डॉल्फिन की सुरक्षा के लिए नदियों की स्वच्छता आवश्यक
बगहा। वाल्मीकिनगर में आयोजित दो दिवसीय डॉल्फिन मेले के उद्धाटन में सांसद सतीश चंद्र दूबे ने कहा कि
बगहा। वाल्मीकिनगर में आयोजित दो दिवसीय डॉल्फिन मेले के उद्धाटन में सांसद सतीश चंद्र दूबे ने कहा कि गांगेय डॉल्फिन को नदी का बाघ भी कहा जाता है। इसके लिए सेंटर फॉर एन्वायरमेंट एजुकेशन (सीईई) के द्वारा उत्तर प्रदेश एवं बिहार के 20 गांगेय डॉल्फिन बाहुल्य कलस्टरों में गांगेय डॉल्फिन व उसके पर्यावास नदी तंत्र के संरक्षण हेतु गंगा डालफिन संरक्षण शिक्षा कार्यक्रम का क्रियान्वयन नमामि गंगे योजना के तहत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन एवं जल संसाधन नदी विकास एवं गंगा संरक्षण भारत मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से नदी के किनारे अवस्थित 700 से अधिक विद्यालयों में किया जा रहा है। बताते चलें कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार के 700 विद्यालयों में से 20 चयनित स्कूलों के लगभग साठ विद्यार्थी एवं 15 शिक्षक इस कैंप में भाग ले रहे हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय विद्यालयों के शिक्षक विद्यार्थी , विकास समितियां, समुदाय स्तरीय प्रतिनिधि , मीडिया कर्मी सहित अन्य विभागों के लगभग 500 से अधिक लोगों को नेचर कैंप में शामिल हुए। कार्यक्रम में डॉल्फिन विशेषज्ञ प्रशासनिक अधिकारी पर्यावरणविदों सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं छात्र-छात्राएं तथा शिक्षक को डॉल्फिन नदी संरक्षण के प्रयासों से जुड़े विचारों वह अनुभवों को साझा किया गया। जिसमें नदी में बढ़ते प्रदूषण को कम कर नदी स्वच्छता को सुनिश्चित कर डॉल्फिन व अन्य संकटग्रस्त जलीय जीवों के संरक्षण हेतु प्रभावी रणनीति बनाने पर विचार किया गया। नेचर कैंप में वन विभाग, सीईई, डब्ल्यडब्ल्यूएफ, डब्ल्यूटीआई के पर्यावरण विदों के द्वारा डॉल्फिन नेचर कैंप के माध्यम से विद्यार्थी वन्यजीवों जलीय जीवन एवं नदियों के संरक्षण पर तकनीकी जानकारी एवं प्रशिक्षण दिया गया। जिस के संरक्षण के प्रयासों को जन जन तक पहुंचाया जा सके। व्यापक स्तर पर संरक्षण करवाई की जा सके। डॉल्फिन मेले का उद्घाटन वाल्मीकि नगर सांसद सतीश चंद्र दूबे के द्वारा किया गया।
इस अवसर पर स्वरांजलि लोक कला संस्कृति मंच के द्वारा चर्चित कलाकार डी आनंद के निर्देशन में डॉल्फिन बचाओ नाटक का मंचन किया गया । मौके पर ओम निधि वत्स, पारसनाथ तिवारी ,डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के कमलेश मौर्य ,सैकत सूत्रधार बाल्मीकिनगर रेंजर आर के सिन्हा, डब्लूडब्लूएफ के डॉ. नीरज ,सहायक कार्यक्रम अधिकारी देविका माथुर ,जितेंद्र पटेल , दीपक राही ,संजय कुमार, अ¨चत्य कुमार लल्ला आदि उपस्थित रहे ।
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मेले का मुख्य आकर्षण प्रदर्शनी
इस अवसर पर मुख्य आकर्षण का केंद्र प्रदर्शनी रहा। जिसमें थारु आर्ट, क्राफ्ट, जलीय व वन्य जीव संरक्षण पर विद्यालयों संस्थाओं द्वारा प्रदर्शनी एवं प्रतियोगिताएं ।पें¨टग ,रंगोली, फेस एक्सप्रेशन ,समूह गायन- नृत्य, नाटिका , नुक्कड़ नाटक आदि प्रमुख थे। बताते चलें की सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एजुकेशन एक राष्ट्रीय संस्था है जो पर्यावरण एवं वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा समर्थित पर्यावरण शिक्षा के उत्कृष्ट केंद्र के रूप में 1984 से कार्य कर रही है। इसका मुख्य उद्देश्य एवं युवाओं एवं सामान्य जन समुदाय को पर्यावरणीय सरकारों के प्रति जागरूक करना है।
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जलीय जीवों को बचाने का प्रशिक्षण
इस अवसर पर सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एजुकेशन के परियोजना अधिकारी मोहम्मद साकिब खान ने बताया कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अंतर्गत अनुच्छेद 1 में गांगेय डॉल्फिन को रखा गया है। वन्यजीवों के संरक्षण के लिए प्रयासरत अंतर्राष्ट्रीय संस्था आईयूसीएन ने अपने विलुप्तप्राय प्राणियों के नाम वाली रेड डाटा बुक में वर्ष 1996 में संकटग्रस्त प्रजाति का दर्जा दिया है। हालांकि सरकार के द्वारा गांगेय डॉल्फिन संरक्षण के लिए पहला प्रयास गंगा कार्य योजना के अंतर्गत 1985 में शुरू किया गया था। जिसमें विभिन्न शोध व और संरक्षण परियोजनाओं के द्वारा स्थिति तथा खतरो के बारे में जानने की योजना बनाई गई । वर्ष 1991 में बिहार सरकार ने भागलपुर जिले में सुल्तानगंज से कहलगांव तक 55 किलोमीटर गंगा नदी के प्रवाह मार्ग को विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन अभ्यारण्य के रूप में घोषित किया है। 2005 में उत्तर प्रदेश में भी बुलंदशहर जिले के बृज घाट से नरौना तक 82 किलोमीटर गंगा प्रवाह मार्ग को रामसर क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया है।
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