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बैंकों से सवाल करना हो गया है जरूरी

आपने बैंकों को पैसे की हिफाजत की जिम्मेदारी सौंप रखी है इसलिए उनसे मूलभूत सवाल पूछने जरूरी हैं।

By Monika minalEdited By: Published: Mon, 05 Sep 2016 12:24 PM (IST)Updated: Mon, 05 Sep 2016 12:29 PM (IST)
बैंकों से सवाल करना हो गया है जरूरी

रिजर्व बैंक के बारे में काफी चर्चा हुई है। इस बात पर भी चर्चा हुई है कि अलग-अलग नेतृत्व के अधीन रिजर्व बैंक का परिचालन कैसा रहा है। साथ ही यह भी चर्चा रही है कि आने वाले समय में यह बैंक कैसे चलेगा। इस तरह की लगभग सभी चर्चाओं का केंद्र मौद्रिक नीति, फंसा कर्ज, बैंक लाइसेंस और अन्य ऐसे ही मुद्दे रहे हैं। हालांकि, मैंने देखा है कि भारत के केंद्रीय बैंक का मुखिया कोई भी हो लेकिन इस तथ्य को हमेशा नजरअंदाज किया गया है कि केंद्रीय बैंक उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने में नाकाम रहा है। सबसे खराब बात तो यह है कि किसी भी व्यक्ति को इस बात में कोई मुद्दा नजर नहीं आता खासकर जिस तरह इसकी जरूरत है। उपभोक्ताओं को खतरे के दो कारण हैं। एक खुद बैंक हैं जो दो तरीके से उपभोक्ताओं की जेब से पैसा निकालते हैं। पहला, वे इस तरह के प्रोडक्ट बनाते हैं जिससे कि वे जितना चाहें उतना चार्ज वसूल कर सकें। दूसरा, वे कमीशन के लिए थर्ड पार्टी प्रोडक्ट्स को प्रभावी तरीके से बेचते हैं।

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अन्य खतरा तेजी से फैल रही ऑनलाइन धोखाधड़ी और डिजिटल घोटाले हैं जिसमें अपराधी पीड़ितों को फंसाकर उनके खाते से पैसा निकाल लेते हैं। इन सभी मुद्दों पर नए नियम कानून हैं लेकिन वास्तविक सुधार नजर नहीं आता। वहीं समस्याओं के वास्तविक स्तर पर आरबीआइ की ओर से भी पारदर्शिता दिखाई नहीं देती। जहां तक ग्राहकों से अधिक चार्ज वसूलने की बात है तो यह तब तक नहीं रुक सकता जब तक कि बैंकों को ग्राहकों की जेब से पैसा निकालने का एकतरफा अधिकार दिया जाए। जरा इस बारे में सोचिए, जब भी आप किसी कारोबार के लिए भुगतान करते हैं तो वे आपसे पैसे के बारे में पूछते हैं और आपको उन्हें पैसा देना होता है। हालांकि बैंक जब भी चाहते हैं वे आपसे कोई भी चार्ज वसूलने को खाते से पैसा काट लेते हैं। ऐसा मामला क्यों है? मुझे इसकी कोई अच्छी वजह नजर नहीं आती सिवाय इसके कि आपने उन्हें अपने पैसे की हिफाजत की जिम्मेदारी सौंप रखी है। बैंकों ने ऐसी बुरी भावना के साथ काम किया है कि अब ऐसे मूलभूत सवाल पूछने जरूरी हो गए हैं।

धीरेंद्र कुमार


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