युवाओं को रोजगार’ का नारा दिया था। महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ लांच हुआ तब भी कहा गया कि 2022 तक अकेले मैन्यूफैक्चरिंग में 10 करोड़ अतिरिक्त नौकरियां आ जाएंगी। हालांकि, जब लेबर ब्यूरो का सर्वे आया तो उसमें तस्वीर उलट ही दिखी और इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस छिड़ गई। राजनीतिक दलों के बीच छिड़ी यह बहस अधूरी ही रही क्योंकि आजादी के सत्तर साल बाद भी देश में रोजगार के नियमित, समयबद्ध और विश्वसनीय आंकड़े जुटाने का कोई तंत्र विकसित नहीं हुआ है। अमेरिका जैसे देशों में जहां हर माह रोजगार-बेरोजगारी के आंकड़े आते हैं, वहीं भारत में इस दिशा में किसी भी दल की सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

फिलहाल श्रम मंत्रालय के अधीन आने वाला लेबर ब्यूरो ‘तिमाही रोजगार सर्वे’ करता है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह सर्वेक्षण अपर्याप्त है क्योंकि इसमें मात्र आठ क्षेत्रों की 10,628 यूनिटें ही कवर होती हैं। इसकी दूसरी कमी है कि इसमें सिर्फ वही यूनिट कवर होती हैं जिनमें 10 से अधिक कामगार हैं। नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगढ़िया ने इस सर्वे में कई खामियां गिनाई हैं। वैसे भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीयविद् प्रणव सेन इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि 2008 में जब मंदी आई थी तो इस सर्वे की शुरुआत ही जॉब लॉस देखने के लिए हुई थी। यह सर्वे जॉब लॉस के आंकड़े देता है जॉब गेन के नहीं।

लेबर ब्यूरो एक सालाना सर्वे भी करता है। इसमें करीब 1.56 लाख परिवारों के 7.81 सदस्यों से सवाल-जवाब कर रोजगार की स्थिति जानने का प्रयास किया गया। यह 2011-12 से चल रहा है और इसके ताजा आंकड़े 2015-16 तक के ही उपलब्ध हैं। इस सर्वे में भी कई खामियां हैं। रोजगार के आंकड़े जुटाने का तीसरा महत्वपूर्ण सर्वेक्षण एनएसएसओ (नेशपनल सेंपल सर्वे ऑफिस) करता है। वैसे तो एनएसएसओ का यह सर्वे एक लाख परिवारों से सवाल-जवाब पर आधारित होता है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी है कि यह पांच साल में एक बार ही होता है। सेन कहते हैं कि यह सर्वे पिछले साल ही हो जाना चाहिए था, लेकिन एनएसएसओ के नए सर्वे के इंतजार में यह नहीं हुआ।


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