दिव्यांग श्रवण जगा रहे शिक्षा की ज्योति
प्रकृति ने जन्म से ही बगहा के कैलाशनगर निवासी श्रवण कुमार की दोनों आंखों में रोशनी नहीं बख्शी है।
बगहा। प्रकृति ने जन्म से ही बगहा के कैलाशनगर निवासी श्रवण कुमार की दोनों आंखों में रोशनी नहीं बख्शी है। वे इस खूबसूरत दुनिया को नहीं देख पाते हैं, लेकिन श्रवण ने जीवन के इस अंधकार को कोसने की जगह इससे लड़ने का फैसला किया। वह भी शिक्षा के हथियार से। माता ज्ञांती देवी और पिता वैद्यनाथ प्रसाद ने अपने दूसरे पुत्र की इस लड़ाई में पूरा साथ दिया। बगहा से लेकर दिल्ली तक पहले इलाज कराने और बाद में शिक्षा हासिल करने में।
जब नेत्र रोग विशेषज्ञों की सलाह का कोई लाभ श्रवण को नहीं मिला तो जीवन के आरंभिक 12 साल उन्होंने परेशानी में ही गुजारे। इस दौरान उनके पिता व्यवसाय के क्रम में सपरिवार दिल्ली शिफ्ट हो गए। यहां से उनकी जिंदगी में उजियारा फैला। पड़ोसी की सलाह पर पिता ने उनका नामांकन ब्रेल लिपि से शिक्षा देने वाले सेवा कुटीर कैंपविद्यालय में करा दिया। इसके बाद श्रवण ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 2003 में 65 फीसद अंक के साथ 10वीं, 2005 में विद्यालय टॉप करते हुए 76 फीसद अंक के साथ 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हिंदू कॉलेज में स्नातक में दाखिला लिया। पहले वर्ष कॉलेज टॉप रहे। इसी दौरान दिव्यांग कोटे से श्रवण का नियोजन बगहा दो प्रखंड के उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय, रामपुर में हो गया। उस समय से वे शिक्षा की ज्योति जला रहे हैं। बच्चों को सामाजिक विज्ञान की शिक्षा देते हैं। पढ़ाई में कोई कमी न रह जाए, इसके लिए उन्होंने सभी वर्गो की किताबों को दिल्ली ले जाकर ब्रेल लिपि में तब्दील करा लिया है। इस तरह अध्ययन व अध्यापन का क्रम जारी है।
नेत्रहीन संघ से भी जुड़े : श्रवण दिल्ली के अखिल भारतीय नेत्रहीन संघ से जुड़े हैं। छुट्टी के दिनों में वे क्षेत्र में भ्रमण कर नेत्रहीन बच्चों के माता-पिता को संस्था के माध्यम से दिल्ली के विद्यालयों में नामांकन कराने के लिए प्रेरित करते हैं। इनके सहयोगी शिक्षक परमानंद प्रकाश व शैलेश पासवान बताते हैं कि श्रवण अपनी ड्यूटी के प्रति सजग रहते हैं। हमेशा अद्यतन जानकारी हासिल करने की कोशिश में रहते हैं।