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बाजार की हालत ने रोकली विनिवेश की रफ्तार

वजह भले ही ग्लोबल हो, लेकिन शेयर बाजार में मची उथल-पुथल ने सरकार के विनिवेश कार्यक्रम की रफ्तार को धीमा होने पर मजबूर कर दिया है। इस स्थिति के लंबा खिंचने पर सरकार के गैर कर राजस्व के लक्ष्यों को पाने में भी मुश्किल हो सकती है।

By Sudhir JhaEdited By: Published: Sat, 12 Sep 2015 08:34 PM (IST)Updated: Sat, 12 Sep 2015 08:56 PM (IST)
बाजार की हालत ने रोकली विनिवेश की रफ्तार

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। वजह भले ही ग्लोबल हो, लेकिन शेयर बाजार में मची उथल-पुथल ने सरकार के विनिवेश कार्यक्रम की रफ्तार को धीमा होने पर मजबूर कर दिया है। इस स्थिति के लंबा खिंचने पर सरकार के गैर कर राजस्व के लक्ष्यों को पाने में भी मुश्किल हो सकती है।

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पिछले एक महीने से ग्लोबल वजहों के चलते शेयर बाजार में भारी उठापटक चल रही है। अमेरिका में ब्याज दरों में वृद्धि की आंशका और कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट ने विदेशी निवेशकों को उभरते बाजारों से अपना निवेश निकालने पर मजबूर कर दिया है। यही वजह है कि सेंसेक्स और निफ्टी इस दौर में 15 महीने के न्यूनतम तक को छूने के लिए मजबूर हो गए थे।

बाजार के इन्हीं हालात में सरकार ने बीते महीने इंडियन ऑयल का इश्यू बाजार में उतारा था। निवेशकों की उदासीनता के चलते बमुश्किल जीवन बीमा निगम और अन्य घरेलू वित्तीय संस्थानों की मदद से उसे सफल बनाया जा सका। यही वजह है कि फिलहाल विनिवेश के लिए तैयार अन्य कंपनियों ने बाजार से अपने हाथ वापस खींच लिए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ कंपनियों ने तो विनिवेश विभाग को अपने इस फैसले से अवगत भी करा दिया है कि उन्हें बाजार में उतरने के लिए अभी वक्त चाहिए।

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सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2015-16 के लिए 69,500 करोड़ रुपये विनिवेश के जरिए जुटाने का लक्ष्य रखा है। वित्त वर्ष की पहली छमाही बीतने को है। लेकिन अभी तक इस मद में सरकार को केवल 12,600 करोड़ रुपये की राशि ही मिल पाई है। हालांकि सार्वजनिक उपक्रमों यानी पीएसयू में अपनी इक्विटी घटाकर सरकार का इरादा 41,000 करोड़ रुपये जुटाने का है। बाकी 28,500 करोड़ रुपये रणनीतिक निवेश से एकत्र करने की योजना है।

माना जा रहा है कि अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व 17 सितंबर को ब्याज दरों में वृद्धि का फैसला लेता है तो शेयर बाजार की यह अनिश्चितता लंबी खिंच सकती है। ऐसा होने पर सरकार के लिए किसी पीएसयू को बाजार में उतारना मुश्किल होगा। यह स्थिति सरकार के गैर कर राजस्व संग्रह पर असर डाल सकती है। इसका असर सरकार के सार्वजनिक खर्च पर भी पड़ सकता है।

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