आरबीआई की ओर से भविष्य में रेट कट को लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय
RBI की ओर से भविष्य में ब्याज दरों में कटौती को देखते हुए विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है
नई दिल्ली (जेएनएन)। निकट भविष्य में क्या घटती महंगाई को देखते हुए ब्याज दर में कटौती होगी या आरबीआइ इसे अस्थायी मानकर रेट को बनाए रखेगा? इस बारे में रिजर्व बैंक के भविष्य के रुख को लेकर विश्लेषकों में एक राय नहीं है।
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने कहा कि महंगाई के मोर्चे पर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की चिंताएं घट रही हैं। यह देखते हुए कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में केंद्रीय बैंक ने अपने दृष्टिकोण में कटौती की है। उसने इसे पूर्व के पांच फीसद के मुकाबले 3.5-4.5 फीसद के दायरे में रखा है। मेरिल लिंच ने अच्छी बारिश होने पर दो अगस्त को होने वाली अगली समीक्षा में ब्याज दर में कटौती की उम्मीद जताई है।
सिंगापुर के बैंक डीबीएस के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि मौद्रिक नीति में नरम रुख के कारण आगे कटौती की संभावना बढ़ गई है। उन्होंने मार्च, 2018 तक 0.50 फीसद तक की कटौती का लगाया। जबकि पहले बैंक को किसी तरह की कमी की उम्मीद नहीं थी। घरेलू ब्रोकरेज फर्म ईडलवीस ने भी माना है कि चालू वित्त वर्ष के शेष महीनों में नीतिगत दर में आधा फीसद तक कटौती हो सकती है।
हालांकि, जापानी ब्रोकरेज कंपनी नोमुरा और ब्रिटिश ब्रोकरेज फर्म एचएसबीसी के विश्लेषक इसके उलट महसूस करते हैं। नोमुरा ने कहा कि महंगाई के निचले स्तर की वर्तमान स्थिति को आरबीआइ सही देख रहा है। उसे भी ऐसा लगता है कि अगले साल तक महंगाई नोटबंदी के पहले के स्तर पर पहुंचेगी। नोमुरा को 2017 में किसी कटौती की उम्मीद नहीं है। उसने कहा कि अगस्त की समीक्षा में रेट में कमी का मौका है, लेकिन ऐसा होने की सिर्फ 40 फीसद ही संभावना है।
मजबूती की ओर बढ़ेगी अर्थव्यवस्था
अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष में धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ेगी। रिजर्व बैंक के सर्वे में यह बात कही गई है। इसमें अनुमान लगाने वाले 28 संस्थानों को शामिल किया गया। सर्वे के अनुसार, वास्तविक जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) और वास्तविक जीवीए (सकल मूल्य वर्धित) के 2017-18 में क्रमश: 7.4 फीसद और 7.2 फीसद बढ़ने की उम्मीद है।
वित्त मंत्रलय, आरबीआइ के बीच तनाव स्वीकार करने की जरूरत
वित्त मंत्रलय और आरबीआइ के बीच तनावपूर्ण संबंधों के खुल जाने के बाद रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाई. वेणुगोपाल रेड्डी ने कहा है कि इसको स्वीकारना चाहिए। अगर आरबीआइ हमेशा वित्त मंत्रलय से सहमत होता है, तो यह अनावश्यक होगा। ऐसा नहीं होता है तो यह अप्रिय होगा। लिहाजा तनाव को स्वीकार करना होगा।