इकोनॉमिक सर्वे: नोटबंदी से वित्त वर्ष 2017 में जीडीपी ग्रोथ आधा फीसद तक कम होने का अनुमान
इकोनॉमिक सर्वे में बताया गया है कि वित्त वर्ष 2017 के लिए जीडीपी ग्रोथ में चौथाई से आधा फीसद की कमी देखने को मिल सकती है
नई दिल्ली। केंद्र सरकार की ओर से लिए गए नोटबंदी के फैसले के कारण वित्त वर्ष 2017 के लिए जीडीपी ग्रोथ में चौथाई से आधा फीसद की कमी देखने को मिल सकती है। हालांकि सर्वे में यह भी कहा गया है कि ब्याज दरों में कमी लाने, भ्रष्टाचार का खात्म करने और असंगठित क्षेत्र की गतिविधियों में तेजी लाने से नोटबंदी का लंबी अवधि में फायदा देखने को मिल सकता है। इस सर्वे में नोटबंदी के प्रभाव को कम करने के चार उपाय भी सुझाए गए हैं।
क्या कहा गया सर्वे में:
बीते 8 नवंबर को लिए गए नोटबंदी फैसले के मुताबिक बाजार में प्रचलित 86 फीसदी करेंसी (500 और 1000 रुपए के पुराने नोट) को वापस ले लिया गया था। वित्त वर्ष 2016-17 के इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक, “नोटबंदी का देश की जीडीपी पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा और जीडीपी ग्रोथ में चौथाई (0.25 फीसद) से आधा (0.50 फीसद) फीसद की कमी आ सकती है।” हालांकि, इस सर्वे में वित्त वर्ष 2017-18 के लिए 6.75 से 7.5 फीसद तक की विकास दर का का अनुमान लगाया गया है। वहीं मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 6.5 फीसद जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया गया है। यह आंकड़ा केंद्रीय सांख्यिकी विभाग की ओर से अनुमानित 7.1 फीसदी के आंकड़े से कम है।
नए नोटों के प्रचलन में तेजी लाई जाए:
इकोनॉमिक सर्वे में सुझाव दिया गया है कि अगर नोटबंदी के असर को कम किया जाना है तो बाजर में नई करेंसी के प्रचलन में थोड़ी तेजी लानी होगी। साथ ही कैश निकासी पर जारी सीमा को भी जल्द से जल्द हटाया जाना चाहिए। इस सुझाव के पीछे दलील दी गई है कि ऐसा करने से ग्रोथ की सुस्ती कम होगी और जमाखोरी को रोका जा सकेगा।
डिजिटलाइजेशन को और रफ्तार दी जाए:
नोटबंदी के असर को कम करने के लिए डिजिटलाइजेशन प्रक्रिया को और रफ्तार दिए जाने की जरूरत है। इकोनॉमिक सर्वे में यह बात कही गई है। सर्वे में यह भी कहा गया है कि यह बदलाव आहिस्ता-आहिस्ता, समावेशी और इंसेंटिव्स आधारित होना चाहिए। साथ ही यह भी कहा गया है कि डिजिटलाईजेशन की लागत और लाभ के बीच में सामंजस्य बिठाया जाना चाहिए।
GST में शामिल हों LAND और REAL ESTATE:
वित्त वर्ष 2017 के इकोनॉमिक सर्वे में सुझाव दिया गया है कि जमीन (लैंड) और अचल संपत्तियों (रियल एस्टेट) का कारोबार जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए। माना जा रहा है कि अगर सरकार ऐसा करती है तो यह नोटबंदी के बाद एक बड़ा कदम होगा।
टैक्स में कटौती की जरूरत:
इस सर्वे में यह भी सुझाव दिया गया है कि टैक्स की दरों में कटौती और स्टैंप ड्यूटी में कमी लाए जाने की जरूरत है। अगर टैक्स सिस्टम में सुधार किया जाता है तो इनकम डिक्लेरेशन को प्रोत्साहित किया जा सकेगा। साथ ही कर प्रशासन से जुड़ी दिक्कतों में कमी आएगी।