पुल पर टिकी राघोपुर की सियासत
विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी दांव-पेंच का दौर शुरू हो चुका है। जातियों का मुद्दा भी परवान चढऩे लगा है। इन सबसे इतर वैशाली के राघोपुर में सियासी मुद्दा एक पुल पर आकर सिमट गया है।
हाजीपुर [रविशंकर शुक्ला]। विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी दांव-पेंच का दौर शुरू हो चुका है। जातियों का मुद्दा भी परवान चढऩे लगा है। इन सबसे इतर वैशाली के राघोपुर में सियासी मुद्दा एक पुल पर आकर सिमट गया है। दो दशक से पुल के नाम पर वोट कर रहे लोग इस बार सिर्फ और सिर्फ परिणाम चाहते हैं।
चारों ओर गंगा-गंडक से घिरा राघोपुर
राघोपुर विधानसभा क्षेत्र में दो प्रखंड, राघोपुर एवं बिदुपुर है। राघोपुर का इलाका चारों ओर से गंगा व गंडक से घिरा है। वहीं बिदुपुर का भी बड़ा इलाका गंगा पार है। राघोपुर के लिए कच्ची दरगाह से पीपा पुल है। यह मुश्किल से छह माह चलता है। शेष छह लोगों को नाव के सहारे काटना पड़ता है। वहीं बिदुपुर के दियारा इलाके के लिए पूरे साल नाव ही एकमात्र सहारा होती है।
लालू के सीएम बनने के बाद 1992 में बना था पीपा पुल
1992 के पहले राघोपुर आने-जाने के लिए नाव ही एकमात्र साधन था। मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू ने 1992 में यहां पहली बार पीपा पुल का निर्माण कराया था। बड़ा जश्न हुआ था। उदय नारायण राय उर्फ भोला राय ने लालू प्रसाद के लिए यह सीट खाली की थी। लालू पहली बार यहां से विधायक बने थे।
लालू के बाद यहां से राबड़ी विधायक चुनी गयी। करीब पंद्रह वर्षों तक इस सीट पर लालू-राबड़ी का कब्जा रहा। इस बीच केंद्र में भी लालू एवं उनके दल के सांसदों ने बड़े मंत्रालयों की जिम्मेदारियां संभाली। लेकिन पुल का सपना साकार नहीं हो सका।
पुल के मुद्दे पर ही ढह गया था लालू-राबड़ी का किला
लालू-राबड़ी का अभेद्य किले के ढहने के पीछे पुल को बड़ी वजह माना जाता रहा है। पहली बार 2010 में यहां जदयू के सतीश कुमार ने चुनाव जीता था। एक नए चेहरे ने राबड़ी देवी को शिकस्त दे दी थी।
उस वक्त भी सिर्फ और सिर्फ मुद्दा पुल ही था। नीतीश कुमार एवं शरद यादव ने चुनावी सभाओं में इसी मुद्दे पर वोट मांगा था। कहा था, आप हमें विधायक दीजिए, हम आपको पुल देंगे। लेकिन अब तक यह आश्वासन कोरा का कोरा ही है।
चुनाव के पहले फिर पुल पर सियासी दांव-पेंच
राघोपुर में विधानसभा चुनाव के पहले फिर एक बार केंद्र एवं राज्य सरकार के बीच पुल के मुद्दे पर सियासी जंग का आगाज हो गया है। नीतीश सरकार ने कच्ची दरगाह से बिदुपुर के बीच छह लेन पुल की मंजूरी दी है।
टेंडर की प्रक्रिया भी हो चुकी है। इसके लिए 5 हजार करोड़ रूपये का बजट भी स्वीकृति पा चुका है। इधर केंद्र ने नीतीश के इस दांव को पलटते हुए महात्मा गांधी सेतु के सामानांतर सिक्स लेन पुल की मंजूरी देते हुए नया सियासी दांव खेल दिया है। जिस तरह केंद्र व राज्य में दांव-पेंच चल रहा है, साफ है कि इस बार भी मुद्दा पुल ही होगा।
राघोपुर में छह माह ही बजती है शहनाई
चारों ओर से गंगा व गंडक से घिरे राघोपुर में मुश्किल से छह माह ही शहनाई बज पाती है। अमूमन जनवरी से जून तक पीपा पुल चलता है। इस दौरान सड़क से राघोपुर जाना संभव हो पाता है।
पीपा पुल के हटने के साथ ही लगन के बावजूद राघोपुर में शहनाई नहीं बज पाती। अगर मुश्किल से बजी भी तो दुल्हा-दुल्हन एवं बारातियों को नाव का सहारा लेना पड़ता है। सबसे ज्यादा परेशानी मरीजों को होती है।
पुल के कारण नहीं हो सका राघोपुर का विकास
सिर्फ एक पुल की वजह से ही आज तक राघोपुर विकास का विकास संभव नहीं हो सका है। यहां के लोगों को भी यह बात मालूम है कि जब तक पुल नहीं बनता तब तक राघोपुर का विकास संभव नहीं है।
हालत यह है कि बारिश एवं बाढ़ के दिनों में कौन कहे, आम दिनों में अधिकारी राघोपुर जाने से कतराते हैं। इस बार यहां के लोग आर-पार के मूड में हैं और बस एक ही नारा बुलंद कर रहे हैं कि 'अब आश्वासन नहीं, पुल दो और विधायक लोÓ।