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भारत जैसे विकासशील देश को सस्ती दर पर कच्चा तेल देना ओपेक के लिए फायदे का सौदा: धर्मेद्र प्रधान

भारत में रोजाना 45 लाख बैरल क्रूड प्रति दिन की खपत होती है

By Surbhi JainEdited By: Published: Tue, 23 May 2017 10:36 AM (IST)Updated: Tue, 23 May 2017 10:36 AM (IST)
भारत जैसे विकासशील देश को सस्ती दर पर कच्चा तेल देना ओपेक के लिए फायदे का सौदा: धर्मेद्र प्रधान
भारत जैसे विकासशील देश को सस्ती दर पर कच्चा तेल देना ओपेक के लिए फायदे का सौदा: धर्मेद्र प्रधान

नई दिल्ली (जेएनएन)। ऐसे समय जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों को लेकर नई तरह की अनिश्चितता सामने आ रही है भारत ने तेल उत्पादक देशों के संगठन (ओपेक) से कीमतों में रियायत की मांग की है। पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेद्र प्रधान ने कहा है कि भारत जैसे विकासशील लेकिन बहुत बड़ी आबादी वाले देश को सस्ती दर पर कच्चा तेल देना ओपेक के लिए फायदे का सौदा है क्योंकि अगर भारत सस्ती दर पर तेल खरीदेगा तो वह अपनी अन्य समाजिक आर्थिक जरूरतों को तेजी से पूरा करेगा। इससे भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग बढ़ेगी। भारत उन गिनी-चुनी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में है जहां कच्चे तेल की मांग तेज है। यही नहीं भारत में गैर पारंपरिक ऊर्जा तेजी से बढ़ रही है। अगर कच्चे तेल की कीमतों में नरमी नहीं आई तो गैर पारंपरिक ऊर्जा का प्रचलन और बढ़ेगा।

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प्रधान विएना में ओपेक मुख्यालय में भारत और ओपेक देशों के बीच होने वाली बैठक को संबोधित कर रहे थे। प्रधान ने भारत की तेल रिफाइनरी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ ओपेक के महासचिव व अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अलग से बैठक भी की। प्रधान ने कहा कि भारत ओपेक देशों के सबसे बड़े खरीदारों में से है लेकिन अभी भी उससे एशियाई प्रीमियम वसूला जाता है। इससे भारत को क्रूड के लिए ज्यादा कीमत देनी पड़ती है। जबकि सबसे बड़े व स्थाई खरीदार के तौर पर ओपेक देशों को भारत को छूट देनी चाहिए। भारत अपनी जरूरत का 86 फीसद क्रूड, 70 फीसद प्राकृतिक गैस और 95 फीसद एलपीजी ओपेक देशों से आयात करता है। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था भी है। इसलिए ओपेक देशों को भारत के लिए विशेष व्यवस्था करनी चाहिए।

भारत में रोजाना 45 लाख बैरल क्रूड प्रति दिन की खपत होती है और पिछले वित्त वर्ष यहां इसकी मांग में तीन फीसद की वृद्धि हुई थी। भारत में ऊर्जा की मांग अगले 20 वर्षो में दोगुनी हो जाएगी जिसे ओपेक देश नजरअंदाज नहीं कर सकते।


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