RERA के अमल में आने पर भी नहीं दूर होती दिख रहीं घर खरीदारों की चिंताएं, जानें 6 बड़े कारण
बहुत-प्रतीक्षित रियल एस्टेट अधिनियम रेरा (RERA) के लागू होने के बाद भी घर खरीदारों को राहत पाने के लिए अभी थोड़ा और इंतजार करना पड़ सकता है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। आने वाले वर्षों में घर खरीदने की योजना बना रहे लाखों लोग और वो लोग जिनका पैसा अंडर कंस्ट्रक्शन प्रोजक्ट में फंस चुका है, रियल एस्टेट अधिनियम रेरा (RERA) का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। वैसे तो इसे 1 मई 2017 से ही अमल में ला दिया गया है हालांकि, ऐसा लगता है कि रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 (आरईआरए) के तहत होमबॉयर को राहत मिलने के लिए अभी और समय लग सकता है।
इस नए नियम के तहत राज्य और संघ शासित प्रदेशों (यूटी) की सरकारों की ओर से अलग-अलग समयसीमाएं तय की गईं थी। हालांकि, कई राज्य विभिन्न मोर्चों पर समय से काफी पीछे हैं। जानिए और पढ़िए उन समय सीमाओं के बारे में जो अब भी अधूरी हैं और जिन्हें पूरा किया जाना बाकी है।
नियमों को सूचित करना (Notifying the rules):
होमबॉयर का फायदा सुनिश्चित करने वाले इस नियम में सबसे बड़ा पेंच यह है कि इसके कार्यान्वयन (1 मई 2016) की तारीख से, यह जरूरी है कि सभी राज्य सरकारें अगले 6 महीनों के भीतर इससे जुड़े नियमों को सूचित करें। यानी अक्टूबर 2016 तक। लेकिन स्थिति यह है कि 30 अप्रैल 2017 तक सिर्फ 5 राज्यों ने ही नियमों को अधिसूचित किया है। केंद्र सरकार को संघ राज्य क्षेत्रों के लिए नियमों को सूचित करने की आवश्यकता थी। जबकि अधिनियम के तहत 59 अनुभागों को पिछले साल 26 अप्रैल को अधिसूचित किया गया था, शेष 32 धाराओं को केंद्र सरकार ने 19 अप्रैल को यानी काफी देर से अधिसूचित किया। राज्यों की धीमी रफ्तार से चलती नौकरशाही राज्यों की ओर से इस अधिनियम को सूचित करने में देरी के पीछे के संभावित कारणों में से एक हो सकती है।
नियामकीय प्राधिकरण की स्थापना (Establishing the authority):
अधिनियम के अनुसार यह निश्चय किया गया था कि 30 अप्रैल 2017 तक नियामकीय प्राधिकरण की स्थापना कर ली जानी चाहिए। हालांकि, अभी तक किसी भी राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से स्थायी नियामक प्राधिकरण की स्थापना नहीं की गई है। यह अधिनियम एक पूर्ण विनियामक प्राधिकरण स्थापित होने तक सरकार को अंतरिम नियामक प्राधिकरण के रूप में किसी भी अधिकारी को नामित करने की शक्ति प्रदान करता है। आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के अनुसार, 1 मई 2017 तक 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अंतरिम नियामक प्राधिकरणों का निर्माण किया है। इसमें शामिल हैं: केरल, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, मिजोरम, हरियाणा, दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, और चंडीगढ़। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरिम नियामक प्राधिकरण स्थापित करने में नियमों का उल्लंघन हो रहा है
अपीलीय ट्रिब्यूनल की स्थापना करना (The appellate tribunal):
अधिनियम ने राज्यों को अचल संपत्ति अपीलीय ट्रिब्यूनल स्थापित करने का भी आदेश दिया है। इसके लिए 30 अप्रैल 2017 तक की डेडलाइन दी गई थी। हालांकि अभी तक ऐसा नहीं किया जा सका है। ट्रिब्यूनल की स्थापना इसलिए जरूरी है क्योंकि अगर किसी सूरत में घर खरीदार अथॉरिटी के फैसले से सहमत नहीं है तो वो राहत पाने के लिए ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटा सकता है।
परियोजनाओं का पंजीकरण (Registration of projects):
इस केंद्रीय अधिनियम के अंतर्गत जरूरी है कि डेवलपर्स अपनी उन सभी परियोजनाओं के लिए जिन पर काम चल रहा है और उन्हें पूर्णता प्रमाण पत्र (सीसी) नहीं मिला है वो 31 जुलाई से पहले नियामक प्राधिकरणों से उन्हें पंजीकृत करवा लें। हालांकि काफी सारे राज्यों ने इसे हल्के में लिया है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकार ने चल रही उन परियोजनाओं के पंजीकरण को बाहर रखा गया है जहां सेवाओं को स्थानीय प्राधिकरणों को या रख-रखाव के लिए स्थानीय कल्याणकारी संगठनों को सौंप दिया गया है।
संपत्ति एजेंटों का पंजीकरण (Registration of estate agents):
रियल एस्टेट एजेंटों का भी 31 जुलाई से पहले प्राधिकरण के साथ पंजीकृत होना आवश्यक है। अधिनियम के अनुसार, एक 'रियल एस्टेट एजेंट' कोई भी व्यक्ति हो सकता है जो प्लॉट, अपार्टमेंट या भवन के लेनदेन में एक व्यक्ति की ओर से कार्य करता है, कमीशन के रूप में पारिश्रमिक प्राप्त करता है और संपत्ति डीलरों, दलालों, बिचौलियों में शामिल हैं।
वेब आधारित प्रणाली (Web-based system):
इस एक्ट के अनुसार एक नियामक प्राधिकरण की स्थापना से 1 वर्ष के भीतर विभिन्न प्रयोजनों के लिए वेब-आधारित ऑनलाइन सिस्टम होने की आवश्यकता है। यह अधिनियम की सबसे प्रमुख धाराओं में से एक है। एक बार नियामकीय वेबसाइट कामकाज शुरू कर लेती है एक खरीदार संपत्ति खरीदने से पहले उचित निर्णय लेने में सक्षम होगा।
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